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जान्युआरी - २०२०
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। दूहा ॥ अरिहंत देव सुसाध गुरु, धर्मदया विसाल
मात्र उत्तम नवकार पर, अवर म झंखु आल ॥२१२।। अरिहंत केरां नवे पद, निय मनि धरइ जि कोइ निश्चय ते नर नारीयई, मनवंछित फल होय ॥२१३॥ आराहउ धुरि देव गुरु, द्यउ संपत्ति [सारूं] दान तप संयम उवयारडउ, करउ सफल अप्पाण ॥२१४॥ अरे मन अप्पउ खंचीयइ, चिंताजाल म पाडि आगलि ते फल पामीयइ, जे फल लिख्युं निलाडि ॥२१५॥ पुव्व भवंतरि संचीयउ, पुण्य समग्गल जास तसु बल तसु मनि तसु तिलय, तसु तिहुअण जण दास ॥२१६॥
॥ चउपई ॥ पंच सखीस्यं ऊठी बाल, सीपा कंठि ठवी वरमाल करी वीवाह रह्यउ जव जाण, भाट एक तिहां करइ कल्याण ॥२१७|| भाट भणइ कोलापुरनाह, राज करइ पुरंदरराय पटराणी विजयादे नाम, जयसुंदरि बेटी अभिराम ॥२१८॥ कुंअरी रूप न लाभइ पार, पभणइ परणिसि ते भरतार राधावेध साधइ जे बाणि(ण), लेई प्रतिज्ञा रही सुजाण ॥२१९।। दीधुं दान भाटनइ हाथि, राधावेध साध्यउ नरनाथि जयसुंदरि वरीयउ वरराज, पुण्य प्रमाणइं सीधुं काज ॥२२०॥
॥ ढाल ॥ ह(दूत माउलइ मोकल्यउ, सांभलि वयण कुमार रे वेगि करी पाछा वलउ, हिवइ मला स्यउ वार रे ॥२२१॥ नवपद महिमा सांभलउ, हीयइ धरीय आणंद रे पुण्य तणइ पसाउलइ, श्रीश्रीपाल नरिंद रे ॥२२२॥ आंकणी ॥ सीपइ सांढि ज फेरवी, अंतेउर आणावि रे नारि बंधव३ साथई, आवइ बहु दल लेय रे ॥२२३॥ नव० । ९३. सवि साथ ले।