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जान्युआरी - २०२०
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चंपा ऊपरि चाल्यउ राय, तव वलीया नीसाणे घाउ ससरा साला नइ माउला, चढ्या वीर विकट वाउला ॥२६२।। 5 दुर्मुख दूत चंपा पाठव्यो, अजितसेननि जई वीनव्यो सांभलि वयण मुझ नरपति आज, तुझ समोवडि को नहीं आज ॥२६३॥ भला भलेरी पृथ्वी अछ, राय सवे श्रीपालह पछै । जेहनी आंण वहै सुर धीर, तेह मनावो बावन वीर ॥२६४॥ दंड दोर नवि केहनि करई, दलि दीठई जेहनइं भय डरिं कहो नि स्वामी कहइं निं देव, तेहनी कीम न कीजें सेव ॥२६५॥ फुटु सीड फाटो सीवीइं, राय श्रीपालह जइ सेवीइं . किहां तुं खजुओ किहां ते सूर, तेहस्युं कोई न मांडि भूर ॥२६६।। किहां तुं छीलर किहां ते समुद्र, किहां चांदरणी किहां ते चंद्र किहां कंथेर किहां द्रुमेंद्र, किहां धरणेंद्र किहां सुरेंद्र ॥२६७।। तेहस्युं तोडि मांडीस जेतली, आगलिं तुझ विच(त)सिं तेतली कोप्यो भूप भीषण आकार, अजीतसेन बोल्यो तिणवार ॥२६८॥ रे रे दूत वात कहै कसी, जा रे पापी प्रांण चूकसी गलहथ देइ नांख्यो दूरि, वल्यो दूत आव्यो रोस पूरि ॥२६९।। तविल ढोल ढमके नवरंग, धडहड ध्रुजे पर्वत शृंग जव चंपानी चांपी सीम, आव्यो अजितसेन भड भीम ॥२७०॥ अजितसेन, बल विचित्र, सिर उपरि झलकें सोवन छत्र द्रमक द्रमक वाजै नीसांण, कायरना ते कंपइ प्राण ॥२७१॥ सज थयो हवै राइं श्रीपाल, रणमंडलि वइंरीनो काल असवारे असवार ज भडिं, गयवर सरिसा गयवर अडें(डि) ॥२७२।। गय(व)र गुडीया सहस बत्रीस, हयवर हींसई सा(स)हस छत्रीस रमे दंडायुध छत्रीस, झूझिं राजकुलि छत्रीस ॥२७३।। धडहडता धरता बहु रीस, गदा प्रहारे भांजे सीस आथमतो बोलै इम दट्ठ, चंपा लेवा लीधो हट्ठ ॥२७४॥