SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६ अनुसन्धान-७९ ॥ दूहो ॥ किहां मालव किहां संखपुर, किहां बाबर किहां नट्ट सुरसुंदरि नचावीयउ, दैवि दलीय मरट्ट ॥२५०॥ ॥ चउपई ॥ जणणी दूहउ सूणियउ वयण, कुंअरि नाचंता दीठी नयणि(ण) सभामाहि जई कंठि विलग्ग, बेउं दुख भरि रोवा लग्ग ॥२५१॥ रोतां राखी पूछइ इस्युं, कहउ बाई ए कारण किस्युं तुं परणावी उत्तम ठाइ(य), ए कारण किहां घटीयुं माय ॥२५२।। सुरसुंदरि कहइ सांभलि वात, परणावी संप्रेड्या ताति(त) चतुरंग सेनास्युं परिवऱ्या, संखपुरी परिसरि ऊतर्या ॥२५३।। वार वंकि तिण स्थानकि रह्या, घरे(णे) दिवसे पायक घरि गया छोछइ वसीया वनह मझारि, आवी धाडि करती मारि ॥२५॥ तुझ जमाई नाठउ माय, ऊभी मुंकी हुँ तसु ठाय तिहां झालि कोली विकराली, तेणे वेची देस नेपाली ॥२५५।। तिहां चडी मालुनइ हाथि, माले मांडी वेची सांथि साथि विणजारे हुं लीध, बाबर देसि गणिका घरि दीध ॥२५६॥ जोवउ कर्म तणी ए वात,०२ गणिकांयई मुझ सीखवी नाट महाकालि बाबरनइ नाथि, नाटक करवा लीधी साथि ॥२५७॥ ओलगतां मयणानउ कंत, आख्या एणइ ठामि भमंत देखीं आज सजन मइ सहू, दुखसायर ऊलटीयउ बहू ॥२५८॥ मयणसुंदरिनुं देखी राज, तुं (हुं) दुखियउ भणियउ आज कुल मारगि सवि चूकी माय, १०२दाठिक दैवइं सिरज्यां कांय ॥२५९॥ सभा समक्खि सुण्युं श्रीपाल, अरिदमण आण्यउ भूपालि(ल) आपी वस्त्र अनइं शृंगार, सुरसुंदरि सुंपी भरतार ॥२६०॥ ॐ मतिसागर महितो तव मिल्यो, सकल मनोरथ हैडिं फल्यो चंपा उपरि करइं प्रयाण, वाजिन वाजै ढोल निसांण ॥२६१॥ १०२. घाट । १०३. दुखीयां ।
SR No.520581
Book TitleAnusandhan 2020 02 SrNo 79
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2020
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy