Book Title: Anusandhan 2020 02 SrNo 79
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री हेमचन्द्राचार्य मोहरिते सच्चवयणस्स पलिमंथू ( ठाणंगसुत्त, ५२९) अनुसन्धान - ७९ प्राकृतभाषा अने जैनसाहित्य विषयक संपादन, संशोधन, माहिती वगेरेनी पत्रिका संपादक : विजयशीलचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मति संस्कार शिक्षणनिधि- अमदावाद December - 2019 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोहरिते सच्चवयणस्स पलिमंथू(ठाणंगसुत्त,५२९) 'मुखरता सत्यवचननी विघातक छे' अनुसन्धान प्राकृतभाषा अने जैनसाहित्य-विषयक सम्पादन, संशोधन, माहिती वगेरेनी पत्रिका सम्पादक: विजयशीलचन्द्रसूरि -MILLIOTI Mob श्रीहेमचन्द्राचार्य कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षणनिधि अहमदाबाद जान्युआरी - २०२० Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ७९ आद्य सम्पादक : डॉ. हरिवल्लभ भायाणी सम्पादक : विजयशीलचन्द्रसूरि सम्पर्क : C/o. अतुल एच. कापडिया A-9, जागृति फ्लेट्स, पालडी महावीर टावर पाछळ, अमदावाद-३८०००७ M.9979852135 E-mail:s.samrat2005@gmail.com प्रकाशक : कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षणनिधि, अहमदाबाद प्राप्तिस्थान : (१) आ. श्रीविजयनेमिसूरि जैन स्वाध्याय मन्दिर १२, भगतबाग, जैननगर, नवा शारदामन्दिर रोड, आणंदजी कल्याणजी पेढीनी बाजुमां, अमदावाद-३८०००७ M. 99798 52135 (अतुल एच. कापडिया) (२) सरस्वती पुस्तक भण्डार ११२, हाथीखाना, रतनपोल, अमदावाद-३८०००१ फोन : ०७९-२५३५६६९२ प्रति : २५० मूल्य : ₹ 150-00 मुद्रक : क्रिश्ना ग्राफिक्स, किरीट हरजीभाई पटेल ९६६, नारणपुरा जूना गाम, अमदावाद-३८००१३ (फोनः ०७९-२७४९४३९३) Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निवेदन संशोधन एटले सत्यनो कल्पनाविहार. बीजी रीते, प्रचलित परिस्थिति सत्यथी वेगळी होय त्यारे कल्पनाना प्रदेशमा विचरीने सत्यनी समीपे पहोंचवू तेनुं नाम संशोधन. आम तो हमेशां कल्पना रळियामणी होय, अने सत्य आकरूं. पण सत्य ज्यारे कल्पनानी सोबत करे छे त्यारे ते पण, घणीवार, रळियामणुं बनतुं होय छे. सत्यनी कल्पना भारे मीठी होय छे : तेना शोधक माटे पण, अने तेना भावक माटे पण. बे वानां छे : सत्यनी कल्पना, अने कल्पनानुं सत्य. संशोधन- सत्य एक ज : सत्य न जडे त्यां सुधी सत्यनी कल्पना कर्या करवी; पण कल्पनाना सत्यथी वेगळा ज रहे. तो प्रश्न थशे : सत्य एटले शुं? जवाब हशे : जे तथ्यनी नजीक होय ते सत्य. अर्थात्, तथ्यथी दूर खेंची जाय ते कल्पना. संशोधन हमेशां तथ्यनी शोधमा प्रवर्ते छे. तेनी समक्ष सत्यपरक घणीबधी कल्पनाओ पडी होय, पण तेने माटे ते ज कल्पना उपादेय, जे तेने तथ्यनी नजीक दोरी जाय. तथ्यविहोणी अने तथ्यथी वेगळी कल्पना तो काल्पनिक सत्य ज होय; बीजुं कांई नहि. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - कल्पना- बीजुं नाम अनुमान. ज्यारे कोई हाथपोथीमां प्रशस्ति, पुष्पिका अथवा लेखन-वर्ष न होय त्यारे, तेना लेखन-काळना निर्णय माटे अनुमान करवू पडतुं होय छे. ते माटे ते प्रतिना कागळ, अक्षरना वळांको, फुदडी, हांसिया वगेरे विविध बाबतोने लक्ष्यमा लेवानी होय अने तेना आधारे तेना लेखनकाळनुं अनुमान करवानुं होय; तेने आपणे 'अनुमान संवत्' तरीके ओळखीए छीए. आ रीते संवतनुं निर्धारण करवामां अनेकविध प्रतिओनो बहोळो परिचय होवो जोईए; अवलोकननी क्षमता तेमज सचोट अनुमान करवानी निपुणता होवी जोईए; ते विषयना जाणकार अनुभवीओनी कसोटीमांथी पसार थया होवा जोईए; त्यारे ते प्रकारना अनुमान द्वारा तथ्य-समीपे पहोंचवू शक्य बने छे. अहीं संवतनुं थतुं अनुमान ते कल्पना छे. पण ते आपणने तथ्यनी निकट लई जनार होवाथी ते 'सत्यनी कल्पना' बनी रहे छे. आq ज कोई शिल्प के प्रतिमा परत्वे पण समजवानुं छे. ते पर लेख न होय, लेखना अक्षरो घसाई-भूसाई गया होय, तेनो समय जाणवानुं अन्य कोई साधन प्राप्य न होय त्यारे, तेना घाटघूट के आकार-प्रकार परथी तेना समयअनुमान करवू पडे छे. अलबत्त, तेमां बीजां प्रमाणो अने साधनो उपकारक जरूर बनी शके; पण तो पण ते गणाय तो अनुमान-संवत ज. परन्तु ते तथ्यपरक बने छे तेथी ते सत्यनी नजीकनी कल्पनारूप ज हशे. आवी कल्पना ज छे संशोधन. आवी रीते थयेला संशोधनने प्रामाणिको पण स्वीकारे छे, मान्य राखे छे. कोई साचा संशोधकने संशोधन-कार्य करवामां जरूर आनन्द आवे छे; पण ते करताय वधु आनन्द, तेना ते शोध-कार्यने प्रामाणिकोनी स्वीकृति मळे त्यारे आवतो होय छे. आपणे त्यां केटलाक कल्पनासेवी संशोधको द्वारा प्रगट करवामां आवेलां केटलांक काल्पनिक सत्यो विषे पण, आ सन्दर्भमां जाणवू जोईए. १. सिद्धहेम व्याकरणना प्राकृत भाषाओना अष्टम अध्यायमा आवता अपभ्रंश प्रकरणमा केटलाक दुहाओ हेमचन्द्राचार्ये टांक्या छे - उदाहरणलेखे, अने उद्धरणलेखे नहि ज. आ दुहाओ आचार्ये पोते ज रच्या होवानो दावो क्यांय को नथी. परन्तु एमांना कोई दुहाओ पोते रच्या पण होय, ए पूरुं सम्भवित छे. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 आपणा एक विद्वान संशोधक जाहेर कर्यु के आ दूहाओ तो ते समयना अमुक विख्यात चारण-कविनी रचना छे, जेनी आचार्ये उठांतरी करी छे. मजा तो ए छे के आ विद्वाने, ते चारण-कविना कया ग्रन्थमां कया दुहा छे ने शेमांथी आचार्ये उद्धृत कर्या छे, तेनो एक पण दाखलो के प्रमाण आपवानी तस्दी लीधी नथी. ते कविनी रचना विषे पण भाग्ये ज कशं नोंध्यु छे. श्रीभायाणी साहेबे प्रा.व्या. गत उदाहरणोनां मूल स्थानो तथा मूल स्वरूप शोधवानो संनिष्ठ प्रयास को छे; घणांनां स्थान-स्वरूप शोध्यां पण छे. जो साचेसाच आचार्ये उठांतरी करी होवार्नु अथवा ते चारण-कविना स्रोतनुं तेमना ध्यानमां आव्युं होत तो तेमणे अवश्य ते विषे वात करी होत. सार ए के कोई पर मनघडंत आक्षेप करवाथी कोई वात 'संशोधन' पुरवार न थाय; ते वधुमां वधु काल्पनिक सत्य' गणी शकाय. आवां बीजां उदाहरणो पण टांकी शकाय. पण ते कांई आवश्यक नथी. आवश्यक तो कल्पना अने सत्य अथवा काल्पनिक सत्य अने तथ्यपरक सत्यनी कल्पना - ए बन्ने वच्चेनो विवेक केळवीए ते ज छे. अस्तु. - शी. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका उपाध्यायश्रीयशोविजयप्रणीतः श्रीउदयपुरस्थित श्रीसुपार्श्वनाथस्तवः ॥ - सं. मुनि धुरन्धरविजयजी १ पण्डित श्रीहर्षकल्लोलगणिरचितं श्रीत्रिंशत्तीर्थकरस्तोत्रम् - सं. मुनि श्रुताङ्गचन्द्रविजयः ४ वीरस्तुतिनां बे चित्रकाव्य - सं. उपा. भुवनचन्द्र १० गणधरप्रबोध कर्ता : वाचक सकलचन्द्रगणि - सं. विजयशीलचन्द्रसूरि १५ श्री सिद्धचक्ररास अथवा श्रीपालरास - सं. सा. दीप्तिप्रज्ञाश्री २१ विजयदेवसूरिरंगरत्नाकर (रंगराज?) रास - सं. मुनिसुयश-सुजसचन्द्रविजय ५७ अनुसन्धान-७८ - श्रीनंदिषेण रासनी शुद्धि - सं. साध्वी दीप्तिप्रज्ञाश्री ९२ विहंगावलोकन - उपा. भुवनचन्द्र ९४ अगत्यनी नोंध Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपाध्यायश्रीयशोविजयप्रणीत: श्रीउदयपुरस्थित श्रीसुपार्श्वनाथस्तवः॥ - सं. मुनि धुरन्धरविजयजी महोपाध्याय श्री यशोविजयजी दार्शनिक, तार्किक, शास्त्रकार, ग्रन्थकार एम विविध रूपे आपणे त्यां जेम जाणीता छे, तेम कवि तरीके पण तेओ खूब प्रख्यात छे. तेमनी कविताओमां भाषागत, छन्दो तथा अलङ्कारादिनुं वैविध्य तो ध्यानपात्र छे ज, पण ते कवितामा सहजपणे प्रगटतो-विलसता प्रसाद अने माधुर्यना गुणो पण विशेष ध्यानार्ह होय छे. __ तेमनी कृतिओनी संख्या केटली ते नक्की करवू शक्य नथी. अगणित नानी-मोटी रचनाओ प्रकाशमां आवी छे, छतां हजी अवारनवार क्यांक ने क्यांकथी तेमनी अप्रगट रचनाओ मळी ज आवे छे. प्रस्तुत रचना पण आवी ज एक नवी रचना छे. एक १७३०मां लखायेलो गुटको मारा संग्रहमां छे. बेठा बेठा तेनां पानां फेरवतां अचानक ज आ स्तुतिकाव्य दृष्टिमां आव्यु. शुद्ध अने मधुर काव्यरचना, ते पण यशोविजयजीनी, जोतां ज हैयुं प्रमुदित बनी गयु. प्रथम पद्यनी प्रथम पंक्तिमां 'उदयपुर' अने चोथी पंक्तिमां 'सुपार्श्वनाथ' ए बे नामो जोवा मळे छे, तेथी अनुमान थाय छे के पोते उदयपुर विचर्या हशे, त्यारे त्यां बिराजमान प्रभुनी स्तवना करी हशे. स्तोत्रपाठ शुद्ध छे, पडिमात्रा-लिपिमा लखेल छे. आ गुटको श्रीऋद्धिविमल नामना मुनिराजे लख्यो छे. लेखननी शुद्धि जोतां तेओ सारा विद्वान होवानी प्रतीति मळे छे. उदयपुरना ते समयना दीवान मानसिंह महेताने माटे आ गुटको लख्यो छे. तेमां विविध स्तुति-स्तोत्रादि उपरांत प्रतिक्रमणनां सूत्रो विधिसहित लखेलां छे. सं. १७३०मां लखायेलो आ गुटको उपाध्यायजीनी विद्यमानतामां ज लखायो गणाय. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ नित्योदयोदयपुरप्रथितप्रसादप्रासादमेरुतरणिप्रतिरूपरूप! । आनम्रसुन्दरपुरन्दरमौलिरत्नरत्नप्रभारुचिरपार्श्व ! सुपार्श्व ! जीयाः ॥१॥ जाग्रत्प्रभावसदनं सदनन्तबोधं सिद्धं शिवं शिवकरं विगलद्विरोधम् । एकान्तकान्तशुभयोगसमृद्धिमन्तं त्वामेव देव ! वयमीश्वरमाश्रयामः ॥२॥ लावण्यपुण्यतममाननमिन्दुजैत्रं नेत्रे सरोजजयिनी करुणैकपात्रे । अङ्कः कलङ्करहितो ललनाविलासैरेषा तवैव जिननाथ ! सुरेषु मुद्रा ॥३॥ चित्ते चिराय यदि देवमन(व?)स्थितोऽसि शुद्धस्तदस्य भवतैव विधेविधेया । अस्मिन् रजः कथमुपैतु कथं तमो वा को वा परः प्रविशतु स्वनिवासकांक्षी ॥४॥ त्वां क्षीणकिल्बिषमपास्य शिवार्थिनो ये देव ! श्रयन्ति परमुल्बणमोहमग्नाः । त्यक्त्वा द्रुमं दिविषदां निजकामिताप्त्यै जाल्माः करीरविपिनं खलु ते भजन्ते ॥५॥ यस्मिन् चिरं परिणते शमदर्शनानि स्वादाय झांकृत इवाविषमोदकानि । दुर्वासनाविषविकारविनाशनाय तस्मै नमस्तव जिनेश्वर ! शासनाय ॥६॥ कण्ठीरव ज्वलन सिन्धुर दन्दशूकनीराकर प्रधन बन्धन रोगजन्मा(न्म) । त्वन्नाममन्त्रजपतः प्रलयं प्रयाति स्वामिन् ! भयं तम इवांऽशुमतः प्रतापात् ॥७॥ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० . अद्याऽङ्गणे सुरतरुः फलितो ममोच्चश्चिन्तामणिः करतले स्थिरतां ततान । अद्य स्फुटद्युतिरलभ्यत कामकुम्भो दृष्टोऽसि देव ! यदवद्यपरिक्षयेण ॥८॥ ऐश्वर्यमिन्दुनिकरैरुपबृंहणीयं योगश्च योगिभिरतिस्पृहणीयवा । एतद् द्वयं कथमहो ! घटनामियति स्वामिस्त्वयीति भृशमद्भुतमेदुराः स्मः ॥९॥ त्रैलोक्यलोचनचकोरकशीतभासे सङ्घाननाम्बुरुहभासनतिग्मभासे । आसेविताय सुरदानवमानवेन्द्रस्तुभ्यं नमः शमरसामृतभाजनाय ॥१०॥ इत्थं स्तुतः प्रणतसर्वसुपर्वनाथः प्रौढप्रसिद्धमहिमेह सपार्श्वनाथः । उद्बुद्धबोधतरुकारणबोधिबीजां सद्यो यशोविजयसम्पदमातनोतु ॥११॥ इति श्रीसुपार्श्वस्तवः सम्पूर्णः ॥ श्रीः ॥ . Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ पण्डित श्रीहर्षकल्लोलगणिरचितं श्रीत्रिंशत्तीर्थकरस्तोत्रम् - सं. मुनि श्रुताङ्गचन्द्रविजयः प्रस्तुत स्तोत्रमा त्रीश तीर्थंकर परमात्मानी स्तुति करवामां आवी छे. मौन एकादशी तरीके प्रसिद्ध मागसर शुदि अकादशीना दिवसे ९० भगवानना कुल १५० कल्याणक थयां छे. ९० भगवाननी गणतरी आ प्रमाणे छे : ६ भरतक्षेत्र अने ५ औरावतक्षेत्रना वर्तमान चोवीशीना ३-३ तीर्थंकर ओटले कुल ३० तीर्थंकर. ते ज रीते अतीत चोवीशी अने अनागत चोवीशीना पण ३-३ तीर्थंकर अटले कुल ६० तीर्थंकर. आम, कुल मळीने ९० तीर्थंकर थाय छे. आ ९० तीर्थंकरमाथी ३० तीर्थंकरना उपरोक्त दिवसे ३-३ कल्याणक थया छे अने शेष ६० तीर्थंकरना ११. तेथी ९० तीर्थंकरना १५० कल्याणक थाय छे. प्रस्तुत कृतिमां ५ भरतक्षेत्र अने ५ ऐरावतक्षेत्रना वर्तमान चोवीशीना ३-३ तीर्थंकरनी स्तुति करवामां आवी छे. जे तीर्थंकरना १-१ कल्याणक थया छे तेमनी १-१ श्लोक द्वारा अने जे तीर्थंकरना ३-३ कल्याणक थया छे तेमनी ३-३ श्लोक द्वारा स्तुति कराई छे. आम, ५० श्लोक स्तुतिना अने ४ श्लोक अन्य - कुल मळीने ५४ श्लोक प्रमाण आ स्तोत्र छे. सम्पूर्ण स्तोत्र अनुष्टुप् छन्दमां छे, एकमात्र आठमो श्लोक आर्याछन्दमां छे. स्तोत्र सरळ अने मधुर छे. श्लोके-श्लोके प्रयुक्त उपमाओ कर्तानी कल्पकतानो परिचय करावे छे. पं. हर्षकल्लोलगणि १६मी शताब्दीमां थई गयेला आचार्य आगममण्डन सूरिजीना शिष्य छे. सम्पादन माटे हस्तप्रत आपवा बदल तथा जरुरी सलाहसूचनो आपीने अने सम्पादनगत क्षतिओने दूर करीने कृतिने निर्दुष्ट करवा बदल पू. आचार्य भगवंत श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी म.नो हुँ खूब ऋणी छु. स्तोत्रगत तीर्थंकरोना नामोमां अने प्रचलित नामोमां केटलीक भिन्नता जोवा मळे छे जे नीचे मुजब छे : Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० स्तोत्रगत तीर्थंकरनाम प्रचलित तीर्थंकर नाम । प्रासादनाथ प्रसादनाथ मलसिंह मलयसिंह नन्दकेश नन्दिकेश श्यामकोष्ठ श्यामकोष्ट नन्दिघोष नन्दिकेश अनुमाने १६मा शतकनी, प्रायः कर्ताना स्वहस्तनी, त्रण पानांनी हस्तप्रतिनी जेरोक्स नकलना आधारे आ सम्पादन करेल छे. प्रति पर कोई भण्डारनो सिक्को छे परन्तु ते उकलतो नथी. पण प्रायः आ नकल कोबा ना श्रीकैलाससागरसूरिज्ञान भण्डार तरफथी प्राप्त थई जणाय छे. ते संस्थानो आभार. महोपाध्यायश्रीआगममण्डनगणिगुरुभ्यो नमः ॥ सुदर्शननराधीश-वंशमाणिक्यसंनिभम् । श्रीअरं सर्वकल्याण-कारणं संस्तुमो जिनम् ॥१॥ गङ्गापानीयशुद्धान्त:-करणं करुणालयम् । श्रीमद्गाङ्गिकतीर्थेशं नमत प्रभुतापदम् ॥२॥ धर्मोपदेशनिष्णातं तन्द्रातिमिरभास्करम् । .............. श्रीअयोगं सदा स्तुवे ॥३॥ विश्वत्रयीजनाम्भोज-प्रकाशननभोमणिम् । प्रासादनाथतीर्थेशं नमामि गुणसागरम् ॥४॥ केवलज्ञानसल्लक्ष्मी-निकेतनं गतस्पृहम् । सेवे सर्वश्रियो वासं मलसिंहं जिनेश्वरम् ॥५॥ मुक्तिपुर्या महासार्थं सर्वार्थसाधने परम् । अतिपाश्र्वं जिनाधीशं मथितानर्थमानम ॥६॥ व्यवायवल्लिसङ्घात-च्छेदने घनसोदरम् । विवेकनाथमस्ताघं श्रये सौख्यावहं मुदा ॥७॥ निन्दानिदानरहितं नरमहितं नन्दकेशसर्वज्ञम् । निर्जितमोहकरेणुं निर्भयमिह नौम्यनन्तगुणम् ॥८॥ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ तमस्तोमजगच्चक्षुः-सोदरं परमोदरम् । क्षेमन्तनाथमक्षेम-सरःशोषे रवि स्तुवे ॥९॥ कामनाकामकुम्भाभं कामनामविनाशकम् । कामनाथं जिनवृत्त-श्रीयुतं स्तौमि भक्तितः ॥१०॥ त्रिंशत्(द्)धनुस्तनुमानं मानमायाजयक्षमम् । क्षमागुणमणीसिन्धुं श्रीमल्लिं स्तुतितां नये ॥११॥ देवीकुक्षिसरोरत्ना-करणीरमणीयकः । भवतो भवतः पातु श्रीमल्लिः परमेश्वरः ॥१२॥ कल्याणकत्रयं यस्यै-कादश्यां च तमोऽपहम् । प्राणिनां सुखदं जज्ञे स श्रीमल्लिर्जिनः श्रिये ॥१३॥ . कलिन्दिकामणीमाला-कूलंकषापतिप्रभः । प्रभावकमलावासो गुणनाथो गुणाय मे ॥१४॥ जितक्रोधमदोन्मत्त-मतङ्गजमहाबलः । बलबुद्धिरमागारो गुणनाथं(थो) श्रियेऽस्तु वः ॥१५।। कल्याणकत्रयं यस्यै-कादश्यां च तमोऽपहम् ।। प्राणिनां सुखदं जज्ञे गुणनाथः स बोधिदः ॥१६।। भयविध्वंसने दक्षो दक्षजारमणाननः । नवीननीतिकान्तार-घनो योगजिनोऽवतु ॥१७॥ क्षमानायकसंसेव्य-पदद्वयसरोरुहः । तनोतु योगनाथोऽयं बोधिबीजं नताङ्गिनाम् ॥१८॥ कल्याणकत्रयं यस्यै-कादश्यां च तमोऽपहम् । प्राणिनां सुखदं जज्ञे तं योगजिनपं नुवे ॥१९॥ भवाम्भोधितरीतुल्य-स्तरुणारुणरुग्महः । महासत्त्वोदधिर्देव-विपरीतो विराजते ॥२०॥ महोदययशःस्फूर्ति-शौर्यमुख्यगुणैर्युतः । विपरीतो जिनाधीशो देयान्मङ्गलमालिकाम् ॥२१॥ कल्याणकत्रयं यस्यै-कादश्यां च तमोऽपहम् । प्राणिनां सुखदं जज्ञे विपरीतः श्रियेऽस्तु सः ॥२२॥ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० हावभावप्रधानाभी(भि)-रक्षोभ्यं यस्य मानसम् । सुरीभिर्यस्य देवस्य सोऽक्षोभः सम्पदे जिनः ॥२३॥ पञ्चाक्षीरोधने दक्षः कतकक्षोदसत्()यशाः । दक्षयक्षेशसंसेव्यः श्रीअक्षोभो हरेदघम् ॥२४॥ कल्याणकत्रयं यस्यै-कादश्यां च तमोऽपहम् । प्राणिनां सुखदं जज्ञे तमक्षोभं वयं स्तुमः ॥२५॥ संसारमरुदेशान्तः-पद्मकासारसंनिभः । . मरुत्पतिस्तुतो देवो मरुदेवो ददाति शम् ॥२६॥ भव्याङ्गिकामितार्थाली-विश्राणनमरुत्तरुः । मरुदेवः क्षमागारो बोधिदोऽस्तु भवे भवे ॥२७॥ कल्याणकत्रयं यस्यै-कादश्यां च तमोऽपहम् । प्राणिनां सुखदं जज्ञे मरुदेवं नमामि तम् ॥२८॥ शारदेन्दुकलाकान्त-तथ्यधर्मप्रकाशकः । धर्मचन्द्रजिनाधीशः कामिताय शरीरिणाम् ॥२९॥ - - पशमराजीव-वनबोधन--नः । वासं तनोतु मच्चित्ते धर्मचन्द्राभिधो जिनः ॥३०॥ . कल्याणकत्रयं यस्यै-कादश्यां च तमोऽपहम् । प्राणिनां सुखदं जज्ञे श्रीधर्म संस्तुवे मुदा ॥३१॥ सुरासुरहरैः सेव्य-पदपङ्कजयामलः । दुष्कर्मपङ्कराजीव-बोधनोऽस्तु श्रिये हरः ॥३२॥ योगक्षेमङ्करो देवः सेवाकारिपुरन्दरः । हरनाथजिनाधीशः पापं हरतु मामकम् ॥३३॥ कल्याणकत्रयं यस्यै-कादश्यां च तमोऽपहम् । प्राणिनां सुखदं जज्ञे स हरि(रः) पातु वो जिनः ॥३४॥ कन्दर्पमदपाथोज-सङ्कोचनकलाधरः । सायकाक्षजगन्नाथः श्रियं पुष्णातु वो मनः ॥३५॥ कन्दर्पमदपाथोज-सङ्कोचनकलाधरः । सायकाक्षाभिधो देव-श्चित्तं प्रीणातु मेऽन्तरम् ॥३६।। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ कल्याणकत्रयं यस्यै-कादश्यां च तमोऽपहम् । प्राणिनां सुखदं जज्ञे सायकाक्षः स नन्दतु ॥३७॥ सन्तोषकमलादित्यं सन्तोषितजगत्त्रयम् । बोधिरत्नप्रदानेन सन्तोषितं स्तुमो वयम् ॥३८॥ असन्तोषपयोराशि-सेतवे बोधिहेतवे । सन्तोषितजिनेशाय नमोऽस्तु मुक्तिकेतवे ॥३९॥ कल्याणकत्रयं यस्यै-कादश्यां च तमोऽपहम् । प्राणिनां सुखदं जज्ञे तं श्रीसन्तोषितं नुवे ॥४०॥ यस्मिन् गर्भस्थिते देवे शत्रवो मातरं नताः । नमामि तं नर्मि नाथं भावावनाममानवम् ॥४१॥ परमब्रह्मकान्तार-स्फुरद्वारा(रा)धरोपमः । श्रीब्रह्मेन्द्रश्चिरं जीयात् हरिब्रह्महरस्तुतः ॥४२॥ भीतजन्तुभवारण्यो-त्तारणे तुरगोपमः । श्रीअरण्यजिनाधीशः शरण्याय भवेन्मम ॥४३॥ जन्तुजाततमःपूर-गोस्वामिसंनिभप्रभः ।। विश्वासभूर्भवात्पायात् स्वामिनाथो दयानिधिः ॥४४॥ चिन्तामणीव यन्नाम कामितानि प्रयच्छति । श्रीप्रयच्छजिनः स्वच्छा-तुच्छकीर्तिर्जयाय मे ॥४५॥ दुःकृ(दुष्कृ)तश्यामतामुक्तं वश्यामरनरेश्वरम् । अनन्तसंविदां कोष्ठं श्यामकोष्ठमभिष्टुमः ॥४६॥ अमन्दानन्दसन्दर्भ-दायिनं ताचिनं सताम् । नन्दिघोषं श्रिया युक्तं घनघोषं स्तुति नये ॥४७॥ शिवतातिर्मनस्तान्तिः प्रशान्तिकरणक्षमः । तन्तनीति सुशान्तीशः शान्ति शान्तिनिशान्तकम् ॥४८॥ प्रणतप्राणिकल्याण-कन्दकन्दलनाम्बुदम् । वन्देऽहं श्रीतमोकन्दं लक्ष्मीकन्दं दयालयम् ॥४९॥ अक्षेमदावपानीयः क्षीणकर्मभरो जिनः । क्षेमन्तो भव्यजन्तूनां क्षेमं दि(वि)तनुते सदा ॥५०॥ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० सञ्जाता पञ्चकल्याणी यस्यां मङ्गलकारिणी । सैकादशी तिथिौन-व्रतपौषधपोषिनी(णी) ॥५१॥ पञ्चाशज्जिननाथानां कल्याणकानि रेजिरे । यस्यां सैकादशी मार्ग-शीर्षजा सा श्रिये सिता ॥५२॥ एवं --गुरोलं- श्रीहेमविमलप्रभोः । त्रिंशत्तीर्थाधिराज(जा)स्ते स्तुता नाम्ना मया जिनाः ॥५३॥ एवं नव्यनमस्कारा रचितागममण्डनाः । त्रिंशत्तीर्थकरा मयं सृजन्तु सुखसम्पदः ॥५४॥ इति श्रीत्रिंशत्तीर्थकरस्तोत्रम् । कृतिरियं पण्डितहर्षकल्लोलगणेः ॥श्रीः।। Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ वीरस्तुतिनां बे चित्रकाव्य - सं. उपा. भुवनचन्द्र मांडवी (कच्छ)ना हस्तलिखित ज्ञानभण्डारमाथी मळेलां बे स्तोत्र चमत्कृतिभर्यां छे. बन्ने वीरस्तुतिनां काव्य छे. बन्ने चित्रकाव्य छे, परन्तु बन्नेनी विशेषता भिन्न छे. प्रथम स्तुतिमा कामदुघा-कामधेनुना चित्रनो उल्लेख छे. प्रथम श्लोकमां कामधेन बंध थतो हशे. प्रथम श्लोकनां चरण अने शब्दो लईने, ए ज अर्थ जाळववानी साथे, भिन्न भिन्न नाना-मोटा छन्दोमां बाकीना श्लोको रचवामां आव्या छे अने ए ज आ कृतिनी चमत्कृति छे. प्रथम श्लोक जाणे कामधेनु छ जे जोइए तेवा छन्द रचवा माटे शब्दो पूरा पाडे छे. कर्ता जीवविजयजी छे. बीजी रचना परम्परागत चित्रकाव्य प्रकारनी छे. कर्ताए दरेक श्लोकना अन्ते बन्धनां नाम आप्यां छे, अने अन्तिम श्लोकमां बधा बन्धोनां नाम संगृहीत पण कर्यां छे. आना कर्ता गणि ऋद्धिविजयजी छे. बन्नेना लिपिकार ग. ऋद्धिविजयजी छे. अमने मळेली हस्तप्रत जो के ए ऋद्धिविजयजी-लिखित जूनी प्रतिनी नकल छे. आ प्रतमां पडी गएला अक्षरोनो निर्देश रिक्तस्थानना चिह्न वडे करवामां आव्यो छे. जो ऋद्धिविजयजीना हस्ते लखाएल होय तो रिक्तस्थान रहेत नहीं. जैन हस्तलिखित ज्ञानभण्डारो स्तोत्रसाहित्यनी खाण जेवा छे. जैन श्रमणोए संस्कृत भाषाने केटली समृद्ध करी छे, तेना प्रतीक जेवां आ बे स्तोत्र प्रस्तुत करतां आनन्द थाय छे. १. ॥६॥ श्रीवरदायै नमः । श्री वीरजिनस्तुतिः । कामदुघाचित्रेण । पं. जीवविजयगणिभिर्विहिता । स्वःश्रीसुखाऽऽप्तिजननन्दमिताऽघदोषमीशं स्फुरदचिरकान्तिसमेतकायम् । सत्कीर्तिधामहितमात्मविशुद्धये तं श्रीज्ञातपुत्रजिनपं प्रणमाऽऽशु धीर ! ॥ १ ॥ वसन्ततिलकावृत्तं । Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० श्रीसुखाप्तिजननं दमिताघदोषं संस्फुरद्रुचिरकान्तिसमेतकायम् । कीर्तिधाम हितमात्मविशुद्धये तं ज्ञातपुत्रजिनपं प्रणमाशु धीर ! ॥२॥ (आद्याक्षरैकत्यागात्) त्रयोदशाक्षरी अतिजगती जातिः । स्वः श्रीसुखाप्तिजननं दमिताघमीरां स्फुरद्रुचिरकान्तिसमेतम् । सत्त्कीर्तिधाम हितमात्मविशुद्धं, श्रीज्ञातपुत्रजिनपं प्रणमाशु ॥ ३ ॥ (अन्त्याक्षरद्वयत्यागात्) द्वादशाक्षरी जगतीजातिः । श्रीसुखाप्तिजननं दमिताचं संस्फुरद्रुचिरकान्तिसमेतम् । कीर्तिधाम हितमात्मविशुद्धं श्रीज्ञातपुत्रजिनपं प्रणमाशु ॥ ४ ॥ (आद्याक्षरैक-अन्त्याक्षर द्वयत्यागात्) एकादशाक्षरी त्रिष्टुप्जातौ स्वागता । स्वःश्रीसुखानन्दमिताघदोषमीशं स्फुरत्कान्तिसमेतकायम् । सत्कीर्तिधामात्मविशुद्धये तं श्रीज्ञातपुत्रं प्रणमाशुधीरम् ॥ ५ ॥ (पञ्चमषष्ठसप्तमाक्षरत्यागात्) एकादशाक्षरी इन्द्रवज्रा । सुजननन्दमिताघदोषं रुचिरकान्तिसमेतकायम् । महितमात्मविशुद्धये तं त्र जिनपं प्रणमाशु धीर ! ॥ ६ ॥ (त्र = हे) पंक्तिजातिः । सुजननंदमिताघं रुचिरकान्तिसमेतम् । . महितमात्मविशुद्धं त्र जिनपं प्रणमाशु ॥ ७ ॥ (त्र = हे) अष्टाक्षरी अनुष्टुप् जातिः । स्वःश्री सुखाप्तिजननं स्फुरद्रुचिरकान्तितः । सत्कीर्तिधामशुद्धं श्री- ज्ञातपुत्रं नमाऽऽशुधीः ॥ ८ ॥ अनुष्टुप्जातौ श्लोकः । पथ्यावक्त्रम् । Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ स्वःश्रीसुखाप्तिजननं, मिताघदोषं स्फुरद्रुचिरकायम् । सत्कीर्तिधामहितमा-त्मशुद्धये श्रीजिनं प्रणम ॥९॥ आर्या । स्वः श्रीजननं दमिताघ-मीशं, रुचिरकान्तिसमेतम् । सत्कीर्तिधाम विशुद्धं श्रीज्ञातं जिनपं प्रणमाशु ॥१०॥ आपातलिका । स्वःश्रीखा(ख)जननन्दमिताघ-मीशं रुचिरकान्तिसमेतम् । सत्कीर्तिमहि[त]मात्मविशुद्धं श्रीज्ञातजिनपं प्रणमाशु ॥११॥ आपातलिकापरांतिका । षोडशमात्रिकसुपवित्रा वा । स्वः श्रीजननन्दमिताघ-मीशं चिरकान्तिसमेतम् । सत्कीर्ति धाम विशुद्धं (सत्कीर्ति[सु]धामविशुद्धं) ज्ञातं जिनपं प्रणमाशु ॥ १२ ॥ . इयं आपातलिका चारुहासिनी । ऋद्धिविजयेन लिपीचक्रे । (खरतरगच्छ भंडार, मांडवी, क्र. १०४/१९७१) २. चित्रबन्धवीरजिनस्तवनं विश्वश्रीद्ध रजश्छिदे गरिमद त्वां दर्पनाशे क्षम सद्वाचं स्तुव-श्रवं (?) परिहरन् मासूर्य ---- । निस्तन्द्रं तपनद्धसुंदुरितसूदारिक्यवीरस्थिरं (?) रम्यश्रीविरसोसकामनिकृति भद्रालयं शंकर ॥ [चक्रम्] १ तनुते यन्नुतिं जंभ-जिद्राजीमुदिता हृतम् । तस्तु -- ति तंद्राजि भयं भावेन भास्वता ॥ मुशलम् ॥ २ ततयस्ते नृणां मुक्त्यै या नीरुक्त नवेनता । तारभाभारता पास सपाताक्षररक्षता ॥ शूलम् ॥ ३ ततकष्टावलीलाव लीला -- वरारताः । ताररावश्रुतौ वीर रवीद्धाभसुरास्तव ॥ शङ्खः ॥ ४ तज्जाः सदमलेक्ष्वाकु - वंशजे युः शर्मिस्तव । वरेण्यातन विश्वेशः शरणं सुसुखेच्छवः ॥ सुश्रीकम् ॥ ५ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० तजशमीशस्त्राल (?) मचंदतघनारव । वधवल्ल्यां वह्निवद्यो वरिवत्सि वशी वरः ॥ चामरं ॥ ६ तरणे चिररूढाम - तमस्सु चरणादर । रसिकस्तव भूयासं सेवनेऽनन्यमानसः ॥ हलः ॥ ७ तत्यजेऽत्र तवाचण्ड पार्श्वमिन्द्रस्तुताहस । सर्वदोषैस्तत्क्षयाशां शांताघ ददतो विशाम् ॥ भल्लः ॥ ८ तरीवाचरसि ज्ञाने दारनिःशेषभूस्पृशाम् । शान्तितुष्टिकरापार-भवाब्धौ विश्ववन्दितः ॥ धनुः ॥ ९ तम्यतिक्रम्यतेऽनंत-मोहदुःखमयीशितः । तवेन सेवयावश्यं भव्यैः स्थिरशिवस्थित ॥ खड्गः ॥ १० तमहं विनमामीन तन्द्रवीर सतां मत । ततो यस्त्वं व्यधा विश्ववित्तं वीतरिपोत्तम ॥ शक्तिः ॥ ११ तपःशमरमाराम तरशं गुणसत्तम । मम गुप्ताश्रिताधीश मरणक्लेशहद्दिश ॥ छत्रम् ॥ १२ तविषे लसत्यमोहा शयचारुचायशः शक्रालीवन्नतेर्ज्ञान-भासुरापपरासुभा ॥ रथपदम् ॥ १३ तवीत्यवीतसाराज्ञा प्राणिनां प्रास्तभी शुभा । भाराशे शेषभावारीन् शिवदातवरंहसा ॥ पूर्णकलशः ॥ १४ तत्वसारतरसाभा त्वयि राज्यदधीरसा । साराद्भुते मोहवीर रज्यते वीरमोदतः ॥ अर्धभ्रमः ॥ १५ तरसास्तमोहत्वेत तत्त्वेह प्रशमान्वित । तन्वि(त्त्वि)मान्यवनीतात तनानीष्टान्यसारत ॥ कमलम् ॥ १६ तवांही वंदते सानु-कम्पं यः सायभावतः । तस्य नानागुणस्यान्यो नम्यो नो नोदितैनसः ॥ शरः ॥ १७ तत्परः सततं शिश्री-षामि त्वां दारितांहसम् । .. संपदादापसंसार रसासंतमसंमत ॥ त्रिशूलम् ॥ १८ तमोनाश्रितशर्माशु नेहे मन्द दयान्वित । तथा त्वत्तः सुरेशत्वं किन्तु बोधिधियं हित ॥ वज्रम् ॥ १९ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ . अनुसन्धान-७९ यस्तेऽष्टादशचित्रचक्रविमलं वीर स्तवं सश्रियं भक्त्यैवं कुलमण्डनो (?) ततमहाज्ञानातनुश्रीशुभ । मुक्त(क्ति) श्रीयुत चन्द्रशेखरगुरुप्राज्यप्रसादादमुं तं ताताववरः स शांततमसं भासा ततः संततं ॥ २० ॥ परिधिकाव्यम् चक्रयोमुखशूलशंखसहिते सुश्रीकरी चामरे सीरं भल्लशरासने असिलता शक्त्यातपत्रे रथः । कुम्भार्धभ्रमपंकजानि च शरस्तस्मात्रिशूलाशनी चित्रैरेभिरभिष्टुतः शुभधियां वीर त्वमेधि श्रिये ॥ २१ ॥ इति चित्रबन्धवीरजिनस्तवनं सम्पूर्णम् । कृतं ग. ऋद्धिविजयेन (खरतरगच्छभंडार, मांडवी, क्र. १०४/१९९१) Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० गणधरप्रबोध कर्ता : वाचक सकलचन्दगणि - सं. विजयशीलचन्द्रसूरि वाचकप्रवर श्रीसकलचन्द्र गणि ए तपगच्छपति विजयदानसूरीश्वरना अग्रणी अने महाविद्वान शिष्य हता. तेमनी प्राकृत, संस्कृत नानी-मोटी अनेक रचनाओ मळे छे. तो गुर्जर भाषामां पण तेमणे अनेक रचनाओ सरजी छे. 'अनुसन्धान'मां तेमनी केटलीक कृतिओ प्रथमवार प्रकाशित थई छे. __ आ अंकमां तेओनी एक अप्रगट गुर्जर रचना प्रगट थाय छे – 'गणधरप्रबोध'. श्री महावीरस्वामीनी स्तवना करती, ३ ढाळ अने ४९ कडीनी आ रचनामां, महावीर प्रभुना ११ ब्राह्मण-गणधर-पट्टशिष्यो साथेना तात्त्विक-तार्किक संवादनी वात रजू थई छे. ते ११ पण्डितोना, वेदवाक्योना खोटा अर्थघटनने कारणे उद्भवेला संशयो, तथा तेना भगवान महावीरे करेला समाधान- अतिसंक्षिप्त निरूपण आमां थयुं छे. आ आखीये घटना तथा चर्चा, जैन ग्रन्थोमां 'गणधरवाद' ना नामे ख्यात छे. ते चर्चा भारे शास्त्रगहन छे. अहीं कविए बहु ओछा अने सरल शब्दोमां, ते गहन चर्चाने निरूपी छे. मध्यकालना आवा कविओनुं कविकर्म ईश-स्तुतिपरक ज महदंशे रहेतुं. ईशस्तवनामां ज तेओ पोताना कविकर्मनी सार्थकता जोतां. १६मा तथा १७मा शतकना आ कवि, एक जैन साधु छे तेथी, तेओ पण ते ज परम्पराने अनुसरे छे. चाणस्मास्थित 'नित्यविनयजीवन मणीविजय जैन पुस्तकालय' नामे ज्ञानभण्डारनी, २ पृष्ठनी, १६१६मां लखायेली हस्तप्रति परथी आ सम्पादन थयुं छे. ते भण्डारना कार्यवाहकोनो आभारी छु. 'गणधरप्रबंध' एवा नामे सचिपत्रमा नोंधायेली आ प्रतिमा प्रथम 'गणधर प्रबोध' छे, अने बीजा पृष्ठना अन्तभागे आदिनाथ भगवाननी, ४ श्लोकात्मक, आवश्यक क्रियामां बोली. शकाय तेवी स्तुति छे. तेना रचनार कोण ते विषे कशो उल्लेख नथी. ते स्तुति पण आनी साथे. ज.आपवामां आवी छे. Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ अनुसन्धान- ७९ वाचक श्रीसफलचन्द्रगणिरचितं गणधरप्रबोध-श्रीवर्धमानस्तवनम् ॥ सो सुत तिसलादेवि सतीनो, जस पद पूजइ रमणि सि ( स ) चीनो । जस तणु सुभगो विगत ज रीनो, राजहंस जो कृपा-दीन ॥१॥ जो महिमा क(कु) ल नृपति खजीनो, सोषक जो मिच्छत्तमतीनो । जिण परमाद कीओ न घटीनो, सोइ वीर मि ध्यानि कीनो ॥२॥ वर्धमान जिन त्रिजगधणीनो, ध्यान धरी करि पातक रीनो । जो समतारस - पानि पीनो, मनवंछित जस नामि सीनो ॥३॥ जो जिनमुनि ध्यानार्णवमीनो, जस गति वायु चरड़ सुख झीणो । जो प्रभु विचरिउ देशि अदीनो, जस नादिं जीतु सुरवीणो । अकलरूप हइ जो सामीनो, तस यानि सम पातिक खीणो ॥५॥ जस दंसणि जन ईतिविहीणो, सुगुरु भयो जो सम जोगीनो । 'साल' तरूतलि झाणि सीनो, तेणि ध्यानि प्रभु केवल लीनो ॥६॥ खिणु उपदेस तिहां प्रभु दीनो, अचरजु तिहां प्रभु लाभिहं छीनो । दस दो जोयण निशि चलि आए, पगडिइ माझिअपापापाए ||७|| समवसरणि बेइठ सुरि कीनो, राजति जइसो मुगटि नगीनो । धर्म सुणि भविजन जिन लीनो, जाण ति सवणि अमृत पीनो ॥८॥ दुंदही वाजइ मधुर उतीनो, अभविक मुगसेलु नही भीनो । वात चली आयु सब बेदी, भव अणंतका संसय छेदी ॥९॥ सुरविमाण अंबरिथी आवइ, यगनिवाड छोडी सब जावइ । गोतममुख माहण सबु खीजइ, सुरस्यूं कोप कीईं क्या लीजइ ॥१०॥ एणि जिनि जाणपणुं हम छीजइ, ऊठि चलउ ऊसपति पाडीजइ । चउ च्यालांशत माहण मिलीआ, उसमांथी धुरि गोतम चलीआ ॥ ११॥ छात्त विविधि बोलइ बरुदाली, जिनरिधि देखि चली पगि खाली । हा अविचार करी हुं आयु, अब क्युं जावति आप छपायु ॥१२॥ तब मधुरी झुणि साँइ बोलायु, इंदभूति गोयम ! सुखि आयु ? | चमकि क्युं मो नामिणिइ जाणिउ, बूझुं हुं छू तिजग - पिछाणिउ ॥१३॥ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० १७ .......... उ सब जाणपणुं तउ छाजइ, जु मुझ चिंत कु संसय भाजइ । तब तिभुवणकउ राजा बोलइ, तीन भुवन हरषि शर डोलइ ॥१४॥ मुझ तुझ गोयम ! संसय सूझइ, जीव नही........ । ..........., एही पद जीवसत्ता दूझइ ॥१५॥ ___ ढाल ॥ आसाउरी अधरस देसाख ॥ वीर मधुरी वाणि बोलइ इंद्रभूति सुणो, वेद पद विपरीत म भणो । समउ अरथ सुणउ । वेदपद 'ददद' दमो दानं दया अरथ घणो ॥१६॥ वीर मधु० ॥ विज्ञानघन ऊपजी आपइं पंच भूत थकी । पंचभूतविणासि विणसइ इसी वेद फकी ॥१७॥ वीर० ॥ एणि पदि संसय पड्यो तुं इंद्रभूति सुणे । आच्छि जीवो जाणि लख्यणिं चेतनादिगुणे ॥१८॥ वी० ॥ पुण्यपापह तणु भाजन जु री जीव नही । तु किस्यानई यागमुख शुभ क्रिया तिही कही ॥१९॥ वी० ॥ इति सुणी गोयम पबूधो पंचशत सार्थि । दीख दीधी सूरिपद दई वीरजिन हाथिई ॥२०॥ वी० ॥ . लोकपाल कुबेर दीनां धर्म उपगरणं ।। यतनस्यूं जउ यती न धारइ होसइ अधिकरणं ॥२१॥ वी० ॥ सुणी आयु अग्निभूती तिम ज गर्व धरी । वालस्यूं हूं निज सहोदर तर्कवाद करी ॥२२॥ वी० ॥ तिम ज वीरि बोलाइ लीनो, कर्मसंदेही । कर्म रूपी जीअ अरूपी बंधगति केही ॥२३॥ वी० ॥ वीर भासइ सुखदुक्खादिक जीव बहू भांती । कर्म विणुं ए केणि चितरिउ राखि मति जाती ॥२४॥ वी० ॥ परिवारस्यूं बूझवी दीख्यो, वायुभूति सुणी । 'सोइ तनु सो जीव' संसय भाजि त्रिजगधणी ॥२५॥ वी० ॥ नीरथी पंपोट परि सो देहथी ऊपजीइ । इस्यूं जे तुं चिंति जाणइ कुमति तिं इह भजी ॥२६॥ वी० ॥ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ जीव इंदिय गया पूठई विषय चिंत धरइ । देहथी जु गयु इंदिय पुरुष किम समरइ ॥२७॥ वी० ॥ तिम ज सो परिवारि दीख्यो विगत सुणि आयु ।। 'भूत हइ उर नहीं' जाणुं सून्य जग भायो ॥२८॥ वी० ॥ विगत सुण तिं झूठ बुझो भूति जग भरिउ । चंद रवि भू प्रमुख देखइ प्रतखि पातरिउ ॥२९॥ वी० ॥ ढाल ॥ राग गुडी ॥ तिम तिम समकितधर थोडिलउ - ए ढाल ॥ भावि पटोधर वीरनो सामि सुधर्मा मुणिंद । समवसरणि जब आवीउ देखि सुरनर-इंद ॥ भावि० ॥३०॥ वीरजिणिदिं बोलावीउ ए संसय तुझ जोइ । एणि भवे देहिअ जे जस्यो सो परि भवि तिम होइ ॥३१॥ भावि० ॥ काज हुइ कारणसमूं येम जवथी जव होइ । सालिथकी जव किम होइ मुझ ओर न भंति कोइ ॥३२॥ भावि० ॥ प्रभु कहइ बंध छइ जूजूओ कर्मप्रकृति बहु भेद । नारि वली नरपणूं लहइ बहुगति पलटि वेद ॥३३॥ भावि० ॥ इम बूझवि जिनि दीखीउ पंचसयां परिवारि । तब मंडित पणि आवीओ बंधन-मोख्य विचार ॥३४॥ भावि० ॥ प्रभु कहइ हेतु सत्तावने देहिं बाधि रे बंध । न्यानादिक धरी छोडवि मुगति कर्म नही बंध ॥३५॥ भावि० ॥ . प्रतिबोधी प्रभु दीखीओ अऊठ सया स्यूं सोय । मोरीअपूत बोलावीओ तुझ मनि देव न कोइ ॥३६॥ भावि० ॥ रवि विधु बुध ग्रहगण जोउ समवसरणि पणि देव । सो समझावी मुनि कीउ अऊठसयां करि सेवि ॥३७॥ भावि० ॥ नारक-संसय आवीओ तोहि अकंपित कांइ । ते तिहां परवश दुखि पड्या नारक नावि रे जाइ ॥३८॥ भावि० ॥ समझावी व्रत थापीउ तीन सयां स्यूं सोइ ।। पुण्य न पाप संदो(दे)ह तुं अविचलभायो जोइ ॥३९॥ भावि० ॥ सुकुल-स(सु)रूप-धनायुषो पुण्य हुइ नही पापि । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० पापि बहुदुखी देखीइ इम तुं संशय कापि ॥४०॥ भावि० ॥ तीन सया स्यूं व्रत धर्यो मेतारय तब आइ ।। नही परलोक तुं संसई जातिसरण किम थाय ॥४१॥ भावि० ॥ इम कही सो पणि बूझव्यो तीनसयां परिवार । विबुध प्रभास पधारीआ, नवि निरवाण विचार ॥४२॥ भावि० ॥ मोख्य करमखय जाणिवो इम छइ वेदनि वाकि । तु तुझ मनि संदेहो कां मुगति छती चित ताकि ॥४३॥ भावि० ॥ प्रभु इम कही सो बूझवी दीख्यो तिशत समेत । इम एकादश गणधरा त्रिपदी लिं श्रुतहेतु ॥४४॥ भावि० ॥ अंग उपांग पूरव रची ऊभा प्रभुपदपंति । सुरभि चूरण हरि थालथी प्रभु गणधर शिरि दंति ॥४५॥ भावि० ॥ गणिपद तीरथ अणूजतां आणी चंदनबाल । दीखी बहु नृपकुमरि स्यूं वरिसइ कुसुम सुरमाल ॥४६॥ भावि० ॥ संघ चतुरवधि थापीओ बलि लावि महीपाल । इम करतउ वीर ध्याईओ दुरित हरई त्रिणि काल ॥४७॥ भावई पटोधर वीरनउ० ॥ इति विगतमोहं विजितकोहं भुवनबोहं पारगं संसया(य अ)पोहं कुगतिरोहं जगतिसोहं पारदं । केवलालोकं नमत लोका वीर-पुरुषोत्तमवरं सिरि विजयदाणमुर्णिदसेवक सकलचंद शुभाकरं ॥४८॥ इति श्रीगणधरप्रबोध श्रीवर्धमानस्तवनम् ॥ संवत् १६१६ वर्षे फागुमासे शुक्लपक्षे पूर्णिमायां तिथौ लिखिता ॥ अज्ञातकर्तृक श्रीआदिनाथस्तुतिः ॥ युगादिपुरुषेन्द्राय युगादिस्थितिहेतवे । युगादिशुद्धधर्माय युगादिमुनये नमः ॥१॥ ऋषभाद्या वर्धमानान्ता जिनेन्द्रा दश पञ्च च । त्रिकवर्गसमायुक्ता दिशन्तु परमां गतिम् ॥२॥ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० अनुसन्धान-७९ रीनो जयति जिनोक्तो धर्मः षड्जीवनिकायवत्सलो नित्यम् । चूडामणिरिव लोके विभाति यः सर्वधर्माणाम् ॥३।। सा नो भवतु सुप्रीता निर्धूतकनकप्रभा । मृगेन्द्रवाहना नित्यं कूष्माण्डी कमलेक्षणा ॥४॥ केटलाक शब्दो खजीनो खजानो कडीक्र. २ घटीनो घडीनो क्षय पामे उपद्रव सीनो आसीन-बेसेला माझिअपापापाए मध्यम अपापानगरे उतीनो ऊंचास्वरे (?) अभविक अभव्य-मोक्षने अयोग्य मुगसेलु मगशेलियो पत्थर बेदी वेदना जाण यगनिवाड यज्ञनो वाडो ऊसपति चउच्यालांशत ४४०० छात्त छात्र बरुदाली बिरुदावली जिनरिधि जिननी ऋद्धि खाली खाली चडवी (?) छपायु छूपावू फकी फाकी-फक्किका-अर्थ दीख दीक्षा पंपोट परपोटो दीख्यो दीक्षा आपी विगत व्यक्त (विशेष नाम) पांतरित पटोधर पट्टशिष्य वेद-मोहनीय कर्म * ई. ई.* 8.34 1 वेद Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० श्री सिद्धचक्ररास अथवा श्रीपालरास - सा. दीप्तिप्रज्ञाश्री श्री सिद्धचक्र माहात्म्य उपर श्रीश्रीपाल रास अनेक रचाया छे जेमांनी अमुक रचनाओ प्रगट छ । प्रस्तुत श्रीश्रीपालरासनी अप्रगट कृतिनी हस्तप्रत(झेरोक्स) पू. आ.श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी म. पासेथी मळी छे । ___ आ श्रीपालरासना अन्ते रासना कर्ता, तेनी गुरुपरम्परा, गच्छ तेमज रासनी रचना संवत प्राप्त थाय छे ते आ प्रमाणे - नायल गच्छना श्री गुणसमुद्रसूरिना शिष्य श्रीगुणदेवसूरिना शिष्य श्रीगुणरत्नसूरिए वि.सं. १५३१ ना मागशर सुद-रना गुरुवारे आ श्रीसिद्धचक्ररासनी रचना करी छ । 'जैन गूर्जर कविओ'मां आ कृति गुणदेवसूरिना शिष्य 'ज्ञानसागर उवज्झाय' कृत नोंधायेली छे । कर्ता अंगे ज विसंवाद जोवा मळतां आ रासनी बीजी प्रत मेळववा प्रयत्न करतां 'श्रीमहावीर जैन आराधना केन्द्र - आ. श्रीकैलाससागरसूरि गुरुमन्दिर - कोबा'ना भण्डारमाथी आ रासनी हस्तप्रत झेरोक्स तेओ पासेथी मली । तेओए प्रति झेरोक्स आपी ते बदल आभार । ए प्रति पर सा. क. ५७७७८ नंबर छ। जेमांअन्ते 'ज्ञानसागर उवज्झाय' कृत आ रचनाने समर्थन मळे छ । 'ज्ञानसागर उवज्झाय' गुणरत्नसूरिना गुरुभाई हता एवं जाणवा मळे छ । श्रीशीलचन्द्रसूरि म. पासेथी मळेली प्रतनां पानां १५ छे एमां १५मा पत्रमां एकज बाजु लखाण छे । सं. १६९९ मां - एटले १७मी सदीना अन्ते - आसो सुद-७ ना राजद्रंगमां लखायेली ए प्रत छे. एमां गाथा - २६९ छे । कोबानी प्रतमा २० पत्र छे. १९ पूरा अने २०मा पत्रनी एक बाजु अडधुं लखेल छे । जे सं. १७६९-एटले १८मी सदीना उत्तरार्धमां-चैत्र-सुद १३ना मंगळवारे लखायेली छे । एमां गाथा ३१९ छ । बन्ने प्रतमां मुखडं अने अन्त समान छ । कोबानी प्रतमां भाषा छन्दमां ४ चरणनी गाथा छे अने वाचनामां-८ चरणनी गाथा छ । शी. प्रतनी वाचना मान्य राखी कोबानी प्रतना पाठभेदने नीचे नोंध्या छ। मूळ वाचना छे तेमां प्रयोग 'अउ-अइ' अन्तवाळा छे । दा.त. - 'कहइं, सांभलउ, . Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ अनुसन्धान-७९ पंडितनइं-अछई' वगेरे. ज्यारे कोबानी प्रतमां एज प्रयोग-'कहै, सांभलो, पंडितनें, अछै', ए रीते लखायेला छे । कोबानी प्रतमा जे गाथा नथी तेने वाचनामां → - वच्चे लखी छे । श्रीपालराजा चम्पानगरीनुं पिता- राज्य लेवा नीकले छे ने दुर्मुख दूतने अजितसेन राजाने त्यां मोकले छे ते पछी, - दूतनो अजितसेन साथेनो वार्तालाप, युद्ध, अजितसेन राजानी हार, वैराग्य अने दीक्षा, ते पछी अजितसेन मुनिना मुखेथी श्रीपालना पूर्वभवनी वात अने नवपदनुं विशिष्ट रीते श्रीपाले करेलु उजमणुं आ बर्षा वर्णन कोबानी प्रतमां लगभग ४५ गाथामां पथरायेलुं छे, जे मूळ वाचनानी प्रतमां नथी । ते पछी आगळ छेल्ली ढाल बने प्रतमां समान छे । शक्य छे के ए लखतां रही गइ हशे एटले आ गाथाओने (कोबानी प्रतनी) 卐....... नी वच्चे मूळ वाचनामां ते स्थाने उमेरी दीधी छे ।। गाथा क्रमाङ्क बन्ने प्रतमां १ थी १०० पछी फरी १ थी शरु करेल छे, जेने आ वाचनामां १ थी सळंग करी राखेल छे । आ वाचनामां रासनी कुल - ३१५ गाथा थई छ । आज सुधीना प्रगट रासनी रचना १८मा सैकानी छे ज्यारे प्रस्तुत रचना एनाथी जूनी (पूर्वेनी) १६मा सैकानी छे । वर्तमानमां जैन समाजमां सौथी वधु प्रचलित श्रीपालरास उपा० विनयविजयजी महाराज अने उपा. यशोविजयजी म.सा.नी संयुक्त रचना छे. ते रासनी साथे आ श्रीपालरासनी तुलना कथानी घटनाथी जोतां प्रस्तुत रासमां अमुक स्थले विशेषता जोवा मले छे । जेम के - - गाथा २५ - प्रथम मयणासुन्दरीनां लग्न अने पछी सुरसुन्दरीनां लग्ननी वात । गाथा - ३५मां 'आसोई चैत्र आठमि धुरि धवल' वर्तमानमा सिद्धचक्रनी ओलीनो आरम्भ आसो-चैत्र सुद सातमथी थाय छे । अहीं 'आठमि' कही छे जे जूनी परम्परानो निर्देश छे, शाश्वती अट्ठाइना पहेलां आठ दिन हता - आठमथी पूनम सुधीना । पछीथी जे फेरफार थयो ने परम्परा चाली ते. आजे छे । गाथा - ४० मां - ससराने त्यां जतां ज - "मनि विमासण थई श्रीपाळ, ससरातणइ कुलि वसती लाज" - ससराने त्यां रहेवामां लाज आवे एम श्रीपाल मनमां विमासे छे ! Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० २३ गाथा - १०७मां - महापूजानी वात । गाथा - १२२मां - कनकहेतु राजा मन्दिर-द्वारे बेठा छे, ज्ञानी ऋषि आवे छे अने राजा पूछे छे 'अमारा जमाईनुं नाम शुं? तेना मा-बाप कोण अने क्यांना छे ?' त्यारे तेना जवाब साथे ऋषि कहे छे 'सदाचार श्रीपालकुमार'।। गाथा - १८१ मां धवलसेठ श्रीपालने मारवा केवी रीते जाय छे ते उल्लेख छ - "दोरीयइ बांधी चंदनगोह, माझिम राति नांखी चडइ" । गाथा - २३७ थी २३९ मां - श्रीपाल माताने मलवा पोतानी बधी स्त्रीओने तेडीने आकाशमार्गे घरे जाय छे ने त्यां बधा अंतेउर मळे छे त्यारे मयणासुंदरीने पटराणी तरीके स्थापे छे ।। गाथा - ३०७ मां चार मंगलनी वात सरस कही छे - "पहिलं मंगल सवे अरीहंत, बीजुं सिद्धचक्र जयवंत त्रीजुं विमलदेव सुविसाल, चोथु मंगल राय श्रीपाल" आम अनेक प्रसंगमां कविए सरस आलेखन कर्यु छे । ए६० ॥ करकमल जोडेवि करि, सिद्ध सयल पणमेसु श्री श्रीपाल नरेंद्रनउ, रासबंध पभणेसु ॥१॥ महीयलि मंत्र अनेक छइ, पांपलि म पडि गमार भवसायर ते ऊतरइ, जउ जपीयइ श्रीनवकार ॥२॥ श्रीगुणदेव पसाउलइ, रचीयइ कवित 'रसाल ज्ञान भणी सह सांभलउ, सिद्धचक्र गुणमाल ॥३॥ सुणतां श्रवणे सुख हुयइ, भणतां वयण पवित्त नवपद महिमा सांभलउ, हृदय धरी एक चित्ति(त्त) ॥४॥ १. श्री गुरवे नमः । २. गुरुदेव । ३. विसाल । Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ चउपई गिरुयउ मालव मंडन देस, जिहां ऊजेणी नयर निवेस राज करइ पुहवीय नरिंद, जाणे जगि अवतरीयउ इंद ॥५॥ सोहगसुंदरि राणी नाम, बीजी रूपसुंदरि अभिराम गुण सोभागइ रतनइ प्रीति, बे चालइ भूपतिनइ चीति ॥६॥ पुत्री रयण अछइ तसु नारि, सुरसुंदरि बेटी सुविचारि मयणसुंदरि बीजी बुद्धिवंत, लीला लहूं करइ गुणवंति(त) ॥७॥ सुरसुंदरि पंडितनइ पासि, सास्त्र मिथ्यात भण्या उल्लासि मयणाई सीख्यउ सिद्धांत, कर्मग्रंथ तसु वसीयउ चीति(त) ॥८॥ राय बोलावइ मननइ रंगि, बेहू बइसारी लेइ उछंगि देखी कुमरी चिंतइ भूप, कइ कमला कइ सरसति रूप ॥९॥ मन हरखइं बोलावइ राय, समस्या एक भणउ अम्ह माय मुझ पूछी जे समस्या कहइ, वंछित वर ते बेटी लहइ ॥१०॥ भणीयउ भूपति पदनउ छेह, कहउ कुण पुण्यइं लहिस्यइ एह . जं जं मनि आंपणइ सुहाय, सुरसुंदरि बोली तसु ठाय ॥११॥ धन यौवन विचक्षणपणुं, रोगरहित नइ रूप ज घj मनवंछित जउ मिलीयउ नेह, राजन पुण्यइ लाभइ एह ॥१२॥ मयणसुंदरि बोलावी बाल, भणइ समस्या कहइ भूपाल जिणवर वचन चतुर चित्त लहइ, वाणी अमी समाणी कहइ ॥१३॥ विनय विवेक विचार संतोष, निर्मल शील देह निरदोष मुक्ति सखीस्युं अविहड नेह, राजन पुण्यई लाभइ एह ॥१४॥ आणंदियउ बोलइ महाराज, हुं तुम्ह तूठउ बेटी आज . मई तूठइ तूठओ जगदीस, ततखिण मयण हलायउ सीस ॥१५॥ खंति धरी मालवपति भणइ, सीस हलावियउ कारण किणइ आभात (आम) तात अणबोल्या रहउ, फोकट गर्व सभामाहि वहउ ॥१६॥ ४. लहुअ लगें गुणवंत । ५. बेटीनें। ६. देइश राज । Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० साचु बोलइ थास्यइ मर्म, हर्ता कर्ता एकज कर्म कर्म संयोगइ जेहनइ जिस्यउ, मिलस्यइ वर आवी ते तिस्यउ ॥१७॥ मयणसुंदरिना सुणीआ वयण, रायइं रत्तां कीधइ नयण सुणिज्यो सु(स)भा सभापति जाणं, जिमइ जुआरिनइ कडब नीआण ॥१८॥ कोपइ धमधमतउ नरनाह, चढी तुरंगम बाहिरि जाय आगलि ऊडइ अति घणी खेह, कहि महिता स्युं आवइ एह ॥१९॥ दूहा मंत्रीसर इणपरि भणइ, सुणि मालवपति वात ए पंडूर कुष्टीतj, ए संख्या सइ सात ॥२०॥ राजन मुंकउ वाटडी, वालउ वेगि तुरंग इहां जावा युगतुं नही, ल्यउ दिसि अवर सुचंग ॥२१॥ ॥ चउपई ॥ .. झटकी भूपति पाछउ वल्यउ, दूत उंबर- केडइ मिल्यउ थिरै थिर रहइ ऊजेणी धणी, सुणि वीनती राय एक अम्हतणी ॥२२॥ राय घणे संतोष्यउ दानि, कीर्ति ताहरी निसुणी कानि नारि एक अम्ह स्वामी आपि, नही तउ कीर्ति तुझ ऊथापि ॥२३॥ राय भणइ ए थोडं काज, कीर्ति कुंण विणासइ आज । तुम्ह स्वामी वेगइ बोलावि, अम्ह मंदिर ते तेडी आवि ॥२४॥ राजभवनि आव्यउ भूपाल, मयणसुंदरि बोलावी बाल कर्मि तुम्हारइ आण्युं आज, आ अंबर परणउ वरराज ॥२५॥ जब आदेस हूअउ नरनाथ, तब कुमरी ग्राउ कुष्टी हाथ हठि चढीयउ ऊजेणी नाह, चिहुं कलशे कीधउ वीवाह ॥२६॥ एक नटेइ पंडित, भण्युं, एक नटइ१२ धर्म अरिहंततj एक नइ ए मूंडी माय, एक भणइ वरांस्यउ राय ॥२७॥ ७. जाण अजाण । ९. पेडो ॥ ११-१२. निंदई ॥ ८. जारी। १०. उभो रहे ॥ १३. भणे ॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ लाख लोक इम बोलइ वचन्न, वायस कोटई बांध्यं रतन्न कुष्टी पेडू हरख्युं बहू, ऊतारइ लेइ ग्या वहू ॥२८॥ सुरसुंदरि बोलावी राय, मनगमतउ वर मांगउ माय आम तात जउ मांग्युं लहुं, मनवल्लभ वर नामज कहुं ॥२९॥ कैरिजगुल संखपुरी सामि, अरिदमण नरेसर नामि । आमे तात जउ हुयइ ऊछाह, ए वरसुं मुझ करो वीवाह ॥३०॥ रायतणइ मनि हुयउ उछरंग, वेची धननइ कीधउ जंग भली सजाई भूपति करइ, सुरसुंदरी चालि सासरइ ॥३१॥ अंबर आगलि मयणा भणइ, चालउ जईयइ जिणवर भेटणइ राणु ऊठियओ तेणइ वयणि, बे पहुता जिणवर भूयणि ॥३२॥ जिण पूजी वलीया दंपती, संघसहित तिहां देखइ यती भाविइस्युं वंदइ मनिपाय, कर जोडी बइठा तसु ठाय ॥३३॥ बोलइ मयणा सुणउ रिषिराज, सारउ एक अम्हारं काज ते कांईं प्रभु आपउ मंत्र, नीरोगी जिम हुयइ कंत ॥३४॥ सहगुरु कहइ आंबिल तप करउ, जप मांडउ नवपदनउ खरउ आसोई चैत्र आठमि धुरि धवल, नवपद नव ओली ए विमल ॥३५।। पूजउ सिद्धचक्र त्रिण काल, कुष्ट अढारतणओ ए काल सहगुरू वयण लही तप करइ, दिन दिन दाठिक रोग ओसरइ ॥३६।। यंत्रतणुं जल लेई चंग, छांटइ छयं(य)ल अ(उ)बरना अंग नाठउ रोग तावडि जिम त्रेह, सातइसई नर वलीया देह ॥३७॥ अंबर टली हुयउं श्रीपाल, सहगुरु वयण फल्युं ततकाल कुमरीनइ मनि अधिकउ भाव, देखी जिनशासन परभाव ॥३८॥ ॥ वस्तु ॥ मयणसुंदरि मयणसुंदरि, नाह श्रीपाल एक दिवस अरिहंत घरि, नारि एक आवंति पेखि १४.-१६. अम ॥ १५. कुंडलयुगल ॥ (कुरुजांगल) १७. गुरुपाय ॥ १८. नवदिन ॥ १९. प्रति ॥ २०. अतिघणो ॥ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० २७ त[त] खिण अलजइ जई मिलइ, माइ पुत्र मुहकमल पेखइ । सासू पगि वेगई पडी, राजकुंअर(रि) सुविचारि पूछइ कुशल ज वत्तडी, बइठा भवन मझारि ॥३९।। ॥ वस्तु ॥ भणइ कमला भणइ कमला, निसुणी वहु वत्स२१ तुम्ह ससरउ परलोकि गयउ, देस राज ए बालक परट्ठीय ततखिण वयरी वींटियउ, कुमार लेई हुं विगर्मि नदिट्ठीय (नट्ठीय) दुज्जण डरती जई मिली, कुष्टी पेडामाहि संगति विणठउ पुत्र तन मुझ चिंता थई माय ॥४०॥ ॥ दूहा ॥ पुत्र पडींगण जोइवा, हुं चाली सुविचारि (र) । जोयउ मुझ न्यानी मिल्यउ, पूछ्युं कुशल कुमार ॥४१॥ न्यानी केरइ बोलडइ, हुं आवी इण ठामि नीरोगी बेटउ मुझ मिल्यओ, कुलवहू बुझ प्रमाणि ॥४२॥ रूपसुंदरि पीहरि गई, मयणां तणई वियोगि तिहां आवी जिन भेटिवा, दैवह तणइ २३संयोगि ॥४३॥ ॥ भाषा ॥ मयणसुंदरी भरतारसुं नयणे निहाली रूपसुंदरि झाखी हुई, कां ए जनमी बाली । नीर झरइ लोयण घj, कुल लाजइ बाधी मयणि निहाली माइनी, मन चिंता लाधी ॥४४॥ हसत वदन हरणांखीइं, जणणी आलंगी पूरव वात सहूए कही, तिण गुणेहिं रंगी अंगदेस सं(सिं)हरथ नाम, चंपा भूपालो कमला कुखइ ऊपनउ, कूअर२४ श्रीपालो ॥४५॥ २१. वहुवत्ति । २२. वगडि। २३. वियोगि॥ २४. राजाश्री श्रीपालो ॥ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ वेगइ तेड्यउ पुण्यपाल, रूपसुंदरी भाई अंबर रोग दूरि गयउ, रूप जोवउ जमाई मयणा तेडी प्रीयुस्युं, ऊजेणीमाहि मनरंगि आप्युं मालीयुं, मनतणइ उच्छाहि ॥४६।। मालवपति रयवाडीयइं, चाल्यउ तुरी चडीय मयणां खेलइ प्रीयुस्युं, रायदृष्टि पडीय देखी रूप कुमारनु, राजा अति कोपीयउ बेटीयइं बीजइ आदर्यउ, अंबर ईणइ लोपियउ ॥४७॥ जाणी आरति रायनी, पुण्यपाल संतोषइ सती सिरोमणि तुम्ह धूय, ए कुल किम दोषइं सिद्धचक्रनउ तप तप्पउ, सुंदरि मन भावि रोग रहित ए प्रीयु हूयउ, ते पुण्य प्रभावि ॥४८॥ ॥ दूहा ॥ अंग देस चंपा धणी, सिंहरथ भूपाल कमला कूखई ऊपनउ, राजन ए श्रीपाल ॥४९॥ ॥ चउपई ॥ तीणि व[य]णि रोमंचित राउ, २५कुमरि जमाई करइ पसाउ मई वाह्यउ पाथर भणी हाथ, चिंतामणि दीधुं जगनाथि(थ) ॥५०॥ सार करी पहुतउ भूपाल, मनि विमासण थई श्रीपाल ससरातणइ कुलि वसती लाज, राय राणा मुझ नटसि आज ॥५१॥ → चउहटइ चाल्यउ कुमर श्रीपाल, लोक सहू को बोलइ आल । एक भणइ ए जाणियउ एह, घरजमाई राख्यउ तेह ॥५२।। - ॥ दूहा ॥ घरि जमाइ घरि सुणुह, परथरि पेट भरंति विण अपमानह छोरु अह, मरइ कि दूरि भमंति ॥५३॥ २५. कुंअर ॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० ॥ चउपई ॥ भोजन नींद्र न भावइ नीर, सासू माय बोलावइ वीर पुण्यपाल अवसरनउ जाण, कहि कुंअर किण लोपी आण ॥५४|| दूहवण कुंण करेसइ रात, निश्चय बो लेवू परभाति(त) जई विदेसि करुं जउ काज, माय भलावू तां तम्ह आज ॥५५॥ काज परीच्यु७ ताहाँ हेव, तुम्ह ससरउ संभालु देव२८ दल मागीने चालउ चंग, तुं बइठां वाली दिउं अंग ॥५६॥ ससरानइ वलि लीजई राज, मुझ मांटीपणि आवइ लाज पुण्यपालि मान्युं सुविचार, तुं मोकलावइ घरनी नारि(र) ॥५७॥ नारी नीर भण्या(या) बे नयण, सांभलि प्राणनाथ मुझ वयण माय बापनइ आपइ छेह, पीहर सरिसुं नाणइ नेह ॥५८॥ थोडा घणा करइ घरमांहि, लाज करइ घरि आवइ नाहि पहिल भोजन न करइ रीति, अहनिसि चालइ प्रियनइ चीति ॥५९॥ भगति करंतां नीठुर थाय, नीछेछी देसाउरि जाय मयणसुंदरि मेल्हइ नीसास, केहउ पुरुष तणउ वेसास ॥६०॥ क्षामोदर तुं खीजइ कांय, तुझ खीज्यइ मुझ असुख न माय परलक्ष्मी भोगवतां लाज, आणी धन सारू तुझ काज ॥६१॥ प्रमदा रोती राखइ ध(धी)र, सई हथि लूहइ आंसू३० नीर सीपु "सपत करइ एकंति, सुंदरि आंबू(बू) ३२सही वरसंति ॥६२॥ भली भलाव(म)ण मयणा दीध, असि ३३मरउडडण नीय कर लीध कमला माडी लागुं पाय, पंथई पइठउ चंपाराय ॥६३॥ मारगि वहतां तरुवर हेठि, बइठउ नर एक दीठउ देठि कुंअर आवंतउ तीण इकल्यउ, विनय करीनइ साम्हउ मिल्यउ ॥६४|| २६. चालेवों ॥ २८. हेव ॥ ३०. आंखे ॥ . ३२. आवीस हु॥ २७. परीछ्युं ॥ २९. नीत ॥ ३१. समझावें एकांति ॥ ३३. सरसोडण नीय ॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० अनुसन्धान-७९ कर जोडी बोलइ नर छेक ३४, उत्तरसाधक जोईजैइ एक पुरुष रयण तुं भेट्यउ आज, सरस्यइं आज अम्हारुं काज ॥६५॥ कुंअर कहइ तुं विद्या साधि, एकान तुझ६ लीधुं कांधि उत्तरसाधक थयउ श्रीपाल, पूरी विद्या थई समकालि(ल) ॥६३।। विद्याधर तूठउ उच्छाहि(ह), आपी औषधी बे तसु ठाय एकइ जल ऊतरीयइ पूर, बीजी परदल जीपइ सूर ॥६७॥ विद्याधर मोकलावी कुमर, चाली आव्यउ भरुअछि ३ नगरि(र) भरुअछ पीठ प्रसिद्धं ठाण३८, कौतुक जोवा रहिउ सुजाण ॥६८॥ वाहण सय पंचनउ धणी, धवलसेठ करइ पूरणी थंभ्या वाहण किम्यई विरामि, घणइ प्रपंचि न छंडइ ठामि ॥६९॥ वारू भोग सजाई करी, धवलइ पूठी(छी) सीकोतरी सकति कहइ तउ बेटी४० तरइ, पुरुष हणी तु जउ बलि करइ ॥७०॥ कारण सगलुं प्रीछ्युं धवलि, वारू वस्तु लेई करकमलि जई भेटि भरुअछ, भूप, थंभ्या वाहण कहइ सरूप ॥७॥ भेटइ रंज्यउ बोलइ राय, अम्ह सरीखउ कहओ उपाय वाहणपति कहइ सांभलि खरुं, नर एक आपि अम्हे बलि करूं ॥७२।। राय आदेस हुअउ ४१अति भलउ, पुरुष विदेसी नइ एकलउ ते झालीनइ तुं बलि करे, ४२अम्ह देसाई नर परिहरे ॥७३॥ दस सहस धवलना सुभट, फिरिफिरि नयर निहाय(ल)इ वट्ट एकलमल नर दीठउ ट्रेठि, मिलीया पायक ठिठाठेठि ॥७४॥ पायक भणइ रे ऊठि अबूझ, रूठइ धवल हणेसी तुझ बलि देस्यइ योगिणिनइ वीर, तउ अम्ह वाहण तरस्यइ नीर ॥७५॥ चंपापति तव बोलइ हसी, सीहतणी बलि हुयइ ४३ए किसी रोसई चडियउ बोलइ निसंक, धवल तणी बलि घउ रे रंक ॥७६।। ३४. एक ॥ ३६. अम्यो ॥ ३८. जाण ॥ ४०. वाहण ॥ ४२. आ ॥ ३५. जोईई नर एक ॥ ३७. मझारि ॥ ३९. किसिं ॥ ४१. तस ॥ ४३. रे ॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० अझ(ड)यल्ल[च्छंद] कुप्पउ केसरि कोई करि झल्लइ, विसहरजीहइ को करि झल्लइ का (हा)लाहल ऊयरि को झल्लइ, दुज्जण सीपु किम को झल्लइ ॥७७|| ॥ चउपई ॥ असि काढीनइ ऊठउ वीर, पायक सवि ऊतारवू नीर दयावंत पापभुई बीहइ, नाक कान ऊतारी लीइ ॥७८॥ साहमी कोइ न मांडइ मुंठि, भाजी दल देवारिउं पूठि ऊभु रही ए रणि बोलइ धवल, नामइ सीस जोडी करकमल ॥७९॥ क्षमा करीनइ कोप वीसारि, मुझ वाहण तुं आवी तारि सोवन लाख कुंअर कहइ तीरि, तुझ वाहण चलावू नीरि ॥८०॥ सेठई मान्यउ लाख सोवन्न, बिहु जणस्युं मनाव्यउ मन्न बोलबंध करी बहु भेअ(उ), वडइ जंगि जई चडीआ बेउ ॥८१॥ नवपद समरी मुंकी हाक, तरीया वाहण वाजी ढाक चमक्यउ धवल कहइ सुणि वात, ल्यइ ग्रास अम्ह उलगि रात ॥८२।। आप्पउ ग्रास अम्हनइ करिकमल, दस सहस पायक नीज मलि सेठ भणइ अम्ह नथी काज, भाडं देइ चढउ नरराज ॥८३॥ रत्नदीव भणी मुंक्या मूलि, जई लागां बाबरनइ कूलि लेई सुहड धवल ऊतरइ, ईधण पाणी लोक तिहां भरइ ॥८४॥ बाबर देस धणी महाकाल, दाण लेवा आव्या समकाल सारथपति सहजई अबूझ, महीपति सरिसुं माडि झूझ ॥८५॥ बाबरनुं दल देखी पूरि, सेठ तणा भड नाठा दूरि। बांधी धवल लीयउ संघाति, ततखिण बोलाव्यउ श्रीपाल ॥८६।। धवला तुं बाबरीयइ बाध, जउ वाहण अम्ह आपउ आध हिवडां कापुं ताहरा बंध, वयरी नाद ऊतारुं खंध ॥८७।। ४४. विष कर ॥ ४५. साप को ॥ ४६. को कर ॥ ४८. देवरावी ॥ ४९. नायमल ॥ ५०. महाकाल ॥ लेई सुहड धवल मह ४७. भय ॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ धवल भणइ जे डैि (मि) इम चा(वा)हरूं, वहिची लेजे अर्द्ध ताहरु असिमर ऊडण वासी (मि) हाथ, बोलावू बाबर- नाथ ॥८८॥ ॥ दूहा ॥ बाबरपति इण परि भणइ, रहि रे म मरि गमार जीव जतन करि बालूआ, पापी अम्ह हथीआर ||८९।। अथ वा(पा)घडी छंद तुं रे ऊठिओ धुंबडे धसमसंति, मन मज्झि चतुर नवपद जंपंति करि क(का)ढीय कोपिइ य(अ)भंग खग्ग, तब धूजणं कायर केवि लग्ग ॥१०॥ तु रे सुहड सनाह पहरीय जरद, रणकाहल वज्जीर तूर नाद तु रे पेसण परठीय बाबरह रौह, बलवंत योधह वावइ लोह ॥९१॥ दल चंपीय मोगरि करइ घाउ, फणि चंपीय कंपीय सेसराउ भड भागा दंति दयंति घास, जे मोडंति मुंछ खायंति ग्रास ॥९२॥ दल नासीय त्री(त्रा)सी जाय दूरि, महाकाल बंध्धउ रणि सीप-सूरि छलि छं छं छटि छोडीय सेठि पास, मन मझि धवल धन हुई आस ॥१३॥ [छंद] - षट्पदं ॥ धवल छोडावियउ जाम, ताम असिमर ऊभारइ । हणस्युं बब्बरराय, हाक्क धरि कुंअर बारइ । भल मांटी पण तुझ, झूझ कायर का हारइ । क्षत्रीनइ घरि खोडि जे भड बंधा मारइ । इम भणी बंध छोडि छयल, महाकाल मनि हरखीयउ । साहसीक को राय तन, मन बुद्धि इस्युं परखीयउ ॥१४॥ ॥ चउपई ॥ सहस दस भड नासी गया, नादि संखतणइ आवीया धवल भणइ अम्ह नथी काज, जई ओलगउ अनेरुं राज ॥९५।। ५१. तु मुझ । ५२. वाही। ५३. धायु । ५४. दुज्जण । ५५. लोह ॥ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० ३३ पायक सवि राख्या श्रीपालि, वाहण आध लीयां संभालि तिहां बोलइ बाबरनउ धणी, स्वामि संभाल करउ अम्हतणी ॥९६।। ते तउ पुहतउ नगर मझारि, लीलावंत वयण अवधारि मदनसेना अम्हारी धूअ, पगि लागी परणावं तुंअ ॥९७॥ कुंयर भणइ कुल न्याति न ठाम, तुम्हे न जाणउ अम्हारुं नाम राजहंसनु को कुल कहइ, लक्षण देखी सहु इम कहइ ॥९८॥ मदनसेना परणी उच्छाहि, जुंग एक दीधुं नरनाहि रयण कनक पूरित भंडार, आप्यउ सोहलानउ परिवार ॥९९।। वा[ह]ण ठवी पहिराव्या वी(ची)र, संप्रेक्ष्या सायरनइ तीरि(र) मोकलावी वलियउ महाकाल, वाहणि चढी चाल्यउ श्रीपाल ॥१००॥ समुद्र उलंघी आव्या पारि, पहुता रत्नद्वीप मझारि सेठई तिहां वीनवियउ कुमर, तुम्ह वाणउत्र करउ को अवर ॥१०१॥ सुणीउ वयण कुमर तब हस्यउ, अम्ह तुम्ह अंतर कीजइ किस्यउ आवी बइसइ सायर तीरि, नितु नाटक करावइ वीर ॥१०२।। कुमर सभा आव्यउ नर एक, जाणे मूर्तिवंत विवेक करी प्रणाम बइठउ बुधिवंत, श्रीपाल आगलि कहइ विरतंत ॥१०३॥ आ चारु विद्याधर ठाम, रत्नसंचय नगरीनुं नाम कनककेतु तिहां पालइ राज, अमर सवे आणइ जस लाज ॥१०४॥ कनकमाला पटराणी सार, जाणे रंभ तणउ अवतार बेटी मयणमंजूषा जिसी, रूपइं नारि अवर नही तिसी ॥१०५॥ रौय विहार कनकमय [उत्तुंगे, आदिल बिंबं कनॅकमय चंग कनककेतु ठवीयुं सय हाथि, चउविह संघ मिली नर नाथि ॥१०६।। एकदिवस राजा नंदिनी, महापूज कीधी जिनतणी पूजानउ हुयउ अतिरोक, कौतुक जोवा मिलीया लोक ॥१०७॥ आव्यउ कनककेतु भूपाल, जोवा बेटी भक्ति रसाल ५६. कीयो। ५८. रतनमय । ५७. रंग । ५९. विसाल Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ अनुसन्धान-७९ जइ गंभारइ अरिहंत स्तवइ, कुंअरि कला देखी चीतवइ ॥१०८॥ विद्यारूपि ए ऊघाटि, ए जमली नथी वेताढि हुं आणुं वर एहनइ किसउ, एह जमलि अवर नही विसउ ॥१०९।। प्रणमी ऋषभदेवना पाय, राजा रंगमंडपि तब जाय देवराणी आफणीयई कमाड, बलवंत को न सकइ उघाडि(ड) ॥११०॥ कुमरीनइ मनि चिंता इसी, मइ आसातन कीधी किसी कनककेतु मनि चिंता घणी, मई अभगति कीधी जिनतणी ॥१११॥ अचरिज देखी चिंतइ भूप, एतउ कांइ देव स्वरूप ए परमारथ जउ लीजस्यइ, निश्चय भोजन तउ कीजस्यइ ॥११२॥ परतीअन्न बइठउ भूपाल, गगनवाणी हुई समकालि(ल) एकमना सांभलज्यो सहू, प्रजा प्रजापति जे हुं कहुं ॥११३॥ ॥ दूहा ॥ दोस न कोइ कुमारीह, नरवर दोस न कोय जिण कारणि जिणहर जड्युं, ते निसुणउ सहु कोय ॥११४॥ जे नर दीठइ ऊघडइ जिणहर तणा कमाड सो नर मयणमजूसीह होस्यइ ते भरतार ॥११५।। सिरि रिसहेसर ओलगणि, हुं चक्केसरि देवि मास अभ्यंतर सोय नर, निश्चय आविसि लेइ ॥११६।। ॥ चउपई ॥ वाणी अमर सुणी नरनाह, भूमंडलि बिमणउ उच्छाह राजकुमरि रलीयायत हुई, जिणवर सार करइ अम्हतणी ॥११७॥ ६१नही लगइ बहु राणोराणि, जिणहर जोई जोई जाणि मया करीनइ ऊठउ हेव, नयणि निहालउ त्रिभुवन देव ॥११८॥ चढी तुरंगमि पहुतउ भूयणि, जिणहर जडीयुं दीर्छ नयणि झटकइस्युं ऊघडीआ बार, आदीस्वरनइ करइ जुहार ॥११९॥ देवं(वां)गणि बइठउ छइ राय, न्यानी ऋषि आव्यउ तसु ठाय वंदी पग पहिलं तेहना, सुललित सुणी धरम देसना ॥१२०॥ ६०. परिवारें। ६१. तिहां लगइ बिहु ॥ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० कनककेतु कर जोडी कहइ, त्रिभुवन वात स्वामि तुं लहइ अम्ह जमाई कहउ कुण नाम, माय बाप किहां एहनुं ठाम ॥१२१॥ जे पूछ्युं ते कहीयुं सार, सदाचार श्रीपालकुमार टल्यउ संदेह हरख्यउ मनि भूप, जाण्युं जमाईनुं सवरूप ॥१२२॥ मदनमंजूषा लेई वरमाल, वर वरीयउ कुंअर श्रीपाल कनककेतु तिहां करइ वीवाह, आणी अविचल अंगि उछाह ॥१२३।। चंपापति परण्यउ जेतलई, चैत्रमास आव्यउ तेतलइ नवदिन आंबिलनउ तप तपइ, जिनवर आगलि नवपद जपइ ॥१२४॥ वाहण वस्तु धवल जे धणी, तेने बारइ६२ पडी अति घणी कोपि चड्या दाणी द्यई दाह, वीनवीयउ तेणे नरनाह ॥१२५।। राय भणइ जउ लोपी आण, चोर करी ऊदालउ प्राण कृपावंत कुमर श्रीपाल, वछीआयत म मारिस भूपाल ॥१२६।। सारथपति देवायें मान, वली अधिकेरुं वाल्युं६३ वान वाहणतणी हूई पूरणी, चाल्या मंदिर कुंकण भणी ॥१२७॥ हीरा माणिक मोती तणा, बीजा द्रव्यतणी नही ६४मणा आपी राय संप्रेड्या कुंअर, मोकलावी चाल्यउ वरनयर ॥१२८।। ॥ वीवाहलानी ढाल । वाहण पंचसय पूरीआ, पूरीआढा सवि सिढ६५ रे । स्त्रीयरयण लेई चड्यउ, कुंअर सहजि सनढ रे । गजगति चालइ चमकती, रणकती नेउर पाय रे कदलीदल रा(स)कोमल, जंघ जुअग(ल) तस ठाइ रे ॥ [१२९] नाभि गंभीर कृशोदरी, उर धरी पीन उत्तंग रे दाडिम कु(क)लीय दोतडां, अधर प्रवालडा रंग रे । नयणडे हरण हराविआं, वयणडे चंदलउ जीतउ(जीत) रे वेणी वासिग वाहीयउ कंठइ कोइल गीत रे ॥१३०॥ ६२. खोहर ॥ ६४. कामणा ॥ ६६. सनेठइं। ६३. आल्यों दांन । ६५. सेठई रे । Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ अनुसन्धान-७९ गजवडी पहिरिय पालीय, बालीय योवनमत्त रे धवल निहाली नारिनइ, आरति पडीयउ चित्त रे भूख नइ तरस बेऊ गई, नयणडे नाठी नींद रे सारथपति सुख वीसरयुं, जब लगइ ते स्त्री दीठ रे ॥१३१॥ च्यारि प्रधान बोलावीया, आवीया धवलनइ पासि रे गुप्त बोल मनि राखज्यो, करज्यो काम विमासि रे एकलडउ वाहणि चड्यउ, जोय न एहनी रिद्धि रे स्त्रीय रयण मारी लीयउ, करउ अम्हारी बुद्धि रे ॥१३२॥ त्रिणि मंत्री बोली गया, तुझ मुख दीठडइ पाप रे एक पापी बइठउ राउ, तीणइ मंड्यउ व्याप रे प्रीति करीनइ नितु नमइ, म करिसि केहनी लाज रे वीसासीनइ मारिज्यो, पछई तम्हारडुं राज रे ॥१३३॥ ॥ चउपई ॥ कपटबुद्धि मांडी धुरि धवलि, प्रीति वधारइ रही नितु जमलि जलमाणसुं जाय रे जाय, वेगि जोवा आव्यओ राय ॥१३४॥ कुंअर कौतुक चढीयउ दोरि, तुं आव्यउ वयरीनइ होरि काप्पउ दोर मांची ऊघडइ, नवपद जपतउ सायर पडइ ॥१३५॥ जलतरणी औषधी प्रमाणि, मगरि मुंक्यउ कंकण तटि आणि धोई अंग आरोग्युं नीर, तरुअरि छाया पउढ्यउ वीर ॥१३६।। जां जागइ तां देखइ जाण, आगलि भाट करइ कल्याण पाखलि सुहड न लाभइ पार, विनय करइ नइ करइ जुहार ॥१३७॥ पायक भणइ सांभलि तुं बाल, अम्हे पाठवीआ राय वसुपालि(ल) । वेगई तुरी पल्हाणउ हेव, स्थाननयरीपति भेटउ देव ॥१३८॥ चपलि चढी आव्यउ श्रीपाल, साम्हउ ऊठ्यओ राय वसुपाल आसण बइसण देई भणइ, जोसी एक अछइ अम्हतणइ ॥१३९।। बांभण बइसारी घरमाहि, पूछी वात एक ऊछाहि मयणमंजरि बेटी मुझ सार, कहओ कुण होस्यइ तसु भरतार ॥१४०॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० ३७ मास वैसाख दसमि ऊजली, पहुर पाछिलउ सुणिज्यो वली सायर तटि सि(सु)तुं वनमाहि (ह्य), ते वर बेटी होसइ राय ॥१४१।। जोसी वयण मिल्यां अम्ह आज, ए बेटी परणो वरराज वारु लगन मिली वसुपाल, परणाव्युं कुंअर श्रीपाल ॥१४२।। राय भणै लिओ काइ काज, थई आयत पद द्यउ महाराज जेहनइ तूठउ आपइ मान, तु(मु)झ पाहिइ अपावे पान ॥१४३।। निसुणओ धवलतणी हिव कथा, जं जं मांडइ तं तं वृथा कुंअर नांख्यउ पाणी पूरि, पछई माया मांडी भूरि ॥१४४॥ कूटइ पीटइ रोवइ रडइ, नीलक(ज) निंदक [हसें] हीयडइ सीपा नारि सुणावी वात, कंत तुम्हारो हूयउं जलघात ॥१४५।। ॥ राग - सिंधूडउ ॥ प्रीयु प्रीयु करि मयणा रडइ, सुणिए वालंभ देव अधविचि छोडी किहां गयओ, ग(गु)ण कहु तुम्ह देव, प्रीयु० आंचली ॥१४६॥ अम्हे अबलानइ एकली, छोडी का निरधार नेह खंडी तुं किहां गयउ, हा हा प्राण आधार ॥१४७॥ प्री० । चउरी माहरी ते चडी, आप्पउ जिमणउ हाथ नाह बोल नवि पालीयउ, न्याय नही नरनाथ ॥१४८॥ प्री० । कमला माडी जोइसइ, वाट तुम्हारी देव अम्हे देसाउरि नांखीआ, तिण झूरेवू हेव ॥१४९॥ प्री० । दैवि रे सरज्यां वज्रमइ, कीजइ किस्युं विनाण अम्हपे ही दादुर भला, मेह सरीसा प्राण ॥१५०॥ प्री० । पीहर परतटि सवि रह्यां, कुण करस्यइ हो जाण बलवंती प्रमदा भणइ, दैवइं मिलीया रे मा(प्रा)ण ॥१५१॥ प्री० । पूरव पुण्य पसाउलइ, मिलस्यइ तुम्ह कंत अंतराय अणभोगव्यइ, नवि छूटइ हो जंतु(त) ॥१५२॥ प्री० । ६७. दांन । ६८. ठाण ॥ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ अनुसन्धान-७९ ॥ चउपई ॥ कंत वियोगई रोवइ नारि, धवल आव्यउ तसु जंग मझारि रोती रहि सुंदरि सुखसार, मई सुंप्यउ तुम्हनइ घरभार ॥१५३॥ तासु वयण दुःख हुअउ अपार, इण पापी मार्य भरतार धवल हसी बोलइ एक वयण, झटकइ तब अंधारुं गयणि(ण) ॥१५४॥ चिहुं दिसि ऊपडीआ पवन, जाणे बेऊ मिलीया छइ भवन: वाज्या घूघर डमरू डाक, न्यायतणी परि हुई हाक ॥१५५।। बावनवीर लीया छइ जमलि, विसम चक्र तोल्यउ करकमलि चक्रेस्वरि बोली६९ विकराल, साथि छइ साते क्षेत्रपाल ॥१५६।। सकति भणइ पापी सिर पडु, कुबुद्धि प्रधान कूआसिरि जडुं → पिहली दडवउ तीणइ लाध, चतुरंग करी कूआसिर बाध ॥१५७॥ धवल हणेवा धाया वीर -, मयणा सरणि पयट्ठउ भीरु सकति भणइ तुं नथी लाज, मयणा लोपी किम माझं आज ॥१५८। बेहू मयणा लागी पाय, सार करी भलई अम्ह माय बेटी भणी बोलावी बाल, कंठि ठवी सुरतरुनी माल ॥१५९॥ म करिसि बाई हीयइ अणाह, भास अभ्यंतर मिलस्यइ नाह राजकुंअरि संतोषी आणि, चक्रेसरि पहुती निज ठाणि ॥१६०॥ कुंकणि जाई वाहण ऊतरइ, भली भेटि भूपतिनइ करइ भेटइं रंज्यउ द्यई बहु मान, सारथवाह अपावइ पान ॥१६१॥ थईआयत तिहां बीईं दियइं, सारथपति सइं हथि लीयइ ओलखीयउ वयरी विकराल, सेठि तणइ मन पइठी झाल ॥१६२॥ आव्यउ हाथ वली एक हेठि, कणमणतउ ऊठ्यओ तब सेठ(ठि) ते कांई मांडिसि उपाय, जिम रूसेसी एहनइ राय ॥१६३॥ उंब कटंब आव्यउ तिहां एक, धवल बोलावइ करी विवेक सारउ एक अम्हारूं काज, सवा लाख धन आपुं आज ॥१६४॥ राय जमाई मारउ तुम्हे, सवा कोडि वलि देस्युं अम्हे डंब भणइ ए थोडं काज, काम अम्हारुं जोइ आज ॥१६५॥ ६९. कोपी ॥ ७०. अणमणो। ७१. धन । Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० राउल जईनइ गायइ गीत, रायतणुं तिहां हरीयं चीत भूपति तूडउ आपइ दान, न लीयइ गायन मागइ मान ॥१६६॥ तम्ह जमाई हार्थि आज, बीडु मया करउ महाराज सीपा वयण७२ जोई वसुंपाल, बीडुं देवा गयउ श्रीपाल ॥१६७॥ सीपा बीडु देवा लग्ग, गायन सगला कंठि विलग्ग एक भणइ ओलखीयउ पुत्त, एक भणइ वलीयउ घरसूत्र ॥१६८।। एक भणइ भाई तुं भलउ, किम देसाउरि गयउ७५ एकलउ एकई माया मांडी मांड, श्रृंगट करी बइसारी रांड ॥१६९।। रहि रहि पुत्र हिवई घरमाहि, कुंअर बइसार्यउ झाली बांहि अचरिज देखी चिंतइ भूप, ए कांई तां दैव स्वरूप ॥१७०॥ कोपि चढ्यउ बोलइ महाराज, हिलउ बंभण दंडं आज ए वरनी जउ वाटुं कली, केहना कुल नवि बोलइ वली ॥१७१।। मरकलडइ बोलइ नीसंक, क्षत्री बोल न बोलइ वंक भड देखी मुझ द्यउ संग्राम, जिम संभालु कुलनुं नाम ॥१७२।। वली वयण एक अवधारी, आवी मुंगि अछइ बे नारि थोडामाहि घणुं तुझ कहुं, ते तेडीनइ पूछे सहू ॥१७३।। भूपति वेगि तेडावी नारि, विद्याधरि बोलइ सुविचारि अंगदेस सिंहरथ भूपाल, कमलानंदन ए श्रीपाल ॥१७४॥ पूरव वात सुणावी सहू, नरपति अम्हे एहनी वहू ततखिण राय बंधाव्या डुंब, केहy काम कहुं रे संब० ॥१७५।। स्वामी धवल अछइ वाणीयउ, पापी सवि हुं धुरिं जाणीयउ धन आपी कराव्युं इस्युं, हिव कूड़े. बोलीस्यइ किस्युं ॥१७६।। खीज्यउ क्षत्री आणइ खेस, रोस चढ्यउ राय द्यइ आदेस राय दूत तव धाया धसी, धवल आणइ बहु बंधणि कसी ॥१७७॥ ७२. नयण । ७४. समकाल । ७६. बूंघट । ७८. बौलै बोल विवेक ॥ ७३. व्याल । ७५. आविओ। ७७. हुं। ७९. तेडी। ८०. भुंड । Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० अनुसन्धान-७९ ऊठि तलार मला इसिवार, धवल तणइ सिरि वाहुं धार कृपावंत बोलइ श्रीपाल, वछीआयत म मारिसि भूपाल ॥१७८॥ पायके धवल मुंकीयउ छोडि, सापुरिस अंगि न आवइ खोडि छत्रछाया जई करुं समान, राय जमाई कहा दियइ मान ॥१७९।। त्रिहुं मयणास्युं विलसइ वीर, तेडी धवल पहिराव्यउ चीर जिम जिम देखइ कुंअर प्रताप, तिम तिमं सेठ धरइ ऊताप ॥१८०॥ सीपा ऊपरि मांड्यउ द्रोह, दोरीयइ बांधी चंदनगोह माझिम राति नांखि चडइ, छुरी सहित तिहां पाछउ पडइ ॥१८१॥ अवसि.१ पडतां आवी छुरी, धवल पहुतउ यमनी पुरी दीठउ लोके ऊगमतइ भाणि(ण), पापतणुं फल ए निर्वाण ॥१८२॥ → सीपानइ मनि क्रोध न लोभ, तेडी तसु तन दीधा थोभ आपी रिद्धि धवलनी जापि, संप्रेड्या कोसंबी ठाणि ॥१८३।। - एक दिवस सीपउ मनरंगि, गयउ रयवाडी चडी तुरंगि वणजारउ तिहां आव्यउ एक, पूछइ कुंअर करी विवेक ॥१८४॥ कुण नगरी आव्या वछीयात, कहउ काई अपूरव वात कांतीनगरी आव्या देव, सांभलि वात कहुं ते हेव ॥१८५।। इहांथी जोयण सउनइ अंति, वारू कुंडलनयर वसंति भूपति मकरकेतुनुं नाम, कपूरतिलय पटराणी नाम ॥१८६॥ गुणसुंदरि बेटी तसु सार, विद्या रूप न लाभइ पार पभणइ परणुं हुं नर सोय, वाणी(वीणा)वादि मुझ जीपइ कोय ॥१८७॥ नरपति नंदन मिलीआ बहू, सीखइ वीणा बइठउ सहु इसी वात कही ते राउ, निसुणी सीपउ मंदिर गयउ ॥१८८॥ सीपानइ मनि लागी खंति, श्री नवकार जपइ एकंति नवपद भक्त अछइ ये यक्ष, ते विमलेश्वर हूयउ प्रतक्ष ॥१८९॥ तूठउ आपइ निर्मल हार, सुर पभणइ सुणि वच्छ विचार पहिर्यउ कंठि करइ मोहन, तं तं करइ जं जाणइ मन ॥१९०॥ ८१. आवास ॥ ८२. आंणी ॥ ८३. नवसर ॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० हार तणउ कहियओ प्रमाण, मोकलावी सुर पहुतउ ठाणि(ण) तुं कुंअर कुंडनपुरि गयउ, वामन वेस आषाढइ रह्यउ ॥१९१॥ नादपरिक्षा कारणि सहू, राजकुमर तेडाव्या सहू तउ वीणा मांगी वामणइ, कुंअरि आपइ करि तस तणइ ॥१९२॥ नाद तणउ कीधउ आरंभ, लीणा लोक थंभ्या जिम थंभ कुंअर(री) वरीयउ वर सुविसाल, प्रगट रूप थयउ श्रीपाल ॥१९३।। मकरकेतु मनि थयउ उछाह, परणाव्यउ चंपानउ राय दिन केता तसु मंदिर राउ, एक दिवस रयवाडी गयउ ॥१९४॥ . बाहिरपंथी दीठउ एक, बोलाव्यउ करी विवेक आवागमन कहउ तसु ठाण, कहि कौतुक तई दीठउ जाण ॥१९५॥ कुंडनपुरि अम्हारूं ठाम, हुं जाइसि पाटण पयठाणि कणयापुरमांहिं आवीयउ, कौतुग कहुं तउ तइं रहावीयउ ॥१९॥ विजयसेन कणयापुर धणी, कनकमाला राणी जस तणी त्रैलोक्यसुंदरि बेटी नाम, जाणे जगि अवतरीयउ काम ॥१९७॥ ॥ वस्तु ॥ पहीय पभणइ, पहीय पभणइ, निसुणि नरनाह संवर मंडप मांडीयउ, राजकुमर अनेक मिलीआ कालिवइ वरसइ कुयरवर, तछ(त्थ)प(पे)खि अम्हे वि वलीया । सीपइ सुणियउ वसुवयण, मनि हूयउ उछरंग गगनि थई वेगई गयउ, वरवा नारि सुरंग ॥१९८॥ ॥ चउपई ॥ तिहां कीधुं खुंधानुं रूप, मंडपि आव्यउ चंपा भूप लांबी दीठी टं(टुं)की नली, मोटु माथु ग्रीवा गली ॥१९९॥ उंची पूठिं पंजर सांकडु, रासभदंत वदन वांकडं उंचा नीचुं रचीयुं नाक, कपिल केस बिहुँ गाले झाक ।।२००।। ८४. तव बोल्यो अतिहिं सुजाण ॥ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ पंजर नयण पीहाड गाल, मोटे होठे पडती लाल आवी थंभ्य ओठंगी५ रहइ, नरपति सति बोलावी कहइ ॥२०१॥ कहु खुंधा तुम्हारुं काज, जे आवी ऊभा इहां आज जिण कारणि बइठा छउ तुम्हे, तिण कारणि ऊभा छु अम्हे ॥२०२॥ हड हड हसीआं सवि भूपाल, खुंधउ वर ६ए वरसइ बाल राय सुता नर वाहणि चडी, वाज्यां दमा(दा)मां दडवडी ॥२०३।। संवर८७ मंडपि कीयउ प्रवेस, दीठउ खुंधा रूप निवेस जाणइ लोक ऊभउ छइ खुंध, सीपारूप देखइ तिहां मुंध ॥२०॥ तीखे नयणे जोवयइ ताडि, बइठा८ नरपति मुंक्या मांड(डि) खुंधा उरि घाली वरमाल, धडहडीया कोपि भूपाल ॥२०५॥ रे खुंधा भूली ए बाल, कंठि थकी पाछी द्यइ माल खुंधउ कहइ अदेखा काय, रूप नही तउ खीजउ काय ॥२०६॥ तउ काढी ऊठ्या हथीयार, रोसि चड्या नवि जाणइ सार खुंधा रूप टली श्रीपाल, साम्हउ थयउ काढी करवाल ॥२०७॥ नासी भूपति गय° उभउ वाय, राजकुमरि परणी तसु ठाय पायक एक कहइ तिहां वयण, वात सुणउ सीपा नर रयण ॥२०८॥ धरापाल दल पाटणि भूप, गुणमाला पटराणी रूप शृंगारसुंदरि बेटी नाम, पंच सखी छइ तसु अभिराम ॥२०९॥ मनि समस्या छइ तेही तणइ, ९२राजकुमरि ते इम भणइ तेह अम्हे वर वरस्युं जाण, अवर सहोदर जिनवर आण ॥२१०॥ नवपद समरी गयउ तसु ठाणि, राजकुमरि बोलावी जाणि श्रीमुखि समस्या पूरुं वली, कहइ तउ बोलावू पूतली ॥२११॥ ८४. तव बोल्यो अतिहिं सुजाण ॥ ८६. वरस्थे सही वरमाल । ८८. वरवा । ९०. पडीया पाय । ९२. जे पूरइ आवी इम । ८५. उठिंगण । ८७. नयरमांहि । ८९. मुंडि । ९१. मुझ । Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० ४३ । दूहा ॥ अरिहंत देव सुसाध गुरु, धर्मदया विसाल मात्र उत्तम नवकार पर, अवर म झंखु आल ॥२१२।। अरिहंत केरां नवे पद, निय मनि धरइ जि कोइ निश्चय ते नर नारीयई, मनवंछित फल होय ॥२१३॥ आराहउ धुरि देव गुरु, द्यउ संपत्ति [सारूं] दान तप संयम उवयारडउ, करउ सफल अप्पाण ॥२१४॥ अरे मन अप्पउ खंचीयइ, चिंताजाल म पाडि आगलि ते फल पामीयइ, जे फल लिख्युं निलाडि ॥२१५॥ पुव्व भवंतरि संचीयउ, पुण्य समग्गल जास तसु बल तसु मनि तसु तिलय, तसु तिहुअण जण दास ॥२१६॥ ॥ चउपई ॥ पंच सखीस्यं ऊठी बाल, सीपा कंठि ठवी वरमाल करी वीवाह रह्यउ जव जाण, भाट एक तिहां करइ कल्याण ॥२१७|| भाट भणइ कोलापुरनाह, राज करइ पुरंदरराय पटराणी विजयादे नाम, जयसुंदरि बेटी अभिराम ॥२१८॥ कुंअरी रूप न लाभइ पार, पभणइ परणिसि ते भरतार राधावेध साधइ जे बाणि(ण), लेई प्रतिज्ञा रही सुजाण ॥२१९।। दीधुं दान भाटनइ हाथि, राधावेध साध्यउ नरनाथि जयसुंदरि वरीयउ वरराज, पुण्य प्रमाणइं सीधुं काज ॥२२०॥ ॥ ढाल ॥ ह(दूत माउलइ मोकल्यउ, सांभलि वयण कुमार रे वेगि करी पाछा वलउ, हिवइ मला स्यउ वार रे ॥२२१॥ नवपद महिमा सांभलउ, हीयइ धरीय आणंद रे पुण्य तणइ पसाउलइ, श्रीश्रीपाल नरिंद रे ॥२२२॥ आंकणी ॥ सीपइ सांढि ज फेरवी, अंतेउर आणावि रे नारि बंधव३ साथई, आवइ बहु दल लेय रे ॥२२३॥ नव० । ९३. सवि साथ ले। Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ अनुसन्धान-७९ वहुयर सवि साथि लेई, चालियउ कुंअर श्रीपाल रे थानपुरी जई ऊतर्यउ, हरखियउ राय वसुपाल रे ॥२२४॥ न० । कुंअर पराक्रम प्रीछीयुं, उत्तम लगन सुलीध रे च्यार महाधरा "सवि भरी, राय५ राय पद दीध रे ॥२२५॥ न० ॥ ढोल दमां(?ददा)मां वाजीयां, वल्या नीसाणे घाउ रे सीमाडा आवी मिलइ, भेटि लेई सवि राय रे ॥२२६।। न० ॥ ऊजेणी भणी सांचरइ, वाहणि चढीय सुजाण रे सोपारइ पाटणि जई, दल दीधां मेल्हाण रे ॥२२७॥ न० ॥ नयर मंत्रीसर आवीयउ, भेटियउ राय ९७श्रीपाल रे सांभलि स्वामी वीनती, म करिस लो(को)प कृपाल(कुमार) रे ॥२२८॥ न० महीसेन रायां कुंअरी, क(ड)सीयउ अज भुयंग रे, तिलक सुंदरि विष नवि वल्युं भूपति दुक्खदू(९) यं(अंग रे ॥२२९॥ न० महिता वयणे ऊठीयउ, पुहतउ राय श्रीपाल रे दाह म द्यउ रे अजाणियइ, ए हुं जीवाडिसि बाल रे ॥२३०॥ न० महामंत्र मनि ध्याईयउ, कंठि ठव्यउ तसु हार रे तिलक सुंदरि बइठी थई, ऊतरीयउ विषभार रे ॥२३१॥ न० महीसेन आणंदीयउ, भेटि करइ तसु सार रे तिलकसुंदरि परणावीयउ भगतिय उरीय अपार रे ॥२३२॥ न० तिलकसुंदरि आणू करी, चालियउ दल बहूत रे देस देसाउर हिय साधीयां, मालवमाहि पहूत रे ॥२३३॥ न० ॥ चउपई ॥ चर मुखि जाण्युं परदल बहू, कण कापड जस (सज) कीधा व(स)हू ऊजेणी आव्यउ श्रीपाल, गढमाहि पुहतउ पुहवीपाल ॥२३४॥ वींटी नयर धाया नीसाण, चिहुं पोले कीधां मेल्हाण हूई राति सीपा मनि खंति, चाल्यउ माय मिलण एकंति ॥२३५।। ९४. सेसि । ९६. सवि आवी। ९५. राई । ९७. वसुपाल । Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० महुअरि मालंयना गुण ध्याय, गयवर "मन वंध्याचलि जाय मयणसुंदरिस्युं जेहवी प्रीति, तेहवी अवर न आवइ चीति ॥२३६॥ साथि तेडी छइ सवि नारि, थई आकासि पुहतउ घरबारि आई वेगि ऊघाडउ बार, तुम्ह सेवक १०० जिम करइ जुहार ॥२३७।। मयणसुंदरि रोमंची देह, बाई तुम्ह सुत साद ज एह । कमला रंगि ऊघाडइ बार, जणणि आलिंगी करइ जुहार ॥२३८|| वहूअर लागी सासू पाय, मिलीया अंतेउर माहोमाहि मयणसुंदरि पटराणी कीध, भला आभरण वस्त्रेवर दीध ॥२३९॥ राणी सवि हुं साथि राय, दीस अणूगत जीय दलि जाय । हूयउ प्रभात ऊग्यउ जगि भाण, बंदीजन सवि करइ कल्याण ॥२४०॥ सेनानी तेडाव्यउ राय, वेगिं करी मलावउ वार गयवर गडु तुरी पाखरउ, उजेणी गढि ढोउ करउ ॥२४१॥ जण मोकलावी कराव्युं जाण, जउ ए मांनइ माहरी जा(आ)ण कंधि कुहाडइ आवी मिलइ, तउ अम्ह सेना पाछी वलइ ॥२४२॥ दूत भणइ सुणि पुहवीपाल, अम्ह स्वामी वयरीनउ काल कंधि कुहाडइ आवी मिलइ, तउ दल अम्हारं पाछु वलइ ॥२४३॥ राय भणइ म लावउ वार, कवण करावइ जीव सिंहार खंधि कुहाडउ करी भूपाल, कटकि जई भेट्यउ श्रीपाल ॥२४४॥ साम्हउ ऊठ्यउ रायांराय, ससरानइ तिहां करइ पसाय नंखाव्यउ आयुध जे खंधि, बिहुं नरेसर हुई संधि ॥२४५॥ मयणा कहइ सांभलउ मर्म, जोअउ आम तात मुझ कर्म कुहाडउ राय ऊतारइ आज, ओलखीयउ अवर (अंबर) वरराज ॥२४६॥ चीति चमक्यउ पुहवीपाल, देखी कुमरी रिद्धि ड(झ)माल मयण मिलेवा नाटक रंगि(ग), तेड्या पात्र अछइ जे चंग सो लही चरणा सवि कडि कसइ, नारि एक तिहां पाछी खिसइ ॥२४८॥ ९८. माइतणा । १००. बेटो। ९९. गयवर चडी चलिओ जव जाई । १०१. वस्तु । Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ अनुसन्धान-७९ ॥ दूहो ॥ किहां मालव किहां संखपुर, किहां बाबर किहां नट्ट सुरसुंदरि नचावीयउ, दैवि दलीय मरट्ट ॥२५०॥ ॥ चउपई ॥ जणणी दूहउ सूणियउ वयण, कुंअरि नाचंता दीठी नयणि(ण) सभामाहि जई कंठि विलग्ग, बेउं दुख भरि रोवा लग्ग ॥२५१॥ रोतां राखी पूछइ इस्युं, कहउ बाई ए कारण किस्युं तुं परणावी उत्तम ठाइ(य), ए कारण किहां घटीयुं माय ॥२५२।। सुरसुंदरि कहइ सांभलि वात, परणावी संप्रेड्या ताति(त) चतुरंग सेनास्युं परिवऱ्या, संखपुरी परिसरि ऊतर्या ॥२५३।। वार वंकि तिण स्थानकि रह्या, घरे(णे) दिवसे पायक घरि गया छोछइ वसीया वनह मझारि, आवी धाडि करती मारि ॥२५॥ तुझ जमाई नाठउ माय, ऊभी मुंकी हुँ तसु ठाय तिहां झालि कोली विकराली, तेणे वेची देस नेपाली ॥२५५।। तिहां चडी मालुनइ हाथि, माले मांडी वेची सांथि साथि विणजारे हुं लीध, बाबर देसि गणिका घरि दीध ॥२५६॥ जोवउ कर्म तणी ए वात,०२ गणिकांयई मुझ सीखवी नाट महाकालि बाबरनइ नाथि, नाटक करवा लीधी साथि ॥२५७॥ ओलगतां मयणानउ कंत, आख्या एणइ ठामि भमंत देखीं आज सजन मइ सहू, दुखसायर ऊलटीयउ बहू ॥२५८॥ मयणसुंदरिनुं देखी राज, तुं (हुं) दुखियउ भणियउ आज कुल मारगि सवि चूकी माय, १०२दाठिक दैवइं सिरज्यां कांय ॥२५९॥ सभा समक्खि सुण्युं श्रीपाल, अरिदमण आण्यउ भूपालि(ल) आपी वस्त्र अनइं शृंगार, सुरसुंदरि सुंपी भरतार ॥२६०॥ ॐ मतिसागर महितो तव मिल्यो, सकल मनोरथ हैडिं फल्यो चंपा उपरि करइं प्रयाण, वाजिन वाजै ढोल निसांण ॥२६१॥ १०२. घाट । १०३. दुखीयां । Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० ४७ चंपा ऊपरि चाल्यउ राय, तव वलीया नीसाणे घाउ ससरा साला नइ माउला, चढ्या वीर विकट वाउला ॥२६२।। 5 दुर्मुख दूत चंपा पाठव्यो, अजितसेननि जई वीनव्यो सांभलि वयण मुझ नरपति आज, तुझ समोवडि को नहीं आज ॥२६३॥ भला भलेरी पृथ्वी अछ, राय सवे श्रीपालह पछै । जेहनी आंण वहै सुर धीर, तेह मनावो बावन वीर ॥२६४॥ दंड दोर नवि केहनि करई, दलि दीठई जेहनइं भय डरिं कहो नि स्वामी कहइं निं देव, तेहनी कीम न कीजें सेव ॥२६५॥ फुटु सीड फाटो सीवीइं, राय श्रीपालह जइ सेवीइं . किहां तुं खजुओ किहां ते सूर, तेहस्युं कोई न मांडि भूर ॥२६६।। किहां तुं छीलर किहां ते समुद्र, किहां चांदरणी किहां ते चंद्र किहां कंथेर किहां द्रुमेंद्र, किहां धरणेंद्र किहां सुरेंद्र ॥२६७।। तेहस्युं तोडि मांडीस जेतली, आगलिं तुझ विच(त)सिं तेतली कोप्यो भूप भीषण आकार, अजीतसेन बोल्यो तिणवार ॥२६८॥ रे रे दूत वात कहै कसी, जा रे पापी प्रांण चूकसी गलहथ देइ नांख्यो दूरि, वल्यो दूत आव्यो रोस पूरि ॥२६९।। तविल ढोल ढमके नवरंग, धडहड ध्रुजे पर्वत शृंग जव चंपानी चांपी सीम, आव्यो अजितसेन भड भीम ॥२७०॥ अजितसेन, बल विचित्र, सिर उपरि झलकें सोवन छत्र द्रमक द्रमक वाजै नीसांण, कायरना ते कंपइ प्राण ॥२७१॥ सज थयो हवै राइं श्रीपाल, रणमंडलि वइंरीनो काल असवारे असवार ज भडिं, गयवर सरिसा गयवर अडें(डि) ॥२७२।। गय(व)र गुडीया सहस बत्रीस, हयवर हींसई सा(स)हस छत्रीस रमे दंडायुध छत्रीस, झूझिं राजकुलि छत्रीस ॥२७३।। धडहडता धरता बहु रीस, गदा प्रहारे भांजे सीस आथमतो बोलै इम दट्ठ, चंपा लेवा लीधो हट्ठ ॥२७४॥ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ सींगणि गुण गाजीनें रहै, सरमांहैं सरोवर वहिं झब झब वीज जसी झबकार, गयवर करं करीं वींझइ तरु आरि(र) ॥२७५॥ अजितसेन मांड्यो दंदोल, प्रगट्यो राय श्रीपाल कल्लोल सेवक रह्या रण सवे करी, सातसें राय राणा परवरी ॥२७६॥ वढण वढे ते नवि छंडई पाय, वयर न जुनुं कहिइं थाय पाडी बांध्यो देइ फाल, अमर भणै जय जय श्रीपाल ॥२७७।। अजितसेन भागउ भडवाय, चंपा गढि जई बइठउ राय बापतणुं वलि वाल्युं राज, नवपद ध्यानई सीधुं काज ॥२७८॥ अजितसेन राजा तिहां बद्ध, तिणें वैरागै संयम लिध्ध खिमा खडगि हणीओ क्रोध, जयजय अजितसेन महायोध ॥२७९।। चंपापुर वरिराज बइठ्ठ, धन धन ते नर जेणें दीठ ततखीण ऋषीने उपनुं ज्ञान, वंदन जाई श्रीपाल प्रधान ॥२८०॥ गुरु धर्म कहै तत्त्वविचार, हरख्यां राय राणी अपार फल्या मनोरथ अम मन तणा, तुम वांवें पाप नाठां भवतणां ॥२८१।। राय पूछ पूरवभव विरतांत, गुरु भणै [राजा] श्रीकांत श्रीमती रांणी गुणवंत, आहेडिं चाल्यो राय महंत ॥२८२॥ धीग धीग वारै रांणी तास, तो हि न छंडई पाप अभ्यास एहवें सांहमो आव्यो साध, मुनीनें कहै कुष्टी व्याध ॥२८३।। जलमांहिं नांखी कहीओ डुंब, रांणी वारें धीग तूं सुंब तिणि वारं लागो प्रतिबोध, ऋषी वांदिने मांगि सोध ॥२८४।। रीषी कहै तुं अधरमी आप, तुझ मुख दी, लागें पाप तो है सिद्धचक्र आराधे, मन निश्चल करी परभव साधि ॥२८५।। चैत्री आठिम थको तप मांडइं, इम पातिक सवि दूरई छांडिं इम कही ऋषीश्वर रह्यो, राइं बोल हृदयमां ग्रह्यो ॥२८६।। रांणी सरिसो तुं तप तपें, आठ कर्म ते हेलां खपि उजमणों ते को विस्तार, आठ सहीरसुं रांणी सार ॥२८७।। Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० भट सातसें करि प्रसंस, धन धन राजा नर अवतंस जेहने जेहसुं छे वली वइर, सातसें जइनें वीट्यों नयर ॥२८८॥ लीधां धण कण कंचण दीह, साहमो मिल्यो सिमाडे सींह कां रे आव्या माहरें खेत्र, सातसिं सुभट पाड्या रणखेत्र ॥२८९।। मरी हुआ ते कुष्टी सवे, सिंह मरीने आणे भवें अजितसेन हं थयो ते जांणि, राज हो तुझ बालक त्राणि ॥२९०॥ श्रीकांत मरीनें तूंअज हुओ, सुरूप टलीने कुष्टी थयो ऋषी नांख्यो जे नीर मझार, तिणें कर्मइं तुं पड्यो समुद्र मझार ॥२९॥ डुंब कही जे दुहव्यो साधु, डुंबपणुं तें तेहथी लाध(धु) सिद्धचक्रनें ध्यान प्रमाण, तुझनें सेवसिं रांणोराण ॥२९२॥ आठई सहीअर हुँती जेह, आणे भवें आठ वनीता तेह पहिले भवें राणी श्रीमति, मयणसुंदरी पट्टरांणी माहासती ॥२९३।। नवसें वरस ते आयु प्रमाण, तुं पामीस स्वर्ग विमान सिद्धचक्र भावि प्रतिपाल, नोमि भवि तुं मुगति निहालि(ल) ॥२९४॥ निसुणी परभवतणुं चरित्र, गुरुवचने हुआ पवित्र आणंदी रोमाच्यो सरीर, गाजि जलहर जिम गंभीर ॥२९५।। हवि उजमणुं आदिल देहरें, एणि ढोणि सवि पातिक हरें बार कलस कनकमय घड्या, अमूलिक हीरे माणिक जड्या ॥२९६।। पहिलिं पदि मंगलेवो ठवो, स्वेतध्यांने अरिहंत तवो एकत्रीस विद्रुमनी मणी, सिद्धस्थानकि मेहलिं धणधणी(घणी) ॥२९७॥ रातुं ध्यान मनमांहिं धरि, भवसायर ते लीलें तर त्रीजुं पद समरो समरथ, जेहनें पूजि टलई अनरथ ॥२९८॥ पीतरत्नस्युं पूजा करें, पीतवर्ण आचार्य मन धरि(रें) चोथई पद मरकत पंचवीस, उवज्झाय उपरि मनह जगीश ॥२९९।। नीखें ध्यान मनमांहै धरै, इम उवज्झायनुं समरण करई पांचमुं पद मनमाहै धरो, साधतणुं ध्यान हविं करो ॥३००॥ अरीष्ट रत्न धरो सतावीस, साधुगुण समरो निसदीस जपीइं पांचे पद नवकार, अनंत सुख लहीइं निरधार ॥३०१॥ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ नवपद नामइं नव प्रासाद, झलकिं स्वर्गस्युं करता वाद नव सुतस्युं ते पालिं राज, जांणै धर्माधर्म सवे नरराज ॥३०२।। तस कीरति पांमी विस्तार, जांणे चंद्रकला उदार केतकी परि महीमांहि सुवास, तिम राय श्रीपाल तणो जसवास ॥३०३।। जनम लगि जेतो तप तपै, तेतो फल एणि जापें जपै गुणमाहिं जग हुओ सतवंत, तत्त्वमांहिं तिम सिद्धचक्र ज तंत ॥३०४॥ पूरव चौदतणुं ए सार, चिंतामणी एहनो अवतार लक्ष जाप एहनो गुणो, अंतरवयरी सवि अवगुणो ॥३०५॥ नंदो जिहां लगि मेरुगिरंद, रवी मंडल तारा निं चंद मुनिवर ने श्रावक तिहां जपो, दिनकर जिम ए तिहुअण तपो ॥३०६।। पहिलं मंगल सवे अरीहंत, बीजुं सिद्धचक्र जयवंत त्रीगँ विमल देव सुविसाल, चोथं मंगल राय श्रीपाल ॥३०७॥ ॐ ॥ ढाल ॥ चंपापति अति रूअडउ ए मालंतेड(तडे) तूठउ श्री नवकार सुणि(ण)सुंदरि तूठउ श्री नवकार [सु.] नव पटराणी मूलगी ए मा० मयणसुंदरि भरतार ॥३०८।। मयणसुंदरि धन श्राविका ए मा० थापीयउ श्री०४ जिनधर्म सिद्धचक्र आराधीउं[ए] मा० अजूआल्यां जिनधर्म ॥३०९॥ मिथ्यातई भूला भमइ ए [मा०] नवि गमइ जिणवर आण दान सील तप भावना वेगला ए मा० तेहगें किस्युं वखाण ॥३१०|| सुख अनंता भोगवा [ए] मा०, जे पूजइ श्री अरिहंत मयणसुंदरि श्रीपाल ज्यु रे (ए) मा०, ते होवइ गुणवंत ॥३११॥ नायलगछि गुरु गाईयइ ए मा०, श्रीगुणसमुद्रहसूरि तासु पाटि सोहामणा ए मा०, वंदीयइ आणंदपूरि ॥३१२॥ १०४. जिणें । १०५. ज्ञानसागर उवज्झाय । Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० भवियां भावई नितु नमउ ए मा०, श्रीगुणदेवहसूरि तासु सीसई रास रच्यउ [ए] मा०, श्रीगुणरत्नहसूरि ॥३१३।। पनर एकत्रीसइ मगसिरई ए मा०, ऊजली बीज गुरुवार → रास रच्यउ सिद्धचक्रनउ ए मा०, गायउ श्री नवकार - ॥३१४॥ एक मना जे जिन जपइ ए मा०, तेह घरि मंगलमाल रिद्धि अनंती भोगवइ ए मा०, जिम भूपति श्रीपाल ॥३१५।। इति श्री सिद्धचक्र स्मरण माहात्म्योपरि श्रीपाल रासः संपूर्णः ॥ संवत १६९९ वर्षे श्री आश्विन सुदि सप्तम्यां श्री राजद्रंगे लिखितः ॥ शुभमस्तु लेखक पाठ[क]योः ॥ १०६. इतिश्री श्रीपालरास संपूर्ण । संवत् १७६९ वर्षे चैत्रशुदि त्रयोदस्यां भौमवासरे । श्रीः ॥ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ गाथाक्रमांक शब्द पांपलि चीति चीति(त) जुआरि कडब नीआण महिता झटकी नटइ वरांस्यउ करिजगुल दाठिक छयल शब्दकोश अर्थ आळपंपाळ चित्त-इच्छा प्रमाणे चित्तमां जुवार सूकी चार निदान-निश्चे महेता-मंत्री झडपथी निंदा करे भूल करे छे । छेतरायो कुरुजंगल देश 30 ३६ ३७ विगमि पडींगण ४८ पाथर नटसि सुणुह परीच्यु मांटी नीछेछी वेसास हथि सकल / बधा जलबिन्दु-झाकलबिन्दु नीकळी गइ सारवार के भावी (?) दीकरी पथ्थर निंदा करशे । हांसी करशे कूतरो । श्वान परख्युं, परिचय कर्यो मर्दानगी । पुरुषातन तरछोडीने (?) विश्वास हाथथी श्रीपाल प्रतिज्ञा वात / गोष्ठी ?) ६० ६० ६२ ६२ सीपु सपत (अथवा सीपु सपत Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० असिमर-उडइण (असि-मरउडइण नेठि इकल्यउ ६४ ६४ ६८ पीठ बेटी ७० ७४ वट्ट ठिठाठेठी ७४ ७८ भुइ ७९ ८२ ८२ ८८ तलवार-ढाल तलवार-मुगट ?) दृष्टि एकलो बजार बेट / द्वीप वाट / मार्ग (मोटी संख्यामा?) भय भांग्यु-भाग्यं ढक्का-रणभेरी महेनताणुं-गरास तलवार-ढाल मोटो मल्ल ध्रुजवा बख्तर रणभेरी जेवू ऐक प्रकार, वाद्य वागे रणशिंगुं रोध-घेरो घा शेषनाग मूछ घास दोरडा- बंधन ? सेवा करो भाजी ढाक ग्रास असिमर-ऊडण धुंबड धूजण जरद रणकाहला वज्जीर ९० ० ९१ रोह घाउ सेसराउ ९७ तने ग्रास छलि छंछंछटि ओलगउ तुंअ वाणउत्र आदिलबिंब अतिरोक ऊघाटि १०६ १०७ वाणोत्तर आदिनाथनी प्रतिमा अतिरेक उपरवट थाय - आगळ जाय Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ १०९ ११० ११३ ११४ ११६ जमली-जमलि देवराणी आफणीय परतीअन्न जड्युं ओलगणि बिमणउ झटकइस्युं देवांगणि सवरूप ऊदालउ वछीआयत जोडी देवाया-बंधथया आपमेळे-आफरडी प्रतिज्ञा करी बंध थयु सेविका । सेवा करनारी बमणो झडपथी मंदिरना आंगणे . स्वरूप झूटवी ले बहारगामथी खरीदवा आवनार आडतियो १२० १२२ १२६ १२६ १८३ १२७ १२९ १२९ १२९ वछीयात देवायुं पूरीआढा सिढ सनढ अपाव्यु पूर्या - भर्या ? सढ १३० दोतडां दांत १३० १३० १३१ له له سه वासिग कोइल गजवडि फालीय जलमाणसुं होरि पउढ्यउ पाखलि वासुकिनाग ? कोयल मोटी ? साडी-ओढणी जलचरजीव-मोटो मगरमत्स्य १३४ १३५ १३६ १३७ १३८ हेव सूतो-पोढ्यो चारे तरफ अत्यारे-हवे थगीधरपद पासे श्रीपाल थईआयतपद १४३ १४३ १४५ पाहिइ सीपा Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० uu १४८ १५० १५० १५४ १५७ १५७ १६० १६३ १६४ १६९ चउरी अम्हपेही सरीसा झटकइ पिहली दडवड अणाह कहेठि डंब कटंब शृंगट संब लग्ननी चोरी अमारा करतां सरखा जल्दीथी-तरतज पहेलां वाजिनविशेष अनाथपणुं क्यांथी चंडाळनु कुटुंब तलार १७५ १७८ १८२ १८२ अवसि निर्वाण नगररक्षक अवशपणे मृत्यु भेटवू सो श्रीपाल १८३ १८६ १८८ १९१ १९५ १९८ १९८ १९८ १९९ थोभ सउनइ सीपउ आषाडइ बाहिरपंथी पहीय संवरमंडप कालिवइ दीठी २०० झाक बहारथी आवेल मुसाफर प्रवासी-पथिक स्वयंवर मंडप आवतीकाल ? दृष्टि-आंख खिन्न-सुकायेला ? मुग्धा ? (मांडरां?) ? (पेडु?) संहार माळी ? सार्थवाह २०४ २२५ २४१ २४४ २५६ मुंध महाधरा गडु सिंहार मालुनइ सांथि दाठिक २५६ २५९ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ बाउला २६२ २६६ २७० व्याकुल दृष्टि ? भूर तविल २७५ सींगणि फाल २८४ २९४ २९७ २९७ २१६ २३६ २४० २५४ २६६ नोमि मंगलेवो तवो तसु बल महुअरि मालयना दीस अणूगत वार वंकि फुटु सीड सहीरसुं नवमो मंगलदीवो भजो-स्तवो तेनी बलिहारी भमरी मालतीना दिवस उगवा पहेला वारना वांके २८७ सहियरसुं Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० श्रीकनकसौभाग्य-कृत विजयदेवसूरिरंगरत्नाकर (रंगराज?) रास - सं. मुनिसुयश-सुजसचन्द्रविजय विजयदेवसूरिजी - बादशाह जहांगीरे जेमनी जीवनचर्याथी प्रभावित थई जेमने "महातपा"ना बिरुदथी नवाज्या तेवा, विजयहीरसूरिजीनी परम्पराना, प्रभावशाळी पुरुष एटले विजयदेवसूरिजी. आम तो तेमना चरित्र उपर "विजयदेवमाहात्म्य", "विजयदेवसूरि निर्वाण रास", "विजयदेवसूरि सज्झाय" जेवी केटलीक प्रकाशित कृतिओ मळे छे. परन्तु प्रस्तुत कृति अप्रकाशित होवानी साथे साथे सूरिजीना जीवननी अप्रसिद्ध घटनाओ, पण आलेखन करती होइ अहीं तेनुं सम्पादनार्थे चयन करायुं छे. कृतिसार काव्यना मङ्गलाचरणना दूहाओमां कविए मा शारदाने, पंच परमेष्ठिने तथा पोताना गुरुजनोने नमस्कार करी प्रथम ढाळनी शरुआत करी छे. गुडी रागमां गवायेली आ ढाळना प्रथम भागमां कविए इडरनगरनु, त्यांना प्राकृतिक सौन्दर्य,, लोकसमृद्धिमुं, राज्याधिकारीओनुं तेमज लोकमानसनुं खूब ज थोडां पण रसाळ पद्योमा वर्णन कर्यु छे. ज्यारे ढाळना बीजा तबक्कामा चरित्रनायकना माता-पिताना गुणवर्णनथी प्रारम्भी तेमनी भोगसमृद्धिनुं सांसारिक सुखान्त फळ स्वरुप शुभ स्वप्नथी सूचित कोइ जीव गर्भरूपे अवतर्यानुं पत्नी वडे स्वप्नफळ पूछतां पतिए कहेला फलादेशनुं तेमज सवार थतां ज्योतिषी पासेथी पण स्वप्नफळ जाणी आनन्दित थतां दम्पती- वर्णन करतां पद्यो जोई शकाय छे. __काव्यनी बीजी ढाळमां घणे अंशे पुत्रजन्मोत्सवनुं तथा तेना विद्याध्ययनवर्णन छे. सामेरी रागनी आ ढाळना शरुआतनां २ पद्यो गर्भपरिपालननी रीत वर्णवे छे. त्यार पछी- त्रीजुं पद्य प्रक्षिप्त होवा छतां पुत्रजन्मना संवतादि दर्शावतुं होई महत्त्व, छे. पुत्रनो जन्म थता पिता वडे करायेला जन्मोत्सवनुं वर्णन ते पछीनां थोडां पद्योमा गुंथायुं छे. आ वर्णनमां खास नोंधवा योग्य "ज्योतिषी पासे पुत्र जन्मनो फळादेश जाण्यानी, दस दिवस थये शुभ दिवसे स्वजनवर्गने Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ तेडावी करावाता प्रीतिभोजननी अने ते प्रसंगे अपाती पहेरामणीनी तेमज पुत्रनी फइओ वडे कराता फईआरानी तथा नामकरणनी विगतोमा तत्कालीन रीत रीवाजोनुं प्रतिबिम्ब जोवा मले छे. आ ज क्रममा आगळनां पद्योमां कवि वडे कुंवरनी बाळसहज क्रीडानु, विद्याध्ययन, तथा सा. थिराना अचानक थयेला अवसानथी वैराग्यवासित माता-पुत्रनी संयमाभिलाषानुं ग्रन्थन थयेलुं अहीं जोई शकाय छे. त्यारपछीनी काव्यनी त्रीजी ढाळ केदारुणी रागमां छे : जेमां मातापुत्रना संवादने रजू करतां पद्यो पछीनां ३ पद्यो विजयसेनसूरिजीनी ईडरमां पधरामणी थता श्रीसंघमां थयेली विविध प्रकारनी आराधनानी वर्णनानां छे. ज्यारे ४) पद्य माता सहित वासण वडे पूज्यश्रीने "संयम प्रदान करवानी" विनंतीना भावो व्यक्त करतुं छे. जो के ते विनंतीना प्रत्युत्तरमां सूरिजी वडे "ते अंगे वधु प्रमाद न करवानी" टकोर थतां ते वातनो मर्म समजी लई माता-पुत्र वडे अमदावादमां सा. वधूआए करेल महोत्सवमां पूज्यश्रीना हाथे ज दीक्षा ग्रहण कर्यानी त्यारपछीनां पद्योनी विगत ते बन्नेनो सूरिजी प्रत्येनो समर्पणभाव सूचवे छे. विशेषमां अहीं ढाळना अन्तमां कविए आपेल विद्याविजयजीना अभ्यासनी विगतो मुनिश्रीनी विद्याप्रीतिनी साथे साथे विद्वत्तानी पण सूचक छे. चोथी ढाळ शरु करतां पूर्वे कविए अहीं २ दूहाओ प्रयोज्या छे जेमांना पहेला दूहामां तेमणे "मुनि विद्याविजयजीने पदयोग्य जांणी विजयसेनसूरिजी वडे सं. १६५५मां पण्डितपद अपायानी" ऐतिहासिक विगत नोंधी छे. तो बीजा दूहामां "पोतानी पाट सोंपवा माटे योग्य पदाधिकारीनी तपास करता विजयसेनसूरिजीनी लाडोलमां ध्यान करवानी विचारणा" ने जणावी छे. दूहा पछीनी ढाळ चोपाइछन्दमां छे. ढाळनां प्रथम पांच पद्योमा सूरिजी लाडोल पधारता श्रीसंघ वडे करायेला सामैयानी विगतो छ. ज्यारे छठ्ठा पद्यथी लइ अग्यारमा पद्यमां कविए भोटु साह वडे करायेल चातुर्मासनी विनंतीनु, सूरिजी वडे अनुमति प्राप्त थये छते कराता भव्य महोत्सव, तथा सप्तक्षेत्र दान-अमारी पडह-साधर्मिकभक्ति-जीवदयादि धर्मकार्यो कर्या-कराव्या- ओछा पण रसाळ शब्दोमां करेलुं वर्णन अहीं जोइ शकाय छे. Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० ५९ काव्यनी महत्त्वपूर्ण कही शकाय तेवी केटलीक नोंधो ढाळना १०७मां पछीनां पद्योमां जोवा मळे छे. आ नोंधोमां गुरुभगवंत वडे (पट्ट योग्य शिष्यनी शोध माटे) करायेल सूरिमन्त्राराधनानी, ते साधनाना फळ स्वरूपे प्रसन्न थयेला यक्षराज वडे "पण्डित विद्याविजयजीने पोताना गच्छनो भार सोपवानी" विजयसेनसूरिजीने करेली भलामणनी, ध्यान पूरं थतां पोतानां वस्त्रादि विद्याविजयने सोंपवा द्वारा आडकतरी रीते तेमने पाट सोंपवाना संकेत आप्यानी विगतों विशेष ध्यानार्ह छे. प्रान्ते ढाळमां उल्लेखित पाटण, राजनगर, खम्भात आदि गामोना संघो वडे सूरिजीने तीर्थयात्राने बहाने पोताने त्यां पधारवानी विनंती कर्यानी विगतो सूरिजीनी लोकप्रीतिने सूचवे छे. हवेनी पांचमी ढाळ मारुणी रागमां छे. अहीं ढाळनी पूर्वेना दूहाओमां कवि सूरिजीने विहारमा सामा मळतां शुकनोनो वर्णना करी छे. ज्यारे ढाळनां शरुआतनां २ पद्योमा विहार करी अनुक्रमे सोजीत्रा पधारता सूरिजीना त्यांना व्यापारीओ वडे कराता प्रवेशमहोत्सवनी विगतने तेमज त्यांथी सूरिजीना खम्भात पधारवाना समाचार आपता वधामणीयाने श्रीसंघ वडे अपाती वधामणीनी विगतने कवि वडे आलेखाइ छे. त्यार पछी ढाळनां शेष पद्योमा कविए खम्भातना श्रीसंघ वडे करायेला सामैयानी विगतो सविस्तर आलेखे छे. तेमां पण सामैयामां शोभता विविध प्रकारनां - वाहनोनी, राज्याधिकारी - व्यापारी वगेरे साथे चालता महाजननी, विविध वस्त्रालङ्कारोथी सज्ज थयेली सधवा स्त्रीओनी तेमज जुदां जुदां वाद्यो वगाडातां व्याप्त थतां मंगलध्वनिनी विगतो विशेष उल्लेखनीय छे. वळी आ ज उत्तरार्धमां "सागुटि उपाश्रयमां सूरिजीनी पधरामणी करी तेमनी अंगपूजा कर्यानी" नोंधने तत्कालोचित प्रासंगिक प्रथा कही शकाय. त्यार पछीनी छठ्ठा आशाउरी रागनी ढाळना प्रथम २ पद्यमां तथा ते पूर्वेना दूहाओमां कविए पद महोत्सव माटेना मुहूर्त ग्रहण कर्यानी विगतो आलेखी छे. पछीनां पद्योमा कविए पदमहोत्सव करवा माटे भोटु साहे करेल विनंतीनुं तथा प्रसंग उजववा माटे करेली तैयारीनुं वर्णन प्रारम्भ्युं छे. आ तैयारीनी वर्णनामां देश-देशावरना श्रीसंघोने कंकोत्री मोकल्यानी, प्रसंगे पधारेला महेमानोना उतारानी, विविध जातना चंदरवा तथा तोरणादिकथी शोभती भव्य मंडपव्यवस्थानी, उत्तम प्रकारनां पकवानादि विविध द्रव्यो वडे कराती सार्मिक भक्तिनी, रात्रीजगो तेमज प्रभावनानी तथा वाद्योना घोषारवथी दिगन्तने गजव्यानी Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० अनुसन्धान-७९ विगतो अहीं आलेखाय छे. ढाळना अन्तमां अतिमहत्त्वपूर्ण कही शकाय तेवी ३ विगतो छे जेमांनी पहेली नोंध विद्याविजयजीने आचार्यपद अपायुं त्यारे अन्य १६ मुनिओने ते प्रसंगे वाचकपद आप्यानी, बीजी नोंध पद प्रसंगे पधारेला ७०० मुनिओमांथी केटलाक मोटा मुनिओनां तथा श्रावकोनां नामोनी छे. ज्यारे त्रीजी नोंधमां ते समये श्रीमल्ल साह वडे करायेल लाहणीनी वर्णना छे. केदार रागमां गवायेली काव्यनी सातमी ढाळ शाह कीका ठारना प्रतिष्ठा-महोत्सवनुं वर्णन करती ढाळ छे. एमां पण खास करी ते विधान माटे वेदिका कराव्यानी जवारा वाव्यानी जलयात्रा विधान आचर्यानी तेमज इन्द्रइंद्राणी स्थाप्यानी (?) विगतो छे. जो के अहीं ते सिवायनी पण अन्य केटलीक धार्मिक तैयारीओनी नोंध पण जोइ शकाय छे. आ ढाळनी बीजी एक विशेष मण्डप रचाव्यानी, विविध पुष्पोनां तोरणो तेमज उत्तम वस्त्रोना चंदरवा बंधाव्यानी, धवल मंगल गाननी साथे विविध वाजींत्रोना कराता निर्घोषनी, श्रावकसमुदायने अपाती पहेरामणी जेवी नोंध प्रतिष्ठा समये “चिन्तामणि पार्श्वनाथ' एवं प्रतिमानुं सूरिजी वडे करायेलुं नामाभिधान छे. काव्यनी आठमी ढाळ अधर रागमां गवाती चोपाइ छन्दनी रचना छे. ढाळना पूर्वार्धमां कविए सूरिजीना खम्भात चातुर्मास दरम्यान थयेली पूजा, स्नात्रमहोत्सव, माळारोपण, व्रतोच्चार, छठ्ठाठ्मादि तपश्चर्याओ वगेरे आराधनाओ, वर्णन कर्यु छे. ज्यारे उत्तरार्धनां पद्योमा चातुर्मास पूरुं थतां सकरपुर, कंसारी, सोजीत्रादि तीर्थोनी स्पर्शना करी संखारी पधारता पाटणना संघ वडे सामे लेवा आव्यानी तथा पाटणमां तेमना करेला भव्य सामैयानी विगतो छे. खासतो आ ढाळमां उल्लेखायेली "नारंगा पार्श्वनाथना दर्शन करी उपाश्रय पधारता सूरिजीनी श्रीसंघ वडे करायेली नवाङ्गपूजा"नी नोंध विशेष नोंधवा योग्य छे. वांदणा महोत्सव- वर्णन करती काव्यनी छेल्ली ढाळ धन्यासी रागमां गुंथाइ छे. पाटण संघनी विनंतीने ध्यानमां लई विजयसेनसूरिजीए ज्यारे विजयदेवसूरिजीनो वांदणा महोत्सव पाटणमा करवानी श्रीसंघने अनुज्ञा आपी त्यारे श्रीसंघना आदेशथी सहसवीर श्रेष्ठिए पाटणमां वांदणा महोत्सवनी केवी तैयारीओ करी तेनुं अहीं काव्यमां कविए क्रमबद्ध आलेखन करेलुं छे. आ तैयारीओमां सहसवीर वडे मोटा मोटा मण्डपो रचावायानी, उपाश्रयो शणगार्यानी Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० तेमज कुंकुम-केसरना छांटणाथी तथा विविध सुगन्धी द्रव्यो वडे भूमि वासित कर्यानी विगतो आलेखाय छे. खास तो आ प्रसंगे विमलहर्ष उपा. सहित ५ वाचको, केटलाक पंडितो तेमज अन्य मुनिओ सहित कुल ५५० साधु भगवंतो पधार्यानी मने तेमणे विजयसेनसूरिजीनी तेमज संघनी साथे विजयदेवसूरिजीने वांदणा आपवापूर्वक वन्दना कर्यानी विगत ढाळनी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री छे. वळी अहीं पद्य २६१मां उल्लेखित "सूरिमन्त्र ते दीधउजी" ए पद ते समये वांदणा महोत्सवमां सूरिमन्त्र अपातो होवानी विगत तरफ आपणुं ध्यान दोरे छे. काव्यान्तनां पद्योमां “रंगराज" एवं रास, अभिधान जणावी कवि रासनुं समापन करवा तरफ आगळ वधे छे. आ समापन क्रममां कविए सौ प्रथम पोतानो श्री(लक्ष्मी)सौभाग्यना शिष्य तरीके परिचय आपी त्यार पछी आ स्तवना रचवानुं प्रयोजन, कृति रचनानु स्थळ तथा संवत्नो उल्लेख करवापूर्वक काव्य- समापन कयुं छे. हस्तप्रत-सम्पादन : __ प्रस्तुत कृतिनी १ मात्र प्रत पाटण-श्री हेमचन्द्राचार्य ज्ञानमन्दिरमां सचवाई छे. ते प्रतना आधारे ज अहीं कृतिनुं सम्पादन करायुं छे. जो के लहियाए कृतिनी जे मूळ प्रत परथी कृतिनुं लिप्यन्तर कर्यु हशे ते लिप्यन्तरमां चीवट न राखी होवाथी लिप्यन्तर थोडे घणे अंशे अशुद्ध थयुं छे. माटे एटला पाठ सुधारवा करता मूळ अशुद्ध पाठने फक्त बोध थाय तेटलो ज शुद्ध करी तेनुं सम्पादन करवू योग्य जणाता अमे ते रीतने अहीं अनुसर्या छीए. कृतिकार : कृतिकार कनकसौभाग्यजी पंडित श्रीसौभाग्य (लक्ष्मीसौभाग्य)ना शिष्य होवानुं काव्यमां नोंधायुं छे. जो के ते पूर्वेनी तेमनी परम्परानो काव्यमां कशो उल्लेख नथी. परन्तु कविनी प्रौढ रचनाशैली जोतां तेमणे रचेली अन्य कृतिओमां कदाच ते सम्बन्धी कोई उल्लेख मळे तेवी सम्भावना खरी. प्रस्तुत कृति सम्पादन माटे हस्तप्रतनी Xerox उपलब्ध कराववा बदल श्रीहेमचन्द्राचार्य ज्ञानभण्डारना व्यवस्थापकनो खूब खूब आभार. Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ शब्दकोश १. वेणा = वीणा ३२. घांट = घंट २. दनि दनि = दिन दिन, दिवसे दिवसे ३३. पहउती = पहोंची ३. पाहि = करता ३४. जोतीक = ज्योतिष ४. नधि - निधि ३५. पारखी = पारखनार ५. रधि = रिद्धि ३६. सुहणा = स्वप्न ६. कुंअली = कोमल (?) ३७. कुल-तलउ = कुल-तिलक ७. कुटरा = सुंदर, मनोहर ३८. डहउला = दोहद ८. चांपा = चंपो ३९. उपेरि = उतपन्न थाय (?) ९. मिहिकि = महेंके ४०. सुरि-सरि = सूरि-आचार्य भगवंतने १०. जासुल = जासुद माथे ११. दमणु = डमरो ४१. वाला = (पाछा) वाळ्या १२. मणां = अछत, कमी ४२. वरजीजइ = वर्जे, त्यागे १३. धणि = धन्नि, धान्यथी ४३. दसुठण = जन्मना दशमा दिवसनो १४. सगाल = सुकाळ उत्सव १५. सुभख्य = , ४४. पटकुल = रेशमी वस्त्र १६. वालतु = पाछा मोकलतु ४५. फहीआरू = फई वडे जन्म समये १७. वीकटा = भयंकर - अपाती भेट १८. छजा = छापरा ४६. माय-उछंगि = मातानी पासे १९. अछोगालउ = काबर चितरुं नहीं एवा | | ४७. रमली = रमत __ अखंड (?) ४८. विय = वय, उमर २०. जिनवीहार = जिनचैत्य ४९. खडीआ = सफेद माटीनी पेन, स्लेट २१. प्रतिलाभी = वहोरावी पेन २२. छपर = ? ५०. विनि = विनय २३. पलिंग = पलंग ५१. आकसमात = अचानक २४. तलाइ = चादर, पाथरणु ५२. अंदोह = चिंता २५. उसीसु = ओशीकुं ५३. धनु = धन्यकुमार (शालीभद्रजीना २६. सावटु = रेशमी जरियन वस्त्र . बनेवीनू नाम) २७. बिहिकि = प्रसरे ५४. पाखरीआ = बखतरादिथी सज्ज करेला २८. सज्या = शय्या घोडा २९. मेढि = स्थंभ (?) ५५. चंतामणि = चिंतामणि (न्यायना ग्रंथर्नु ३०. आरति = दुःख नाम) ३१. पोढी = सूती ५६. सजाइ = तैयारी Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० ६३ ५७. सांबाला = शणगारेला सांबेला । ८५. ददामां = नगारु ५८. पंचसबद = पांच वाद्योनो मंगलसूचक | ८६. दडदडी = एक प्रकारनो ढोल ध्वनि ८७. भेरी = शरणाइना प्रकारचें एक ५९. णील-सली = लीला घांसनी (कांडी) | मुखवाद्य नानी लाकडी ८८. नफेरी = नानो ढोल ६०. नवाणि = बहोळा पाणीवाळां स्थानो, ८९. ताल = एक प्रकारचं वाद्य, करताल जळाशय ९०. कंसाल = कांसा जोडी जेवू एक वाद्य ६१. जणनी = जनने, व्यक्तिने ९१. सांचरा = संचर्या, गया ६२. हाथापीइ = हाथ-आपीइ, सहाय करवी | ९२. सागुटि = "सागवटी" नामनो पाटणनो ६३. आंबलि = आयंबिल एक महोल्लो ६४. बहइकई = प्रसरे-बहेके ९३. परवरा = परिवरेला ६५. जसइ = जेवा ९४. फोफां = सोपारी ६६. तसइ = तेवा ९५. जाचां = उंची जातना (?) ६७. महुलि = मोवडी, अग्रणी ९६. कणय = सुवर्णना ६८. पिहिलउ = पहेलो ९७. कभाइ = झभ्भा, अंगरखा ६९. असु = एम ९८. सामी = स्वामी ७०. हेषता = हणहणता, हर्षारव करतां ९९. थानक = स्थानक ७१. राज-वाहण = हाथी राजानुं वाहन १००. वलंब = विलंब ७२. वागा = वस्त्रो १०१. दाढउ = दिवस ७३. मोलीआ = फेंटा १०२. पहउरमांहि = प्रहरमां ७४. गोकणीउ = वेणी साथे गुंथवामां आवतुं | १०३. संचि = रचना करे (?) आभूषण १०४. कथीपउ = वस्त्र विशेष, मखमलनी ७५. फावती = धारण करती (?) एक जात ७६. वांकडी = वांकी १०५. चीणी = वस्त्रविशेष ७७. वाटलां = गोळ आकारवाळा १०६. रज्यत-तारी = चांदीना तारवाळु ७८. बिसती = बेसती, पहेरती (?) १०७. अभीराम = मनोहर ७९. घाटडी = लाल बांधणीनी ओढणी | १०८. झुमणां = कान, घरेणुं, झुंबनक ८०. मोतीजडउ = सेंथानुं आभूषण १०९. चुआ = विविध सुगंधी द्रव्योना ८१. मरकलि = मंद हास्य करती (?) मिश्रणवाळु एक द्रव्य ८२. आलती = आपती ११०. प्रीमल = परिमल, सुगंध ८३. वींछीआ = पगनी आंगळीमां पहेरातुं १११. काय = काजे, माटे आभूषण ११२. मांडी = पूरणपोळी जेवी रोटली ८४. बांहडी = हाथ उपर ११३. फीणी = सुतरफेणी Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ अनुसन्धान-७९ ११४. झाझा = घणा १४६. लाहण = लहाणी ११५. अखोड = अखरोट १४७. हवा = थया ११६. किरी = केरी १४८. भुइं = (त्रण) पीठिका ११७. सालनां = अथाणां, कचुंबर १४९. असुल = कांटा वगरनुं ११८. करपट = कांकडनु शाक (?) १५०. चउसाल = चारे बाजु, विशाळ १२०. कुंली = कुंणी (?) १५१. जवारा = लग्नादि मंगळ प्रसंगोमां १२१. छोल = छाल (?) . थतुं एक विधान १२२. डाडी = एक वनस्पतिनुं नाम १५२. पख्य पुरां = सासरु तथा पीयर ए १२३. प्रीसि = पीरसी बन्ने पक्षे सुखी १२४. अवारी = निरंतर १५३. वाइ = पवन १२५. रात्रीजगा = पर्वना दिवसे करातुं रात्री | १५४. वारू = सारी रीते जागरण १५५. खीरोदक = एक जातनुं धोळु रेशमी १२६. तंबोला = पान - वस्त्र १२७. रूपइआ = रूपीया १५६. वेलीआं = आंगळीमां पहेरवानुं एक १२८. नीसांण = नोबत अभूषण १२९. सि-सात = शत-सात, सातसो | १५७. माहंत = मोटा पुरुष १३०. माजनइ = महाजनमां, मोटा | १५८. सांझि = संध्या समये माणसोमां १५९. सांजी = गीतगाननो कार्यक्रम १३१. ओलि = पंक्ति १६०. अली[य] = वघन = खराब विघ्नो १३२. माइ = समाय १६१. अम्हो = अमे १३३. पोलि = पोळमां, महोल्लामां १६२. जुहारा = जुहार्या, वांद्या १३४. डुलति = दौलतथी १६३. पीआणुं = प्रयाण १३५. द्रवि = द्रव्यथी १६४. थुभ = स्तूप १३६. सगता = शक्तिवाळा १६५. वधामणीआ = वधामणी आपनारा १३७. सिहिज्य = सहेजे १६६. वहा = गया १३८. छपइ = छुपाय १६७. सवासउ = सवासो १३९. नांदि = नाण, त्रिगडु १६८. पायक = पायदळ १४०. संचि = युक्तिथी (?) १६९. मदनभेर = रणशिंगु १४१. वेढ = आंगळीमां पहेरवानी वींटी | १७०. गडगडां = गाज्यां (?) १४२. अतलस = कपडानी एक जात १७१. गराण = भारे पडवू १४३. लाहि = ल्हाणी करी १७२. एवडउ = आटलुं १४४. वइवारु = व्यवहार १७३. इसउ = आवु १४५. आथि = संपत्ति १७४. खसइ = चाली गइ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० १७५. गउ = गाय १८४. पठावइ = मोकले १७६. पाट = रेशमी वस्त्र १८५. परचुर = प्रचूर १७७. उपासरि = पउलीइ = "उपाश्रय"ना | १८६. सुंहाली = सुंवाळी, पूरी नामनी पोळे १८७. बणाइ = बनावे १७८. मेला = मुंक्या १८८. चोखा = चोक्खा, शुद्ध १७९. पावीआ = पाम्या १८९. झुमण = झूलता सुशोभन १८०. साहमोणाना = सामैयानी (?) । १९०. माजनि = महाजनमां १८१. ललीलली = लळी लळी, झूकी झूकी | १९१. जेरा = नाश करवो १८२. परीचि = परिचय १९२. टारत = टाळता १८३. अटकलीउ = विचार्यु १९३. पीरा = पीडा Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ अनुसन्धान-७९ विजयदेवसूरिरंगरत्नाकर (रंगराज ?) रास दूहा वीणा वेगि वजावती, गावती जिन-पद रंगि, कासमीरपुर-मंडणी, कुंकुम वरणइ अंगि १ दख्यण करि पुस्तक धरि, वेणा वामि हाथि, गजगति चालि चमकती, सखी तणइ सुभ साथि २ सा सरसति समरूं सदा, सपरभाति सुखकार, कवीजन कवीत जे उचरि, ते ताहरि आधारि ३ आदि सांति नेमि नमी, पार्श्व जिन वर्धमान, ईह प्रमुख जे जिनवरा, तेहनुं ध्याई ध्यान. - ४ श्रीहीरविजइसुरीसरू, तास पटोधर सार, दनि दनि दउलति दीपता, विजइसेन गणधार. जेहनी कीरति उजली, चंद्र कर्ण पाहि चंग, सुमति गुपति सुधी धरि, तप कीरीआसुं रंग ६ तास पटोधर गायसुं, विजइदेवसुरीराय, कनक कहि ते गायतां, नव नघि रधि घरि थाय.७ . ॥ राग-गुडी ॥ सकल देस सणगार, देस मनोहरू, इडरीउ अती दीपतु ए, तीहां वाडी वन अभीरांम, सहिकार सोहता, द्राख डाडिम मन मोहता ए. नारंगी नालीएरी, केलि कुंअली, फल दीसि अती फुटरा ए, रायण रूडां रूख, सोपारी सारी, विविध जाति वली वन घणा ए. Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० ६७ चांपा चंदन चंग, रंगि रूअडा, सुगंध गंध मिहिकि घणा ए मोगरजाति जासुल, दमणु मचकुंद, जाइ-वेलिनी नही मणां ए. इखु-वाड रसाल, सरस सकोमल, मंडप नागवेलि तणा ए, सजल सरोवर सार, नदी नीर भरी, वावि कुंआ दीसइ घणा ए. तीहां थानकि थानकि ग्राम, धन धणि करी, सुखी लोक तिहां सहु वसि ए, तीहां सगाल सुभख्य, दीसइ परतख्य, पुन्य तणी तीहां नही मणा ए. एहवउ इडर देस, देसे जाणीइ, मनरंगि वखाणीइ ए, तीहां नगर सुभ नाम, इडर नामि ए, सुरपुरी सम जाणीइ ए. राज करि तीहां राय, मंत्री परवरु, ___ नारायण नामि नरपती ए न्यायवंत सुभ संत, कीरति तेहनी, देस वदेस थई छती ए. नही अनीति लवलेस, देस तेहनि, प्रजा प्रेमि पालतु ए, जाचिकजन बहु बंद, आगलि बोलता, ___ दांन देइ ते वालतु ए हय गय रथ नही पार, सेवक सुरा ए, सामी आण सरि धरि ए, नही परदल परवेस, वीकटा वैरी ए, तेहनां दल दुरि हरि ए. Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ चउवट चउक हट-श्रेणि, सोहि अति भली, छजां सहीत सणगारीआं ए, वणजइ वरण अढार, विपारी घणा, सात वसन तीहां वारीआं ए. अछोगालउ अति, आछां अंगि ए, नर नारी पटकुल धरि ए, मंदिर मंदिरमांहि, नारी पदमनी, चतुर जननां चीत हरि ए. जिन-वीहार तीहां सार, पोढी पोसाल, साधुजने अलंकरी ए, विवहारीआ सुववेक, लख्यमी लख्यपती, विविध वस्तु दीसइ घरी ए. साह थरु तीहां मुख्य, विवहारी वडउ, सीलवंत सुखीउ सदा ए, पालि जिनवर आण, आदर अति घणि, धर्म तणी धरि धुरा ए. तस घरि घरणी सार, रूपां नामइ ए, सीलवंत सुलख्यणी ए, विनय विवेक विचार, जाणि जुगति ते, धर्म तणी ते रागणी ए. करि भगति भलि भावि, साध साधवी, प्रतिलाभी पोति जमइ ए, नीज भरतारसु प्रेमि, बोलि बोलडां, सखी-वंद साथि रमइ ए. छपर पलिंग सुभ रंगि, रूडु राजतु, लाल तलाइ पाथरी ए. उसीसु सुकमाल, उपेरि अति भलु, ओढणि साडी सावटु ए. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० चुआ चंदनना वास, बिहिकि बहु परी, आगलि अगर उखेविइ ए, पंच-वरण वर फुल, गुथ्यां गुणि करी, ते सज्या उपरि ठव्यां ए. एहवउ सघलउ संच, भोग तणउ भलउ, साह थरा घरि जाणीइ ए, घरणी घरनी मेढि, रूपां सीलि ए, सीता समोवडि आणीइ ए. विहिरी सयल सणगार, सुंदरि सुखभरी, जिनभगति भावि करी ए. नही आरति उचाट, पोढी सेजडी, जिनवर ध्यान हईइ धरी ए. पंच वीषइ सुख जेह, भरतार भामिनी, भोगवतां भावि सदा ए तीणइं अवसरि एक सुर, आवी उपर्नु, गज-सपन सुचीत तदा ए. रंगभरि रमतु जेह, घुघर घांट ए, घमघमता अंगि घणा ए, स्वेत-वरण सुकमाल, लख्यण लखीत, एहवउ गयवर पेखीउ ए. तव जागी सा नारि, आणंद अती घणउं, सपरभाति सा सुंदरी ए. पहउती नीज प्रीउ पास, प्रहि उगम समइ, वधावीनइ वीनवि ए. सुणउ सामी मुझ वात, आज रयणी तणी, सपन सार मि पेखीउ ए, तेहनु कहउ वीचार, वीनती वीनवु, एहनुं सु फल लेखीइ ए. Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० अनुसन्धान-७९ ३ सुणी प्रीआनी वात, सार सुपन तणी, साह थरू मनि हरखीउ ए, चीति चीतमांहि ताम, नअणे नींद तजी, सपन-भाव सुभ परखीओ ए. ३१ कहि प्रीआनि वात, नीज बुधि करी, सुत हउसि सही ताहरि ए, सुणी वचन रसाल, भगति भामिनी, __ जिनगुण गाइ गिहगही ए. थउं प्रभात सुभ वात, भरतार कामिनी, करि वीचार वारू परि ए, तेडावउ पंडित जाण, विविध जोतीक तणा, . आज उलटि आपण घरि ए. तेडाव्या तेणि वारि, पंडित पारखी, बहु मानि बोलावीआ ए आसन बिसन दीध, श्रीफल फोफल, आगलि आणी मुकीआ ए. कहु सु कारय तुम्ह, ते अम्हनि कहउ, साह थरउ तव बोलीआ ए, सुखभरि सुती जाम, प्रीआ पावन, गज-सपन सुणि लहि ए. ॥ दूहा ॥ नीसुणी वात सु[ह]णा तणी, हरख्या भट्ट तेणि वार, नीज मनसुं नीश्चि करू, जे सपन सुखकार. ३६ पुस्तक जोइ बोलीआ, भट्ट भला मनरंगि, सुत हउसइ तुम्ह कुल-तलउ, लख्यण बतरीस अंगि. ३७ एह अरथ अम्ह उपजइ, सास्त्र तणि अनुसारि, साह थरा तुम्हे सांभलउ, आणी हरख अपार. ३८ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० ७१ ४४] सपन तणु फल सांभली, हरख थउ नर नारि, एक रसना केतुं कहुं, ते जाणइ कीरतार. ३९ तलक करी संतोषीआ, पहउता नीज घरि सार, कनक कहि सहु सांभलउ, गर्भ तणउ अधिकार. ४० ॥ राग-सामेरी ॥ गर्भ वाधि जमणि अंगि, माय ताय मनरंगि, खाटुं खारू नवि लीइ, नवि कडवू ओषध पीइ. गर्भ तणइ अनुसार, सुभ डहउला उपेरि प्यार (अपार?), न करि आरंभ अंगि, जिनभगतिसु रंग. जव पहउता पुरा मास, तव पहुती मननी आस, पुत्र तणउ जनम हवउ, जाणे उग्यु सुरय नवउ. ४३ [संवत सोल चउत्रीसउ भणीइ, पोस सुदि तेरस दिन जणीइ, रोहिणी नख्यत्र रम(म्म), ताम हुउ पुत्रनुं जन्म. पुत्र तणुं मुख नरखि, सा. थरू मनमांहि हरखि, तेडावी जोतकी जाण, ते बिसारि बहुमानि. कहि पुत्र अम्ह घिर हुउ, जनम-जोग तुम्हे जुउ, लगन-भाव सुभ जाणी, इंम बोलि पंडित वाणी. ए लिहिसि सयल जगीस, ए थारि नरपती-ईस, कइ मुनीवर मन मोहि, ए सकल सुरि-सरि सोहि. ए वात सुणि मनरंगि, पिहिराव्या पंडित अंगि, देइ दांन सहु वाला, देइ आसीस ते चाला. दिवस दसमि दसुठण कीजइ, असुचि वस्त वरजीजइ, जे सोहवि मंगल गावि, ते पान सोपारी पावि. सुभ दिवस जब आवि, ते माय ताय मनि भावि, जिनमंदिर पुज रचावि, नगरि अमारि पलावि. मंडप मोटा करावि, तीहा सजन-वर्ग पधरावि, सजन सहुअ जमाडी, पिहिरावि पटकुल साडी. Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ अनुसन्धान-७९ फई नाम ठवि तीहां वासउ, लोक जुइ तमासउ, फहीअरि म(फ)हीआरूं दीजइ, इम लछी लाहउ लीजइ. ५१ सुत वाधि माय-उछंगि, तात हुलरावि रंगि, साढां पांच वरस जव थाइ, बालक सुं रमली जाइ. ५२ रमति रमि ते रूडी, छांडि संगति भुडी, माय मन उल्लासि, बिसि तातनि पासि. भणवानुं विय जाणी, नीसालि मुकइ आणी, न करि आलस अंगि, भणवा उपेरि रंग. महा महुछव कीजइ, नीसालीआ खडीआ दीजइ, तीहां सुखडी आलि सारी, जे नीसालीआनि प्यारी. थोडा दिन विद्या आवी, ते पंडितनि मनि भावी, वासण भणी घरि आवि, पंड्यानि साथि लावि. पंडित बहु धन दीधुं, कहइ वारू तुम्हे कीg, गुण तणउ ए दरीउ, सकल कलाई भरीउ. लघुपणि मति सारी, जे जाणइ सयल व्यापारी, माय ताय मनि चालइ, उतर नवि साहामु आलि. सहु सजन-विरग संतोषि, दीन दोहलां दानि पोषि, विनि साचवि वारू, ए कुल तणउ आधारू. तीणइ अवसरि एक वात, हुई आकसमात, नही आरति अंदोह, जिनधर्म उपेरि मोह. साह थरू सुभ ध्यांनि, जव पहउता इंद्र-वीमानइं, तव रूपां चींति आंम, किम चालसि घरनां काम. वासण सांभिल वात, परलोगि पहुतु तुझ तात, वड विवहारी जेह, परणावू पुत्री तेह. सुख भोगवज्यो संसारी, अम्हे थासुं संयमधारी, वलतु वासण बोलि, मेरू मही जउ डोलि तुहि ताहरां चरण, हउज्यो मुझनि सरण, संसारी-सुख जेह, मधुबिंदु सम तेह. Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० ७३ संयम लीजइ साथि, श्रीविजइसेनसुरि हाथि, वछ तु लघु वेस, वीहार करवा देस प्रदेस. आहार नीरदोष ते लेवा, बावीस परीसह सि(स)हिवा विनआदिक ववेक, करवा गुरना अनेक. साचववी सघली कीरीआ, जिणे जती-पंथ उधरीआ, दोहेलउ पंथ छइ एह, सकोमल ताहरी देह. दूहा सुणी वचन माता तणां, वासण बोलि आम, संयम साथि लीजीइ, कीजइ रूडां काम. सालिभद्र भोगी भलउ, छांडी सघली र(रि)धि, संयमव्रत पाली करी, लहि सरवारथ सिधि. धनु(न्नु) बनेवी तेहनु, तरुणी तजी तेणी वार, संयम सार पाली करी, लहइ सरवारथि सार. वली मोटा जे मुनी हवा, तीणे मुक्यउ संसार, वासण कहि माता सुणो, लेसुं संयमभार. ॥ राग-केदारूणी ॥ रूपां बोलि रूपां बोलि वासण परति रूपां बोलइ (आंचली), सुणि वछ वाणी, तुं हीत जाणी, रूपां.. सि(स)हिगुरु संगि, लेसुं रंगि, रूपां... संयम वारू, भवदुख-तारू, रूपां... इंम वात करंतां; हरख धरंतां, रूपां... विजइसेनसुरि आवइ, आनंद पावइ, रूपां... संवत सोल लहीइ, एकतालउ (१६४१) कहीइ, रूपां... इडरि आव्या, मोती वधाव्या, रूपां... सहु संघ हरखि, गुरु-मुख नरखि, रूपां... तीहां श्रावक श्रावी, बिठां आवी, रूपां... गुरुमुख-वाणी, सुणइ भवी प्राणी, रूपां... Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ अनुसन्धान-७९ को समकीत अंगि, धरि मनरंगि, रूपां... को वरत उचार, करि सुभकार, रूपां... तीहां वासण बोलइ, अमृत तोलइ, रूपां... अम्ह संज्यम लीजइ, मातसुं दीजइ, रूपां... नीसुणी गुरु आम, बोलि ताम, रूपां... वलंब न करज्यो, चीतमांहि धरज्यो, रूपां... इंम कही गणधार, करइ वीहार, रूपां... पांच सुमति सुमतां, नही कांइ ममता, रूपां... अनुक्रमइ पहुता, वीहार करंता, रूपां... राजनगरि पधारा, भवीजन तारा, रूपां... तीहां वासण आवइ, हरख न मावइ, रूपां..., गुरु-चरण वंदी, मनि आणंदी, रूपां... कहि कर जोरी, संयम गोरी, रूपां... आपु गुरुराज, सारू मुझ काज, रूपां... वासण-वाणी, काने सुहाणी, [रूपां] महुरत अभीराम, लीधुं ताम, रूपां... संवत सोल कहीइ, बहितालउ (१६४२) लहीइ, रूपां..., महा सुधि सारी, दसमी धारी, रूपां... सुकर सुभ वार, महुरत सार, रूपां... सा. वधुउ( ओ) सुभ चीत, वावरि वीत, रूपां... सरिखं प(ए) सोहाउ, सोहासणि गाउ, रूपां... सुखासनि सोहि, भवीमन मोहि, रूपां... जाणे देवकुमार, सकल गुणधार, रूपां... आगलि पाखरीआ, मनोहर करीआ, रूपां... पंचसबद नीसाण, वजावइ जाण, रूपां... खीर वषि पहउता, मनसुं गहिगहिता, रूपां... महा मुछव कीधउ, संयम लीधर, रूपां... मातनी साथि, विजइसेनसुरी हाथि, रूपां... ८४ (अ) ८४ (ब) Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० ७५ बहुत दवाजइ, विजइसेन छाजइ, रूपां... विद्याविजय नाम, ठवीउ ताम, रूपां... विनआदिक वारू, करि विसारू, रूपां... ग्रंथ अभ्यासि, गुरुनि पासइ, रूपां... अंग इग्यार, उपांग बार, रूपां..., व्याकरण हेम, साहित तेम, रूपां... चंतामणि चारू, परमाण वारू, रूपां..., सकल विचार, लहि हीतकार, रूपां... इम ग्रंथ अनेक, भणां सुववेक, रूपां..., गुरु चीत राखइ, असत्य न भाखि, रूपां... . दूहा संवत सोल पंचावनि (१६५५), माघसर सुदि छठि जोय, पंडितपद आपु तदा, तव हरखुं सहु कोय. तीणइ अवसरि मनि चीतवी, श्रीविजयसेन गणधार, पटि जोगि जोवा भणी, लाडुलि करि वीहार. ॥ चउपइ ॥ श्रीविजइसेनसुरी गणधार, सकल सास्त्र जाण गुरु सार, पंच महाव्रत पालइ चंग, तप कीरीआसुं अधिकउ रंग. साह कमासुत गुणनी लता, वाचक वीबुध सहीत सोहता, लाडउलि नअरि पधारइ गछधणी, सामहीआनी सजाइ घणी. ९७ हय गय रथ सणगारा सहु, सांबाला ते कीधा बहु, कणअ कलस सोहवि सरि धरइ, धज तोरणने आगलथी करइ. ९८ पंचसबद वाजइ नीसांण, सोहवि गीत गाइ सुजाण, कन्या गाय पुरण-घट मल्या, सकल मनोरथ मनना फल्या. ९९ सकुन सार जोई इम लीध, लाडउलिमांहि परवेस ज कीध, संघ सवे आणंद्यउ घj, तेहनी वात हुं केती भणुं. __ १०० Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ १०३ १०४ १०७ महा महुछव हउइ अपार, भोटु साह बोलइ तीणी वार, श्रीगुरु सुणो कहुं कर जोडि, चउमासुं रही पुरु कोड. १०१ आस अम्हारी पुरण करू, करी वीनती चीतमांहि धरू, तुं मुनीवर कृपानु नाथ, माहरि मस्तकि देज्यो हाथ. नीसुणी भोटा साहनी वाणि, रहा चउमासुं श्रीगुरु जाणि, . . उछव महउछव थाइ अपार, मलउ संघ नवि लाभइ पार.. भोटउ साह भावई भावीउ, साते खेत्रे ते द्रव्य वावीउ, नीज लछीनु लाहउ लीइ, जाचिकजननई वांछीत दीइ अमारि पलावइ मननी रली, नवि भांजइ कोए नील सली, नदी नवाणि गलणां आखी(पी)इ, पोताना जण नीहा थापीइ. १०५ इंम अमारिपढउ बाजीइ, जिनसासन-महिमा गाजीइ, खेत्र-गुण जाणा अभीराम, तीणइ अवसरइ गुरु चींति आय. १०६ सुभ महुरत लेइनइ आज, ध्यान तणुं इहां कीजइ काज, वाचक वीबुधनइ मनि आणि, श्रीगुरु बइठा सुखसु ध्यांनिं. सुरिमंत्र समरि गुणनिध्य, जेहथी लहीइ सघली सिध्य, धुलि धानि आंब(बि)लि करइ, श्वेत वस्त्र ते अंगि धरइ. १०८ आगलि अगर बहइकइ बहु-मूल, ततख्यणि देव थाइ अनकुल, प्रगट थइनइं बोलि वाणि, मीठी मधुरी अमीअ समाणि. १०९ विद्याविजय छइ गुण- धणी, पदवी देज्यो तुम्हो आपणी, ए धरसि तपगछनु भार, जिनसासनि हुसइ सणगार. ११० जक्षराअ ते इंम कही जाइ(य), श्रीगुरु हीअडि हरख न माय, नीसुणी ते देवनी वाच, श्रीगुरु जाणी सघलु साच. १११ ध्यांन पारीनइं बइठा जसइ, विद्याविजयनई तेडि तसइं, इरयासुमतिं ते आवीउ, विनय करी बइसइ भावीउ. ११२ जे वस्त्र अंगि पिहिरीआं, विद्याविजयनइ ते सवि दीआं, सुभ महुरत जोइ सुरीस, महुलि आव्या सहु नामइ सीस. ११३ देस देसना संघ सांभली, वंदणि आवि ते सहु मली, पाटण संघ पिहिलउ आवीउ, सबल सजाई ते लावीउ. ११४ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० ७७ ११६ ११८ कर जोडी करइ वीनती घणी, पाटणि पधारु गछधणी, नारिंग पास परसीधुं नाम, ते जुहारू गुणनुं धाम. राजनगर-संघ कहि कर जोड, पुज्य पधारु पुरउ कौड, चिंतामणि- महीमा सार, ते जुहारू तुम्हो गणधार. जंबावती-संघ बोलइअसु, बंदिर कांठि अम्हे वसुं, तीहां पधारू महा मुनीराज, अम्हारी राखउं कांई लाज. थंभणपास परसीधउ सदा, टालइ भवीजननी आपदा, ते वंदणि पधारू देव, संघ सहु तुम्ह करसइ सेव. भोगावती-संघ सदा भावीउ, ते तुम्हनइ लेवा आवीउ, देखी आग्रह तेहनउ घणउ, करइ अवसरि जाणीसइ सुणउ. दूहा लाडुलि चउमासु करी, सुभ महुरत सुभ वार, चउमासानि पारणि, पुज्य करइ वीहार. सोहासणि सामी मली, पिहिरी पटकुल अंगि, जमणां जंगल उतरी, ते रमतां मनिरंगि. गवी देवि ते श्व(स्व)र करि, हणमंत जमणां जोय, ........ राजा ते हवउ, अणचीता फल होय. मदि झरता मिगल मलि, हय हेषता सार, कनक कहि सहु सांभलउ, ए सकुन तणउ अधिकार. १२३ . ॥ राग-मारुणी ॥ . अनुकरमि पुज्य पधारीआ, सोजिंद्रे सुभकारीआ, विवहारीआ, महुछव तीहां वारू करइ ए. वधामणी आवी कहि, खंभ नयरमांहि ते लहि, ते लहि, सोवन रसना सावटु ए. सामहीआनु पंच लावि, सोजिद्रे साहसु आवि, साहमु आवि, संघ मली सह सामटउ ए. राजवाहण तीहां राजि ए, सांबाला बहु छाजइ ए, छाजइ ए, सुखासन सुखीआ तणां ए.. १२४ १२६ १२७ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ अनुसन्धान-७९ पालखीइं बइठा बाल, वागा सोहि अती लाल, अती लाल, मस्तकि मोटां मोलीआं ए. मिगल मोटा मदभरा, तेजी तुरंगम सज करा, सज करा, रजत-रथ रलीआमणा ए. विवहारीआ अधकारीआ, विविध वेष तेणे धारीआ, धारीअ जिनवर-आण सरि सदा ए. सोहवि सहु सरखी मली, कंठि ठवी चंपक-कली, चंपक-कली मस्तकि फुली फुटरी ए. सोवन-चुडउ करि हवउ, रतन-जडीत दीसइ नवउ, दीसइ नवउ, वेणी गुंथउ गोफणीउ ए. पगि झांझर झमकावती, कटिमेखल कटि फावती, फावती, नाके वाली वांकडी ए. कांने कुंडल वाटलां, पटकुल पिहिरां पातलां, पातली, चोली अंगि बिसती ए. उपेरि ओढी घाटडी, माणिक हीरा मोती जडी, मोतीजडउ, सरि सिंथउ सोहावीउ ए. अधर-रंग परवालीअ, रसना राती लालीअ, लालीअ, दांत तणी अती दीपती ए. माहोमांहि मरकलि, हसती रमती चीत हरि, चीत हरि, चतुरपणि ते पण ते मालती ए. सरस सकोमल बोल ए, मुख्य वावरि तंबोल ए, तंबोल ए, माहोमांहि आलती ए. गोरि अंगि गोरडी, सकल कला अलंकरी, अलंकरी, सीलि सीतानी परि ए. कणय-कलस सज कीधा ए, श्रीफलसु सरि लीधा ए, लीधा ए, धवल-मंगल रंगि गावती ए. गजगति चालि चालती, पाए वींछीआ खलकावती, खलकावती, बाजुबंध बि बांहडी ए. Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० ७९ १४२ १४३ . १४४ १४५ पंचसबद तीहां वाजीए, त्रंबावती संघ वीराजीए, वीराजीए, ढोल ददामां दडदडी ए. भेरी नफेरी तणा, सरणाई सबद सोहांमणा, . सोहामणा, ताल कंसालसुं दीपता ए. इंम संघ सजाइ सकल करी, आगलि अष्ट मंगल धरी, मंगल धरी, श्रीपुज्य साहामा सांचरा ए. महामहउछवि पधरावीआ, सागुटि उपासरि आवीआ, . आवीआ, चतुरविध संघसुं परवरा ए. इंद्र-सभा सम सभा मली, अंगपुजा करि मनि रली, मनि रली, आगलि चोक मोती तणा ए. १४६ सोवन रूप फुल ए, मोती वली बहु मुल ए, मुल ए वधावी प्रभु वांदीआ ए. १४७ प्रभावना बहु कीजीइ, श्रीफल फोफां दीजीइ, दीजीइ, जाचिक जाचां मोलीआं ए. १४८ कणय कभाइ करावीइ, जाचिक-जन पिहिरावीइ, पिहिरावीइ, सामी सारां सावटु ए. श्रीगुरु तीहां पधारीआ, हरख्या सहु विवहारीआ, विवहारीआ, वीनती तीहां वारू करइ ए. दहा . संघ सवे मली करी, करि वीनती कर जोडि, पद तणुं महुरत लीउ, ए अम्ह पुरो कोड. एह थानक रूडं अछइ, करू पदनुं काम, एह वचन श्रवणे सुणी, श्रीगुरु बोला तांम. १५२ तेडउ पंडित जोतकी, म करू वलंब लगार, तेहनी साखि लीजीइ, पद-महुरत सुखकार. १५३ ॥ राग-आसाउरी ॥ त्रंबावती संघ संप लछी पुराजी, धर्म तणो वली रंग दानि सुराजी, वंदइ स[ह]हि-गुरु चरण कहइ इंम कीजइजी, आचारज्यपद कीय महुरत लीजइजी. १५४ १५० १५१ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ तेडउ जोसी जाण महुरत आपिजी, पद तणुं छइ काम दाढउ थापइजी, संवत सोल सुखकार छपनो (१६५६) कहीइजी, वैसाख सुदि सोमवार चउथि दिन लहीइजी. पहउरमांहि परसीध महुरत लीधुंजी, तलक करी बहु दान जोसी दीधुंजी, देइ आसीस ते भट सवे वलीआजी, संघ चतुरवीध्य सार मनोरथ फलीआजी. तीहां अवर जोइ जांण बोलइ वाणीजी, श्रीमल साह सुजाण अमीअ समाणीजी, मागि श्रीसंघ पास आगन्या दीजइजी, आचारयपद-काय महउछव कीजइजी. संघ सकल मनरंगि आगन्या आपिजी, श्रीमल साह कर जोडि मस्तकि थापइजी, उलट घरतां अंगि मंदिर आवइजी, सोमा साहनइ कानि वात सुणाविजी. गुजर मालव देस दक्षण कहीइजी, मेदपाट मारूआडि मेवाड लहीइजी, सकल देस सणगार सोरठ सारीजी, जीहां श्रीसेजेज नि गिरिनारि आनंदकारीजी काहनम दमण देस प्रमुख कहीइजी, इंम देस अनेक अभीरांम नामने लहीइजी, कंकोतरी कुंकुमवरणि लखी चलावइजी, देस दे[सा]ना संघ वेगा आवइजी. श्रीमल साह मनरंगि घरि पधरावइजी, देइ पांन बहु मानि उतारा अलावइजी, मंडप मोटि संचि मनडुं मोहिजी, थानकि थानकि थंभि पुतली सोहिजी. Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० कथीपउ बहु-मुलि मकबल सारीजी, चीणी झीणी जेह रज्यत-तारीजी, पंच वरण अभीराम भाति वीराजइजी, चंदरुआ अभीराम मंडपि छाजइजी. मांहि मुगताफल-माल झुमणां झलकइजी, चुआ चंदन फुल प्रीमल बिहिकिजी, तोरण मंदिर बार बांधा सोहिजी, मांहि आरीसा झाकझमाल मनडु मोहिजी. गुख तणा भला संच गोरी गाइजी, जमणवारनि काय पकवान थाइजी, नांम सुणो सहु तेह मांडी मीठीजी, फिणी झीणी सेव भेली दीठीजी. घेवर जे घृतपुर खांडि भेलांजी, लाडुं जलेबी तांम झाझा मेलांजी, इंम जाति घणी पकवान मेवा आणइजी, चारूली बदाम अखोड जाणिजी. सेलडी किरी पाक कोहला लहीइजी, सालि दालि सुगंध सालनां कहीइजी, डोडी करपट कइर घृतसुं कीधांजी, काकडी कुंली छोल राइ दीधांजी. पीपरि खारी सुठि डाडी लाविजी, प्रीसि प्रीसणहार जेहुनि जे भावइजी, सामग्री इंम कीध सघली सारीजी, जमणवार दिन बार करइ अवारीजी. राती-जगा रंगि मंदिर थाइजी, गंध्रव बिठा गीत आगलि गाइजी, कुंकुम लेइ रयण-घोल करि रंगरोलाजी, सोमउ साह सुजाण दीइ तंबोलाजी. Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ श्रीफल फोफल पानमांहि रूपइआजी, आपइ सोमउ साह मंडपि रहीआजी, श्रीमल साह आवास महउछव राजिजी, पंचसबद नीसांण नीसदन वाजइजी. देस देसना संघ पार न लहीइजी, मुनी मला सि-सात माजनइ कहीइजी, इंम संघ चतुरविधमांहि श्रीपूज्य सोहिजी, श्रीमल साह आवास मनडुं मोहइजी. लोक मला तीहां थोक उभा ओलिजी, माणसनु नहीं पार न माइ पोलिजी, तीहां वाचक बिठा पांच श्रीगुरु पासिजी, श्रीविमलहर्ष उवझाय मन उल्लासइजी. श्रीकल्याणविजइ उवझाय बुधि-भंडारजी, लबधिसागर सास्त्र वीचार जाणि सारजी, श्रीसोमविजय उवझाय उपसम भरीउजी, संयमश्रीसुं प्रीति तारण तरीउजी. श्रीनंदविजय उवझाय दुलति दीपइजी, वादी तणा ने बंद तेहनि जीपइजी, वीबुधमांहि वीख्यात धर्मधोरीजी, धनवीजय भलुं नाम मति-गोरीजी. वीबुध-वडा वजीर रंगवीजइजी, श्रीपुज्य चलणे चीत नीसदिन भजइजी, मुनी गणि गुणवंत श्रावक सुणीइजी, संघवी उदयकरण सोमकरण संघमुख्य भणीइजी. तेजपाल साह श्रीवंत उधार कीधउजी, श्रीसेजइ सार जगि जस लीधुजी, पारख्य राजीआ वजीआ रंग रूडो राखिजी, ठार कीका काला हीर प्रतिष्ठा भाखिजी. १७४ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० जइराज ठार जसवीर भाइ भगताजी, लाइ ठार कुंअर ठार द्रवि सगताजी, कुअरजी गांधी नाम सघलि सुणिइजी, करावउ जिनवीहार कावी भणीइजी. कालउ साह पासवीर साहिज्य सुहालाजी, बोलइ वचन रसाल सयल गुण-मालाजी, इम खंभायति संघ [सघ]लउ दीपइजी, कुमती तणा तीहां बंद लाजी छपइजी. श्रीमल साह आवास आनंदकारीजी, मलउ चतुरविध संघ इंद्र-अवतारीजी, मीठी मधुरी वाणि अमृत-तोलिजी, श्रीविमलहर्ष सुणउ वात श्रीपूज्य बोलिजी. तुम्हे छउ गुण गंभीर आनंदकारीजी, तेडउ विद्याविजइ वार वेला सारीजी, नीसुणी श्रीगुरुवाणि आणंद पावइजी, विद्याविजइनइ पास उवझाय आवइजी. पधारू श्रीगुरु पास तुम्ह बोलावइजी, तुम्ह दरिसन देव समानि सहुअ सुहावइजी, पुछइ विद्याविजइ ताम काम सु कहीइजी, नीज पद देवा काय एहवं लहीइजी. ए भार मई न झलाय श्रीपुज्य कहीइजी, तुम्ह चरणे नीस दीस अम्हो रहीइजी, वलता बोलइ आंम वाचक वारूजी, पुरव कीधां पुन्य तेह संभारुजी. इंम कही तेणी वार झाल्या हाथिजी, आणा श्रीपुज्य पास उवझाय साथिजी, समोसरण आकारि नांदि मंडाविजी, चउमुख प्रतिमा च्यार भली भाविजी. Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ श्रीफल दीपक सार आगलि कीजइजी, पंचसबद गुण-गान गहुली दीजइजी, पहुरमांहि परसीध महुरत लीधुंजी, नीज पदि थापी नाम विजइदेव दीधुंजी. वाचकपद ए दीध वीबुध सोलिजी, तीहां सुर रही आकास जइकार बोलइजी, वरत तणा उचार अनेक थाइजी, समकीत लीइ सार माल पिहिरायजी. वरतु जगि जइकार हरख न माइजी, श्रीमल साह आवास द्रव्य खरचाइजी, सामी सावटुं दीध सोहवि साडीजी.. संघ पिहिरावउ संचि वली व्रतधारीजी. जाचिक दीधां दांन कणयकभाइजी, वेढ मोलीआं लाल अतलस लाहिजी, द्रव्य तणउ तीहां वइवारू कीधउजी, श्रीमल साह सुजाण जगि जस लीधउजी. . दूहा पद देइ पधारीआ, उपासरइ संघ साथि, लीला वि(?) विवहारीआ, खरचइ आपणी आथि. १८७ लाहण लाभ हवा घणा, तेहनु न लहु वार, कनक कहि सहु सांभलउ, प्रतिष्ठा अधिकार. ॥ राग-केदारगुडी ॥ वैसाख सुदि सातिम गुरुवार, लीधुं प्रतिष्ठा महुरत सार, वरतु जइ जइकार १८९ भवीका... कीका ठार मनि हरख न माइ, काला ठार लालजी मनि भाइ, . हीर जस गवाइ १९० धर्मधुरंधर त्रणे भाइ, प्रतिष्ठानी करइ सजाइ, भाव भलउ चीति ध्यांइ १९१ भवीका... पारगुडा ॥ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० भुइं सुध वेदिका करावइ, मंडप मोटा तीहां ठावइ, भुइं त्रणि सोहावि १९२ भवीका.... तोरण तीहां बांधा बहु मुल, पंच वरण तीहां सोहि फुल, ते दीसइ असु(मु)ल १९३ भवीका... चंदरुआ बांधा चउसाल, कथीपा मकबलना लाल, तेजइं झाकझमाल १९४ भवीका... गोख कोरणी रूडी राजइ, मंडपि सुभ सजाइ छाजइ, पंचसबद तीहां वाजइ १९५ भवीका... सुभ महुरति जवारा वावइ, धवल मंगल भला सोहवि गावइ, सज्जन सहु मनि भावइ १९६ भवीका... संघ चतुरविध मलीउ ताम, जमणवार करइ अभीराम, राखुं जगमांहि नाम १९७ भवीका... जलयात्रानुं करइ मंडाण, रूड़े रचीउं देववीमान, तीहां बिसि जिण-भाण १९८ भवीका... राजवाहण अभीराम वीराजइ, मदि भरीआ मइगल तीहां गाजइ, पंचसबद सुभ वाजइ १९९ भवीका... इंद्र इंद्राणी बे पख्य पुरां, सकल गुणे भरीआं जे पुरां, ते सणगारां पुरां २०० भवीका... कण(अण)य कलस सारा सज कीधा, श्रीफलसुं सोहवि सिरि दीधा, ते आगलथी कीधा २०१ भवीका... इंम सजाइ सकल सोहावइ, जल जात्रा करी घरि आवइ, हीअडइ हरख न मावइ २०२ भवीका... वेदिका-मंडप जीहां चंग, तीहां मलउ संघ मननइ रंगि, उलट अधिकउ अंगि २०३ भवीका... श्रीविजयसेनसुरी गछराज, आव्या करवा प्रतिष्ठा-काज महुरत वेला आज २०४ भवीका... जइ जइकार करइ रहा सुर, नाळू अंधकारनुं पुर, वाजइ मंगल तुर २०५ भवीका... Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ धवल मंगल तीहां गोरी गाइ, ढोल ददामां संचई वाइ, मलउ संघ नवि माइ २०६ भवीका... सुभ वेला जाणी अभीराम, अंजन करी दीधुं सुभ नाम, पास चिंतामणि ताम २०७ भवीका... वाचकपद वेदिकामांहि एक, विजइराजनइ दीइ ववेक, खरचइ द्रव्य अनेक २०८ भवीका... कीका ठाहार मनोरथ सीधू, प्रतिष्ठा वारू परि कीध, जगमांहि जस लीध २०९ भवीका... संघ सवे पिहिरावणी कीजइ, श्रीफल सहीत खीरोदक दीजइ, लछी लाहउ लीजइ २१० भवीका... सोहवि आपि साडी सारी, वेढ वेलीआं दीइ व्रतधारी, हरखइ मनि अपारी २११ भवीका... सात खेत्रे ते द्रव्य वावइ, दीइ दांन जाचक जे आवइ, कणय कभाय पिहिरावइ २१२ भवीका... कीकइ ठाहारि इंम महउछव कीध, सजन संतोषी जगि जस लीध, मोठे कारय कीध २१३ भवीका... श्रीविजयसेनसुरी सुभ नाम, प्रतिष्ठानां कीधां काम, पहउता उपासरि ताम २१४ भवीका... दूहा पद-प्रतिष्ठा कारय करी, श्रीपूज्य रहा चउमास, श्रीविज[ य देवसुरीसरू, बिठा सोहि पास. मूरति दोए दीपती, जगमांहि जस अभीराम, विजयसेन विजइदेव,, जपुं निरंतर नाम. २१६ रसना अमृत-रस झरि, पीवइ भवीजन लोग, रोग सोग तेहना टलइ, पामइ वंछीत भोग. ॥ राग-अधरस चउपई ॥ श्रीगुरु चरणे जे मुनी मली, पद प्रतिष्ठा ते जोइ वली, आदेसे पहउता माहंत, सिहिज सभावि मुनीवर संत. २१८ ____२१५ २१७ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० जान्युआरी - २०२० रहा चउमासुं श्रीसूरीराज, चालि धर्म तणां सुभ काज, सनात्र महउछव थाइ अनेक, त्रंबावती संघ सदा ववेक. २१९ सतरभेदि पुजा हउइ जाम, समोसरणनां चालइ काम, मालारोपण व्रत उचरइ, समकित सहीत बार व्रत धरइ. मासखमण प्रमुख तप थाय, छट्ठ अट्ठम गणा नवि जाय, सपरभाति प्रभावना होय, सांझि सांजी दीइ सहु कोय. २२१ पाखी आठिम पांचिम तणां, सामीवछल थाय घणां, लाभ तणउ नवि लहीइ पार, चालइ धर्म तणा व्यापार. २२२ अनेक महुछव हुआ घणा, ते महीमा श्रीपूज्यह तणा, पूज्य तणइ परभावि वली, अली[य]वघन सवि जाइ टली.२२३ थउ चउमासुं पुरण जसि, रंगविजइनइ तेडि तसिं, सुणो वात अम्हारी तुम्हो, वीहार करेवा करुं अम्हो. २२४ इंम कहीनइ सधावीआ, साहामा सुकन भला आवीआ, श्रीफल सहीत सोहासणि मली, प्रथम चिंतामणि जुहारा वली. २२५ तीहांथी पुज्य पीआणुं करइ, मइगल जमणा तव उतरि, सकरपुरि पहउता गणधार, थूभ जुहारूं हरख अपार. २२६ तीहांथी संघ सहीत सांचरा, कंसारीमांहि जइ उतरा, भीडभंजन जुहारी जगदीस, सोजीने पहउता सुरीस. अनुकरमि करता पुज्य वीहार, पहउता संखारी सुखकार, राति एक तीहां वासउ रहा, वधामणीआ आगलि वहा. २२८ जइ पाटणमांहि जाण ज कीध, वधामणी झाझी तस दीध, श्रीपुज्य आवि सहु हर्ष धरि, सामोहीआनी सजाइ करइ(रि) २२९ सांबाला सवासउ सार, कणय-कलस माजनइ हजार, राजवाहण राजइ अभीराम, धज तोरण केतां कहु नाम. २३० रजत-रथ सणगारा घणा, पार न लाभि पायक तणा, सोहवि करि सोहि साथीआ, आगलि दीधा वली हाथीआ. २३१ अष्ट मंगल थालीमांहि लीइ, धवल-मंगल सोभा सोहवि दीइ, मदनभेर गडगडां नीसाण, तव कुमतीना पडा गराण. २३२ २२७ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ अनुसन्धान-७९ कहि कोलाहल एवडउ किसउ, कुण आवइ गछपती इंहा इसउ, श्रीविजयसेन सासन-सुलतान, जेहनइ भुप दीइ बहुमान. २३३ ते आडंबरि आवइ इसइ, तव कुमती लाजीनइ खसइ, पाटण संघ सदा भावीउ, संखारी साहमउ आवीउ. २३४ गुरु-चरणे पाथरि पाट, ते सवि लेता आवइ भाट, पाटणमांहि परवेस ज करइ, कन्या गउ जमणां उतरि(रइ) २३५ इंम सकुन थाइ अनकुल, साहामां सुगंध मलइ वली फुल मछ-जुगल मदिरा घट भरी, एहवा सकुन सनमुख करी. २३६ एह सकुन पुरइ मन आस, जइ जुहारा नारिंग पास अति आडंबरि पुज्य आवीआ, संघ चतुरविध मनि भावीआ. २३७ उपासरि-पउलीइ पहुत, साधु साधवी साथि छइ बहुत, संघ चतुरविध मलउ मनरंगि, रूपइए पूजइ नव अंगि. २३८ सोना रूपानां जे फुल, मांहि मेला मोती बहुमूल, वधावी वांद्या सुरीराज, तुम्ह भेटि अम्ह सीधां काज. २३९ प्रभावना श्रीफल दीजीए, इंम लछी लाहउ लीजीइ, जे जाचिक तीहां आवीआ, कणय तुरंगम ते पावीआ. २४० इंम अनेक खरचीनि दाम, साहमोणाना कीधां काम, लली लली वंदि सहु नर नार, भलि मला गुरु भव-जल-तार. २४१ गुरुमुख-वाणी अमृत जसी, सहु सांभलवा आवइ धसी, सुणइ देसना दुरीत नीवार, जीवादीक नवतत्व वीचार. २४२ एह संबंध एतलइ हवउ, आगलि. संबंध कहीसइ नवउ, सहु सज्जन सुणज्यो एकचीति, श्रीगुरु उपेर आणी प्रीति. २४३ दूहा श्रीविजइसेन विजइदेवसुरी, बइठा सभा मझार, वीनअ करीनइ वीनवइ, संघ सहु तेणी वार. चंबावती पद थापउं, राखी तेहनी लाज, वांदणा महउछव इहां करी, सारउ अम्हारां काज. २४५ २४४ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० २४८ २५० २५१ वलता श्रीगुरु बोलीआ, सुणी संघनी वाणि, जे तुम्ह मनमांहि वात छइ, ते चढसइ परमाणि. २४६ ॥ ढाल ॥ राग-धन्यासी ॥ जे पंडितनि सबला परीचिं, जोतिकना सही जाणाजी, ते पंडितनइ अती बहुमानइ, तेडीनइ तीहां आणाजी. २४७ श्रीविजइसेनसुरिसर पासि, संघ सवे तीहां मलीउजी, सास्त्र तणा उपओगि जाणी, सुभ पहुर अटकलीउजी. संवत सोल सदा सुखकारी, अठावनु(१६५८) जाणउजी, महा सुदि पंचमीनि सोमवार, ए महुरत वखाणउजी. २४९ करी थापना महुरत केरी, श्रीफल सहुनइ दीघजी, पाटणमांहि हुइ वारता, वांदणा महुरत लीधजी. सहसवीर पारख कहइ सहु संघनइ, सुणउ वीनती मोरीजी वांदणा महुछव करवा आगन्या, हुं मागु कर जोरीजी.. संघि आज्ञा आदरसुं दीधी, सहसवीर पारखि कीधीजी. सजाइ सघली महउछव केरी, वाजइ घिर नफेरीजी. मंडप मोटा रूडी रचना, हेम रजतमइ राजइजी, गुखि गुखि गोरी गुण गाइ, पंचसबद सुभ भावइजी. उतर दख्यण पुरव पश्चिम, कंकोतरी पठावइजी, जेह संघ आडंबरि आवइ, ते मंडपि पधरावइजी. जमणवारनई काजि जाचां, पकवांन परचुर थाइजी, घेवर लाडुं मांडी मीठी, सेव सुंहाली बणाइजी. सालि दालि सालनां सजाइ, अति अपुरव कीधीजी, संघ सहुनई सुपरिं जमाडी, पिहिरावणी बहु दीधीजी. श्रीफलसुं रूपइउ सारउ, तंबोल आलइ हाथिजी, सहसवीर पारख्य आडंबरि आवइ, उपासरि संघ साथिजी. २५७ उपासरउ सणगारू सोहइ, जाणे देववीमानजी, नाटकना सुभ रचीआ संच, गुण-गंध्रव करि गानजी. २५८ १२ २५३ २५४ २५५ २५६ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ चीणीना चंदरूआ चोखा, मकबलना मन मोहिजी, गुखि गुखि झलमलि झलकंती, उपेर झुमण सोहिजी. २५९ अगर अबीर सुगंध मइमहइ, चुआ चंदन चंगजी, कुंकुम केसर करी छांटणां, सहसवीर पारख्य राखइ रंगजी. २६० साढा पांचसि मुनी माजनि, पंडित पंच्यासी कहीइजी, वाचक पांच वडा विद्यावंत, विमलहर्षसुं लहीइजी.. २६१ संघ चतुर्विध संपि मलीउ, महउछव करवा काजिजी, श्रीआचारय नीज पटि थाप्या, श्रीविजयसेनसुरीराजिजी. २६२ देइ वांदणा चरणे संघ साथि, सुरीमंत्र ते दीधउजी, श्रीआचारज्य अधिकउ महिमा, देसि देस परसीधउजी. २६३ महामहउछवि हवां वांदणां, पाटण नअर मझारजी, सहसवीर पारखि ए जस लेइ, मानव भव करउ सारजी. २६४ श्रीविजयदेवसुरीसर केरू, रास रचउ रंग-राजजी, भणतां सुणतां गुणतां भावि, लहीइ पछी लाजजी. पंडित श्रीसौभाग्य-सीसिं, जुगप्रधान गुण गायजी, वीद्यागुरु वसेष वइरागी, प्रणमी जनानंद पायाजी. २६६ साहापुर सांतिजिणंद सानधि, अनुक्रमई जे लहउजी, तेह संबंध मइ ए मांहि आणउ, नीज बुधि नवि कहउजी. २६७ रंगराज ए रास रसाल, नाम सुणउ सहु कोइजी, श्रीविजइदेवसुरीसर केरू, भणतां नव नधि होइजी. २६८ आधु पार्छ जे पद आवं, ते सोधी सुध करवूजी, पंडितजन तुम्ह पाए लालुं(गुं), ए चीतमांहि धरकुंजी. २६९ संवत सोल चउसि(स)ठा (१६६४) वरषि; महा सुदि एकादसी सारजी गुरुगुण गाया मइ मति सारू, सुणज्यो सहु नर नारजी. २७० श्रीविजइसेनसुरीसर पटि, विजयदेव गणधारजी, कनकसौभाग्य प्रभु ध्यान धरंतां, लहीइ सुख अपारजी. २७१ ॥ इति श्रीविजयदेवसुरी-रंगरतनाकर रास सम्पूर्णम् ॥ । ॥ लिखितं कृतं साहापुर वीजापुरनअरे ॥ शुभं] भवतं ॥श्री।। Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० ॥ गुरूगीतम् ॥ ॥ राग-केदारो ॥ श्रीबिजइदेवसूरी गुरु मेरा, दा(?) इंम मई पेखत मुखडा तेरा, तोही तोलइ नांही अवनी अनेरा, सुजस कहत सब सहगुरु केरा. १ श्रीबिजइ... साह थेरा-सुत सुगुण भलेरा, जिनइ कीने कुमती सब जेरा, पंच महाव्रत पालण धीरा, सायरथिं गुरु मेरा गंभीरा. २ श्रीबिजइ... अवल असुल अमुल ए हीरा, टारत भवदुख केरी पीरा, बोलत बानी मीठी जसी खीरा, कनकसौभाग्य कहत एही गुरु मेरा ३ श्री बिजइ... ॥ इति गुरुगीतम् ॥ -x Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ अनुसन्धान-७८ - श्रीनंदिषेण रासनी शुद्धि - सं. साध्वी दीप्तिप्रज्ञाश्री शुद्धिपत्र पाना ढाल गाथानं.-चरण अशुद्धपाठ शुद्धपाठ ३५ १-दूहो ६ ३ आचरि नाचरि ३७ ढा. २ ४ -३-४ चरण रही गयुं छे - 'करण कचोले ते पीइ रे, जिनवच अमृतधार, भा० ॥४॥ उ० । ३७ नीचे पाठांतरमां- ९ बगलांउहि रे उडि रे ३८ ढा.३-दूहो ७ ४ छोडण री सी धात छोडणरी सीधात ३९ ढा-३ ९ ३ प्रीउ कीन प्रीउकीन ४१ नीचे पाठांतरमा २९ राखोनी राखोजी ४२ ढा. ५ ६ ४ सि बिकाइं सिबिकाई ४६ नीचे पाठांतरमा ५१ मां-आणि-उ आणि-ड ढा-९ १- २ उदडी उदडी ढा-९ आकणी-१ भोजमइ मोजमइ ४८ नीचे पाठांतरमा ५९ मां- कराय - उ कराय - ड ४८ नीचे पाठांतरमां- ६९ मां-गलिमई - उ गलिमई - ड " ६३मां - ठावे - उ ठावे - ड ४९ " " ६९ मां चोयणा-उ चोयणा-ड " ७० मां अ-उ अ-ड ढा. १० ६ ३ ऊठो अजी ऊठोअसी ढा. ११ २ ३ अइओ अइसो ५२ ढा-१२ दूह १ १ तवं तव ५२ नीचे पाठांतरमां- ७५ हइ-ड ५४ ढा-१३ ४ २ काइ ५५ नीचे पाठांतरमां- ८४ कलभो - उ कलभो - ड इह-उ काइ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० ९३ ५६ ५६ " ९२ - " ढा-१५ ढा-१६ ढा-१६ कूटे - उ कूटे - ड मोचीनें - उ मोचीनें - ड कूखीशंबलधारी कूखी शंबलधारी एमई ए मई नेहि गेहि ५९ ६० १० १७ ४ पानानं. ढाल ६२ ८ ६२ ८ ६२ १० ६२ १० ६३ १० ६३- - शब्दकोशमां - गाथा- चरण अशुद्ध २ २-३ २-३-आइण २ २ २-ठामि १ ३ . दुरमुख १ ३ डुहरी १ ३ लाविनि २ हि سه ror or on or uw سه ३-आइण ३ ठामि १०-दूहो-१ १०-दूरो-१ १०-दूहो-१ ढा.११-८-२-हि ढा. १२-६-३-चोकु ८ له । । سه चोकु Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ विहंगावलोकन - उपा. भुवनचन्द्र अनुसन्धान-७८ना सम्पादकीय निवेदनमा सम्पादक आचार्यश्रीए 'विहंगावलोकन' विशे जे उद्गारो व्यक्त कर्या छे ते वांचीने विहंगावलोकनकार पोताने धन्य थयेलो माने छे. आ प्रकारना सामयिकना सम्पादन / प्रकाशनमां सम्पादकातन्त्रीने जे प्रश्नोनो सामनो करवो पडतो होय छे तेनी वात सम्पादकजीए करी छे ते सत्य छ; जैन श्रमण-श्रमणीवर्ग संशोधन परिपाटीथी हजी यथोचित रूपे टेवायेलो नथी. गत विहंगा०मां सम्पादन अंगे जे लखायुं हतुं ते कृतिओनां सम्पादकोने अनुलक्षीने हतुं परन्तु अनु०ना सम्पादके पोतानी जवाबदारीनी वात खुल्ला मने करी, तेमां तेमनी नम्रता तथा संशोधननी शिस्त (अनुशासन) प्रत्येनी निष्ठानां दर्शन थाय छे. जैन श्रमण-श्रावक वर्गमां संशोधन प्रत्येनी जागृति हजी बाल्यावस्थामां छे त्यारे संशोधनना उच्च मापदंडो लागू कराय तो गतिरोध संर्जाय-'अनुसन्धान' जेवू सामयिक चाली ज न शके; आथी आचार्यश्रीए जे त्रण विकल्पोनो निर्देश कर्यो छे ते त्रणेयनो संयुक्त विनियोग ज कार्यकारी बनी शके. वस्तुतः 'अनु०'मां त्रणेय प्रकारचं काम थयुं छे – सारा, ऊडीने आंखे वळगे एटला प्रमाणमां – थयुं छे. आq अने आटलुं अप्रगट प्राचीन साहित्य, आथी पहेला, जैन श्वे.संघमां, कदाच क्यारेय प्रगट नथी थयु. अनु०मां प्रकाशित थती कृतिओना सम्पादकोने साहाय्य करवाना उद्देशथी विहंगावलोकन लखाय छे, पूरक बनवा माटेनो प्रयास छे. आशा छे के सम्पादको । संशोधको तेनो उपयोग करता हशे. 'बे संस्कृत स्तोत्रो' प्रासादिक छे. सम्भवतः वर्षों पूर्वे ए प्रकाशित थया हशे, परन्तु आचार्यश्रीना हस्ते ते पुनः सम्पादित थाय ए इष्टापत्ति ज छे. पांच गुरुस्तोत्रो अलग अलग प्रकीर्ण पत्रोमांथी मळ्या होवा छतां, एक ज कर्तानी रचना होय एम, तेमांनी विषयवस्तु अने शैली जोतां, लाग्या विना रहेतुं नथी. लिपि अने पद्धति तपासवाथी वधु चोक्कस निर्णय पर आवी शकाय. (जो एम ज होय तो, कालक्रमे, अनु०ना पानां पर ए कृतिओ एकत्र Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० थाय एने एक अद्भुत जोग-संजोग गणवो पडे!) कवि नवोदित जणाय छे. कवितामां शब्दाडम्बर घणो छ, शब्दो साथे छूट पण लेवाइ छे. कल्पनाउड्डयन निरंकुशपणे थयुं छे. प्रथम स्तव दीप्तिसागरसूरिनी कीर्तिने विषय बनावीने रचायुं छे. श्लोक ३ना बीजा चरणना अन्ते समास तोडी देवायो छे जे काव्यशास्त्रनी दृष्टिए दोष गणाय. श्लो. ११मां 'शॉमिका' शब्द छे, जे अपरिचित / अज्ञात भासे छे. सम्पादके 'रम्योर्मिका' शब्द सूचव्यो छे, किन्तु ह.प्र.मां जो 'शॉमिका' स्पष्ट निःसंदेह वंचातो होय तो तेने साचो मानी ए शब्दनी शोध करवी जोइए. थाळी, रोटली के पूरणपोळी जेवी वस्तु अहीं इंगित थाय छे. श्लो. १३मां 'म(मृ)गेन्दु० छे त्यां म नहि पण भ होवानी पूरी शक्यता छे. भग = सूर्य. मृग कल्पवानी जरूर नथी. 'सूर्य अने चन्द्रना प्रकाशना बहाने त्रण जगतमां जेमनी कीर्ति फेलायेली छे' – एवो अर्थ सुसंगत थाय छे. जो के आगळ न छे, तेनो मेळ बेसतो नथी. बीजा स्तवमां श्लो. ६मां सेवना-क्षण० छे त्यां सेवनां क्षणम० एम वांचवाथी वाक्य पूर्ण बने छे. त्रीजा स्तवमां श्लो. ७ : 'रमानः'. छे त्यां 'रमा नः' एवो पाठ योग्य लागे छे. श्लो. १५ : त्रीजुं चरण आम वांची शकाय : 'विशालवक्षा वृषवत्सदंसः' पांचमो स्तव, श्लोक ५ : 'मुनिप्रतानः' एवो प्रथमान्त शब्द अन्वयनी दृष्टिए बेसतो नथी. आगळना शब्द साथे समास होय तो अर्थसंगति थाय- 'मुनिप्रतान-कोटीरहीर !' चोथा चरणमां 'शम(मा)ग्य०'मां (मा) करवानी जरूर नथी, शम् अव्यय छे ज. 'कल्याणरूपी श्रेष्ठ आम्रवृक्ष पर रमनारा कीर' - एवो अर्थ छे. श्लो. ८ना अन्ते '०मृगात्र पाकैः' पाठ बेसतो नथी. पाकै. सुधी सम्पूर्ण समास होवो जोइए. १०मा श्लोकना अन्ते '०मादैः' छे त्यां ‘पादैः' होवू घटे. आ स्तव अपूर्ण जणाय छे, कारण के श्लोको- कुलक हजी पूरुं थतुं नथी - क्रियापद देखातुं नथी. आथी माणिक्य सुन्दर शब्द कर्ताना नाम तरीके न गणी शकाय. _ 'सागरमत चोपाई'मां तपागच्छमां एक समये जागेला मतभेदनी अधिकृत चर्चा थई छे. एक पक्ष स्याद्वादी - उदार मतवादी जणाय छे, बीजो पक्ष आत्यन्तिक - अन्तिमवादी जणाय छे. रचनाकार उदारमतवादने अनुसरे छे, Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ अनुसन्धान-७९ विवादना बिन्दुओनी प्रस्तुति विद्वत्तापूर्ण थई छे. कृतिमांना थोडा शब्दो : 'गाढेरा' एटले 'मोटा' नहि, 'अतिशय', 'खूब' 'रोक': रोकडं, रोकड. 'असरालि' : 'सम्पूर्ण' नहि, भयङ्कर, उग्र, मोटुं. क. ९७-९८मां 'आणिउं' शब्द छे, ते खास अर्थमां छे, तेथी शब्दकोशमां लेवा जेवो छे. सामान्य अर्थ : आणेलु, लावेलुं. अहीं 'मूल ग्रन्थमां पाछळथी उमेरेलु', प्रक्षिप्त. श्री ज्ञानसागर एक रासकार कवि तरीके सुप्रसिद्ध छे. तेमनी एक अप्रगट कृति आ अंकमां सम्पूर्ण प्रगट थई छे. सम्पादिका साध्वीजीए काळजीपूर्वक वाचना तैयार करी छे. पांच प्रतोनो उपयोग करवामां आव्यो छे अने पाठान्तरो लेवामां आव्या छे. अ, ब, क, ड एम चार प्रतोनो परिचय प्रास्ताविकमां अपायो छे ज्यारे टिप्पणोमां 'उ' संज्ञक प्रतिनो उल्लेख छे. लागे छे के 'ड' प्रति ज हशे पण 'ड' 'उ' तरीके वंचायो छे, तेथी मुद्रणदोष ऊभो थयो छे. Press copy मुद्रणार्थ प्रति तैयार करती वखते आ बिन्दु ख्यालमां राखवा जेवो छे के प्रेसवाळाने समजाशे के नहि. हस्ताक्षरो सुन्दर न होय ते चाले, पण अक्षरो ओळखवामां सामावाळाने मुंझवण न थवी जोईए. ढा. २, क. ९ मां भगति' छे, टिप्पणमां ड प्रतिनो पाठान्तर 'भगनि' नोंधायो छे, जे वस्तुतः साचो पाठ छे. आ रीते, आधारभूत प्रतिमां खोटो पाठ होय अने अन्य प्रतिमां साचो पाठ मळतो होय त्यारे शुं करवू – ए बाबतमां बे मत छ : आधारभूत प्रतिनो पाठ वाचनामां जेमनो तेम रहेवा दइ, साचो पाठ पाठान्तर तरीके नोंधी लेवो. (आ रीतमां साचो पाठ पाठान्तर बने छे, ए वात खटके छे.) बीजी रीतः साचो पाठ वाचनामां लई तेनुं स्थान पादनोंधमां दर्शावq अने आधारभूत प्रतिनो पाठ पण त्यां नोंधवो. (कृति शुद्ध बने, मूल कर्ता सुधी पहोंचाय, वाचकने पाठनिर्णय करवानो वारो न आवे - ए आ रीतना फायदा छे.) प्रस्तुत रचनामां सम्पादिकाए त्रीजी रीत शोधी काढी छेअन्य प्रतिमां मळतो साचो पाठ, मूळमां ज, यथास्थाने, कौंसमां आप्यो छे. (आ पद्धतिमां, कौंसमां दर्शावेलो पाठ क्यां मळ्यो छे तेनी माहिती नहि मळे, सम्पादके विचारेलो छे के अन्यत्रथी मळेलो छे - ते नहि समजाय - ए गेरफायदा छे.) मध्यकालीन गुजराती (मारुगूर्जर) भाषानी कृतिओना संशोधन । Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० ९७ सम्पादन काम करनारे म.गू.कोश (जयंत कोठारी) सामे राखवो जोईए. पाठशद्धिमां एनाथी मोटी मदद मळशे. भ्रान्त पाठो खडा थवानो भय नहि रहे. भारे परिश्रमपूर्वक तैयार थयेल आवो शब्दकोश होवा छतां, सम्पादकोए अर्थ नवेसरथी करवानो श्रम उठाववो पडे अने विचित्र अर्थघटनो के भ्रान्त शब्दो प्रवेशे ए जोईने खेद थाय. नन्दिषेण रासना शब्दकोशमां 'ओलग्यो' (ढा.४, क.३)नो अर्थ 'ओलख्यो' एवो आप्यो छे. 'ओलगq'नो अर्थ छे - सेवा करवी, चाकरी करवी. म.गू.कोशमां जोयुं होत तो अर्थ मळी रहेत. ढा.३, क. ७मां 'विरचो' शब्द छे, त्यां शब्द न समजायाथी सम्पादिकाए 'विचरो' एवो सुधारो कौंसमां दर्शाव्यो छे. विषयनो सन्दर्भ जोतां विचरवानी वात बेसती नथी. 'पहेलां प्रेम राखता हता, हवे प्रेम नथी करता'- एवी वात छे. म.गू.को.मां 'विरचइ'ना बे अर्थ आप्या छे : अटकवू / विरत थर्बु अने रचना करवी. विरत थर्बु अर्थ अहीं बेसे. वस्तुतः विरचवूनुं मूळ 'वि+रुच'माथी आ शब्द ऊतारी आव्यो छे. कच्छीमां विरचणुं, विरचायणुं धातु आ अर्थमां प्रचलित छे. 'पाली इतरा दिन इउं प्रीत जो, हवइं कि उं विरचो छो विण कारणि रे लो' - आ पंक्तिमां आ अर्थ स्पष्ट छे. ढा. ३, क. ७ : 'जावां उवारणी'. शब्दकोशमां आनो अर्थ कर्यो छे 'जतां वारवं.' खरो अर्थ छ : ओवारी जवू, वारी जवू- ढा. ३ क. ८ : 'कर घेलीओ'. अहीं वाचनभूलना कारणे विचित्र पाठ सर्जायो छे. घ अने थ ना वाचनमां भूल थती होय छे, लिपि अने भाषाने ध्यानमा राखीने कृतिने समजी लइ, पछी ज लिप्यन्तर करवानी पद्धति इष्ट छे. पंक्ति छ : 'करमई कर थें लीओ' - तमे हाथमां हाथ लीधो. ढा. १ कडी ८ पछी - 'गेहगाट'. शब्द न समजावाना कारणे बे शब्दो निरर्थक बनी आव्या. 'गेहगाट', 'गहगाट' शब्द छे, जेनो अर्थ छे : आनन्द, उल्लास. ढा. ९, क. १ : 'दडबड उदडी' वाचनभूल या लेखकनी भूल छे. 'क' प्रतिनो पाठ 'दउढीक' ठीक लागे छे. वात दहेलीनी छे. दोढी, डोढी शब्दो डहेलीना अर्थना छे ज. दउढी तेनुं जूनुं रूप छे. ढा. १०, क. ४ : 'कणिका जर'मां वाचनभूल छे. कणि अजर - एम वांचवें जोइए. अजर - विलम्ब. ए - ज कडीमा ‘पडखोजी' छे, त्यां 'पडखो जी' एम वांचवानुं छे. 'पडिखq'नो अर्थ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-७९ छे - प्रतीक्षा करवी, राह जोवी. (म.गू. को.मां आ शब्द मळी जात.) ढा. ११, क. २मां 'अइओ' छे त्यां 'अइसो' होवू घटे. ढा. १४, क. २मां 'ढक चाल' भूलभर्यो लागे छे. 'चकचाल' शब्द मळे छे, ढकचाल नहि. चकचाल = चकचार, दोडादोड, धांधल. 'डुहरि' (ढा. ९ पछी दूहो ९) जेवा शब्दो माटे राजस्थानी शब्दकोश तपासवो पडे. सार्थ हरियालीमां मिआइ शब्द नोंध्यो छे पण जूनी गुज. मां तेवो शब्द नथी. पंक्तिमा ‘मंदिर मिआइ' छे त्यां 'मंदिरमि आई' एम वांचतां अर्थ बेसे छे. 'जैन इतिहास, एक अजाण्युं पार्नु' भारतना एक मोभी जैन श्रावके जैन धर्मनो त्याग केम कर्यो – केवा संजोगोमां को तेनी कथा कही जाय छे. आ परिवार एटले प्रख्यात विज्ञानी डॉ. विक्रम साराभाईनो परिवार. सम्पादकजी पासे आवा-जैन संघ साथे सम्बन्ध राखता- 'भूले-बिसरे' प्रसंगोना सन्दर्भो हजी पण हशे. आवा प्रसंगोनी दस्तावेजी श्रेणि अनुसन्धानमां तेओश्री करे तो एक उपयोगी काम थवा पामशे. जैन देरासर नानी खाखर-३७०४३५ जि. कच्छ, गुज. Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० अगत्यनी नोंध आ अङ्कमा विजयदेवसूरिरङ्गरत्नाकर रास नामे कृति सम्पादित थई प्रगट थयेल छे. तेमां तेओनी नव अंगे गुरुपूजा थयानी वात आवी छे.. जे लोकोने पोतानी अङ्गपूजा, भगवाननी जेम, कराववामां रस छे, ते वर्ग आवा उल्लेखोथी आनन्द अनुभवे ते स्वाभाविक वात छे. परन्तु आ उल्लेख कोई शास्त्रवचन के शास्त्रनुं विधान नथी, ए मुद्दो पण अहीं ध्यानमां लेवानो छे. विजयदेवसूरि वगेरे महापुरुषोनी ते प्रकारनी गुरुपूजा थई हती, एटलो ज तेनो मतलब छे. आ प्रकारे गुरुपूजा करवी जोईए, न करे तो शास्त्राज्ञा-लोप थाय एवो ते वृत्तान्तनो अर्थ के फलितार्थ नथी, ए बराबर समजी लेवू जोईए. श्रीमुनिसुन्दरसूरि, लक्ष्मीसागरसूरि, आणंदविमलसूरि, विजयदानसूरि आदि पूर्व पुरुषोए पूजा कराव्याना कोई दाखला के वृत्तान्त मळतां नथी. तेम विजयदेवसूरि-सरीखा प्रभावक गच्छपति सिवाय जे ते साधुए पोतानी पूजा करावी के थवा दीधी होवाना पण दाखला मळता नथी. ___ वळी, जो कोई घटनाना प्रासङ्गिक वृत्तान्त-निवेदनने पण शास्त्रविधान मानवान होय तो, आ गच्छपतिओना सामैयामां हाथी-घोडानां दान अपातांअपायां छे तेना पण वृत्तान्तवर्णन आवी कृतिओमां मळे छे, तो तेने पण शास्त्राज्ञा मानीने तेनुं अनुकरण आजे ते लोकोए करवू ज पडे. अन्यथा शास्त्रद्रोह न लागे ? बीजी वातः आ गच्छपतिओनी पूजा गृहस्थो स्वयं करता हता; पण ते आचार्यादि साधुओ ते करावता नहोता के ते करवा माटे, शास्त्राज्ञाना नामे, प्रेरणा नहोता आपता. तेओ आवी गुरुपूजा माटे चडावा बोलावता नहोता. आ हकीकत पण लक्ष्यमा लेवावी जोईए. आजे तो ते माटे प्रेरणा अपाती होय छे, चडावा बोलावाय छे, अने पछी ते चडावानी रकम माटे गजग्राह पण थता होय छे. वळी, आवी पूजा जे ते गच्छपतिनी थई हशे, हरेक साधुनी नहि; ज्यारे आ वर्गमां तो नाना Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० अनुसन्धान-७९ मोटा, पदवी धरावनार के वगरना-कोई पण साधुनी नवाङ्ग पूजा करवानो एक व्यवहार थई पड्यो छे, जेने ते वर्ग शास्त्राज्ञानु पालन माने छ ! पश्चाद्वर्ती कोई साधुभगवंते थोडीक गाथाओ रची दीधी, तेमां थोडीक प्राचीन गाथाओ उमेरी दीधी, ते पर विवरण बनावी दीधुं, ते निबंधात्मक वर्णनने आ वर्गे, पोताने माफक आवे तेवी वातो होवाने कारणे, 'शास्त्र' मानी लीधु; अने ते प्रमाणे वर्तवा मांडीने शास्त्राज्ञानी दुहाई आपवा लाग्या ! आ वात मान्य केम बने ? वस्तुतः आचाराङ्गसूत्र-वृत्ति, उत्तराध्ययनसूत्र तथा वृत्ति वगेरे विविध आगमग्रन्थोमां अनेक स्थाने 'पूजा' शब्द 'गुरुपूजा'ना सन्दर्भमां प्रयोजायो छे. त्यां तेनो अर्थ 'वस्त्र-पात्र वगेरे तथा सुगन्धी चूर्ण (वास.) वडे गुरुने बहुमान आपq' एवा प्रकारनो ज अर्थ जोवा मळे छे. क्यांय सोना-रूपा आदि थी पूजन तथा नव अंगे पूजन एवो अर्थ के तात्पर्य जडतां नथी. हवे आ आगमो-कथित अर्थ साचो के पश्चाद्वर्ती नानकडा कोई प्रकरणनी रजूआत साची ? विवेक हशे तो साचुं जडशे. _ विजयदेवसूरि महाराज वगेरे गच्छपतिनी पूजा थई हशे जरूर, पण क्यांय तेमणे, आ प्रकारे पूजा कराववी के करवी, एवो उपदेश वा आदेश आप्यो होय तेवू जाणवा नथी मळतुं. प्रश्नोत्तर ग्रन्थोमां कोईए ते गच्छपतिसम्बन्धे थती प्रवृत्ति जोईने प्रश्न पूछ्या होय अने गच्छपतिए तेनां समाधान आप्यां होय तेथी तेने - ते प्रवृत्तिने शास्त्राज्ञा के शास्त्रविधान मानी लेवानी उतावळ तो, पोतानी पूजा कराववानी तीव्र आकांक्षा होय ते ज करी शके. ते समयना गच्छनायकोए भले ते प्रवृत्ति करवी दीधी होय, पण सांप्रत गच्छधोरी गुरुओ श्रीबुटेरायजी, श्रीमूलचंदजी, श्रीवृद्धिचंद्रजी, श्रीआत्मारामजी - आ बधाए तो आवी पूजा करावी नथी, करवानी हिमायत करी नथी, अने करनारा - करावनाराने समर्थन नथी आप्युं बल्के तेनो विरोध ज को छे. आ महापुरुषोने जो गुरुपदे मान्या होय तो पोतानी पूजा कराववानो मतलब तेओनी आज्ञानुं उल्लंघन ज थशे. ते उल्लंघन जेमने मान्य होय तेमने शुं कहेवू ? स्वैराचार ज ने ? Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान्युआरी - २०२० १०१ सामान्य बुद्धि एम समजावे छे के साधु पण, साधुवेष धारी मनुष्य ज गणाय. तेनी पूजा बीजो माणस करे ते तो सामान्य विवेक थी पण दूरनी बाबत बने. माणस माणसनी पूजा केम करे ? केम करी शके? माणस पोतानी पूजा बीजा माणस पासे करावी पण केम शके ? करवा पण केम दे ? धारो के कोई सामे चालीने पूजा करवा आवे तो तेने रोकी तो अवश्य शकाय. आम सर्वाङ्गीण विचारनो सार एटलो ज के कोई रास वगेरे प्रकारनी कृतिमा आवती आवी वातने प्रासंगिक वृत्तान्तनिवेदन ज गणवानुं छे, शास्त्राज्ञा के तेनुं अनुसरण नहि. तेने पुरावो के शास्त्रनो आधार मानवो ते तो हास्यास्पद वात गणाय. एम पूछी शकाय के तो ते महापुरुषे ते करवानी ना केम न कही? शास्त्रीय विधान होय तो ज ने ? आवा वाहियात प्रश्ननो जवाब शो आपवो ? छतां एटलुं कहेवू जोईए के ते भगवंतोना समयमां आवो रिवाज होवो जोईए के गच्छपतिनुं सन्मान आम- आ रीते करवू. ते श्रावकोनी वधती श्रद्धानो ते भगवंतो निषेध ना करी शक्या होय. परन्तु तेमणे ते धन पर हक्क नथी जताव्यो; ते माटे प्रेरणा नथी करी; ते माटे चडावा नथी बोलाव्या; ते चडावा वगेरेनी आवको माटे कावादावा ने क्लेश नथी कर्या. ए बधां परथी फलित थाय छे के फक्त दाक्षिण्य गुणने लीधे ज तेओए आवी पूजा थवा दीधी हशे. वळी, ए भगवंतोए मुस्लिम बादशाहो तथा अनेक राजाओने प्रतिबोध पमाडीने भारतभरमां अमारिप्रवर्तन करावेलं. अनेक तीर्थोना पटा (फरमानो) मेळवेला. कपरा समयमां संघनी ने तीर्थोनी रक्षा करेली. हजारो शिष्योना गच्छपति हता. आमांगें कयुं कार्य आ पूजार्थी वर्गमांथी कोणे कएँ ? एक कार्य तो बताडे कोई ! पेला भगवंतोनां कार्यो ज एवां हतां के जे तेमने आ प्रकारनी पूजा माटे बिलकुल योग्य अथवा अतियोग्य पुरवार करी आपे. एवी योग्यता आ पूजालोभी ने पोतानी पूजाना हक माटे शास्त्र-संघने अवगणीने कोर्टकायदाना चक्करमा फसाय अने फसावे तेवा वर्गमां क्यांथी आवशे ? Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ अनुसन्धान-७९ एक श्रावके बहु मजेदार वात करेली : नव अंगे पूजा आ लोकोनी करवी ज जोईए, पण विधिपूर्वक ज कराय. ए माटे पहेलां भगवाननी जेम एमने न्हवडाववाना; प्रक्षाल दूध-पाणीनो थाय पछी वाळाकूची, अंगलूहणां वगेरे थाय; पछी केसर-चन्दन आदि तमाम अंगपूजा करवी जोईए. तोज शास्त्रोक्त विधाननो साचो ल्हावो मळे ! मजाकमां कहेवायेली आ वात पण केवी मार्मिक छे ! । छेल्ली वातः कोई जो पोतानी नव अंगे पूजा करवामां धर्म आराधना माने, अने ते विषे उल्लेख धरावती आ 'रंगरत्नाकररास' जेवी कृतिओने शास्त्र माने, अनी आवी वातोने शास्त्राज्ञा समजे, तो तेनो निषेध करवानो अधिकार कायदो कोईने आपतो नथी. ओवो अधिकार खपतो पण नथी. परन्तु आवी प्रवृत्तिने जो कोई 'धर्म' न मानता होय के तेने शास्त्राज्ञा न मानता होय तो, तेमने ते प्रवृत्तिनो विरोध करवानुं स्वातन्त्र्य पण कायदो आपे ज छे, ए वात पण भूलवी न जोईए. वळी, जे वर्गने आवी पूजामां रस छे ते तेम भले करेपोताना घरमां रहीने करे; पण तेमने बीजाना घरमां के स्थानमा आवीने ते कृत्य करवानो हक नथी मळी जतो; अने पोताना घरमां आवा कृत्य माटे तेमने आववानी कोई ना पाडे तो तेनुं ते - ना कहेवानु - कृत्य बिनकायदेसर अथवा गुन्हाहित कृत्य नथी बनी जतुं. ते वर्ग पोताना घरमां रहीने पोते माने ते रीते करवा जेम स्वतन्त्र छे, तेम तेमने तेवा कृत्य खातर पोताना घरमां आववा देवानी ना पाडवा माटे सामो वर्ग पण स्वतन्त्र छे. आमां कायदो के कोर्ट हस्तक्षेप करी शके नहि, के फरज पाडी शके नहि. नवाङ्गी गुरुपूजाना सन्दर्भ अंगे आटलुं प्रगट चिन्तन. 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