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अनुसन्धान-७९
विहंगावलोकन
- उपा. भुवनचन्द्र
अनुसन्धान-७८ना सम्पादकीय निवेदनमा सम्पादक आचार्यश्रीए 'विहंगावलोकन' विशे जे उद्गारो व्यक्त कर्या छे ते वांचीने विहंगावलोकनकार पोताने धन्य थयेलो माने छे. आ प्रकारना सामयिकना सम्पादन / प्रकाशनमां सम्पादकातन्त्रीने जे प्रश्नोनो सामनो करवो पडतो होय छे तेनी वात सम्पादकजीए करी छे ते सत्य छ; जैन श्रमण-श्रमणीवर्ग संशोधन परिपाटीथी हजी यथोचित रूपे टेवायेलो नथी. गत विहंगा०मां सम्पादन अंगे जे लखायुं हतुं ते कृतिओनां सम्पादकोने अनुलक्षीने हतुं परन्तु अनु०ना सम्पादके पोतानी जवाबदारीनी वात खुल्ला मने करी, तेमां तेमनी नम्रता तथा संशोधननी शिस्त (अनुशासन) प्रत्येनी निष्ठानां दर्शन थाय छे.
जैन श्रमण-श्रावक वर्गमां संशोधन प्रत्येनी जागृति हजी बाल्यावस्थामां छे त्यारे संशोधनना उच्च मापदंडो लागू कराय तो गतिरोध संर्जाय-'अनुसन्धान' जेवू सामयिक चाली ज न शके; आथी आचार्यश्रीए जे त्रण विकल्पोनो निर्देश कर्यो छे ते त्रणेयनो संयुक्त विनियोग ज कार्यकारी बनी शके. वस्तुतः 'अनु०'मां त्रणेय प्रकारचं काम थयुं छे – सारा, ऊडीने आंखे वळगे एटला प्रमाणमां – थयुं छे. आq अने आटलुं अप्रगट प्राचीन साहित्य, आथी पहेला, जैन श्वे.संघमां, कदाच क्यारेय प्रगट नथी थयु. अनु०मां प्रकाशित थती कृतिओना सम्पादकोने साहाय्य करवाना उद्देशथी विहंगावलोकन लखाय छे, पूरक बनवा माटेनो प्रयास छे. आशा छे के सम्पादको । संशोधको तेनो उपयोग करता हशे.
'बे संस्कृत स्तोत्रो' प्रासादिक छे. सम्भवतः वर्षों पूर्वे ए प्रकाशित थया हशे, परन्तु आचार्यश्रीना हस्ते ते पुनः सम्पादित थाय ए इष्टापत्ति ज छे.
पांच गुरुस्तोत्रो अलग अलग प्रकीर्ण पत्रोमांथी मळ्या होवा छतां, एक ज कर्तानी रचना होय एम, तेमांनी विषयवस्तु अने शैली जोतां, लाग्या विना रहेतुं नथी. लिपि अने पद्धति तपासवाथी वधु चोक्कस निर्णय पर आवी शकाय. (जो एम ज होय तो, कालक्रमे, अनु०ना पानां पर ए कृतिओ एकत्र