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जान्युआरी - २०२०
गणधरप्रबोध कर्ता : वाचक सकलचन्दगणि
- सं. विजयशीलचन्द्रसूरि
वाचकप्रवर श्रीसकलचन्द्र गणि ए तपगच्छपति विजयदानसूरीश्वरना अग्रणी अने महाविद्वान शिष्य हता. तेमनी प्राकृत, संस्कृत नानी-मोटी अनेक रचनाओ मळे छे. तो गुर्जर भाषामां पण तेमणे अनेक रचनाओ सरजी छे. 'अनुसन्धान'मां तेमनी केटलीक कृतिओ प्रथमवार प्रकाशित थई छे.
__ आ अंकमां तेओनी एक अप्रगट गुर्जर रचना प्रगट थाय छे – 'गणधरप्रबोध'. श्री महावीरस्वामीनी स्तवना करती, ३ ढाळ अने ४९ कडीनी आ रचनामां, महावीर प्रभुना ११ ब्राह्मण-गणधर-पट्टशिष्यो साथेना तात्त्विक-तार्किक संवादनी वात रजू थई छे. ते ११ पण्डितोना, वेदवाक्योना खोटा अर्थघटनने कारणे उद्भवेला संशयो, तथा तेना भगवान महावीरे करेला समाधान- अतिसंक्षिप्त निरूपण आमां थयुं छे. आ आखीये घटना तथा चर्चा, जैन ग्रन्थोमां 'गणधरवाद' ना नामे ख्यात छे. ते चर्चा भारे शास्त्रगहन छे. अहीं कविए बहु ओछा अने सरल शब्दोमां, ते गहन चर्चाने निरूपी छे.
मध्यकालना आवा कविओनुं कविकर्म ईश-स्तुतिपरक ज महदंशे रहेतुं. ईशस्तवनामां ज तेओ पोताना कविकर्मनी सार्थकता जोतां. १६मा तथा १७मा शतकना आ कवि, एक जैन साधु छे तेथी, तेओ पण ते ज परम्पराने अनुसरे छे.
चाणस्मास्थित 'नित्यविनयजीवन मणीविजय जैन पुस्तकालय' नामे ज्ञानभण्डारनी, २ पृष्ठनी, १६१६मां लखायेली हस्तप्रति परथी आ सम्पादन थयुं छे. ते भण्डारना कार्यवाहकोनो आभारी छु.
'गणधरप्रबंध' एवा नामे सचिपत्रमा नोंधायेली आ प्रतिमा प्रथम 'गणधर प्रबोध' छे, अने बीजा पृष्ठना अन्तभागे आदिनाथ भगवाननी, ४ श्लोकात्मक, आवश्यक क्रियामां बोली. शकाय तेवी स्तुति छे. तेना रचनार कोण ते विषे कशो उल्लेख नथी. ते स्तुति पण आनी साथे. ज.आपवामां आवी छे.