Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 709
________________ विदुला विमलाबुद्धया सेवाधर्मपरायणा। विनयामृतपानेन सफलयति जीवनम् // 11 // विशुद्धा 'निर्मलाबाइ' ज्ञानध्यानादिसोद्यमा / विनयादिसमाराध्य सफलति जीवितम् // 12 // पयोमुचां पयोबिन्दुसिक्तकुन्दसमा सती / गुरूणां कृत्यवचसा 'प्रफुल्लीबाई' भाषते // 13 // तरौ लता यथा पुष्पैः फलैश्च परिशोभते / सती 'तरुल्लताबाई' विनयादि गुणान्विता // 14 // 'मजुला' मजुभावेन विनम्रा धर्मतत्परा / सफलं जीवितं चाऽस्या धन्य धन्या सतीसदा // 15 // 'मृदुला' मृदुभावेन सेवाधर्मपरायणा / धन्यं जन्म पुनात्येषा स्वात्मानं वचसा गुरोः॥१६॥ धर्मनिष्ठा सती साध्वी, विनयादि गुणान्विता / सेवाभावपरा नित्यं, 'जयश्री' र्जयकारिणी // 17 // 'ज्योत्स्नाबाई' सती गच्छे, धर्मज्योतिः प्रकाशिनी / धर्भध्यानरता नित्यं, विरक्ता पापकर्मणि // 18 // 'दर्शना' दर्शने निष्ठा, विशिष्टा विनयादिषु / कृतिकर्मरता साध्वी, यथारात्निक भावतः // 19 // 'वनिता' च विनीताया. सतीधर्मपरायणा / जिनधर्मे च श्रद्धालु, रनन्या तस्य पालने // 20 // 'मीनाक्षी' या सती साधी, तल्लीना धर्मकर्मणि / यथारात्निकसेवायां, तत्परा शुभभावतः // 21 // 'पुष्पावती सती साध्वी ज्ञानध्यानपरायणा / विनीता नम्रभावेन, चारित्राराधने रता // 22 // 'करुणाबाई' साध्वी च, करुणाकरुणालया / आराधिका वरीवति, समितिगुप्तिधारिणी // 23 // શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ 1

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