________________
अनुसन्धान-७९
वीरस्तुतिनां बे चित्रकाव्य
- सं. उपा. भुवनचन्द्र
मांडवी (कच्छ)ना हस्तलिखित ज्ञानभण्डारमाथी मळेलां बे स्तोत्र चमत्कृतिभर्यां छे. बन्ने वीरस्तुतिनां काव्य छे. बन्ने चित्रकाव्य छे, परन्तु बन्नेनी विशेषता भिन्न छे.
प्रथम स्तुतिमा कामदुघा-कामधेनुना चित्रनो उल्लेख छे. प्रथम श्लोकमां कामधेन बंध थतो हशे. प्रथम श्लोकनां चरण अने शब्दो लईने, ए ज अर्थ जाळववानी साथे, भिन्न भिन्न नाना-मोटा छन्दोमां बाकीना श्लोको रचवामां आव्या छे अने ए ज आ कृतिनी चमत्कृति छे. प्रथम श्लोक जाणे कामधेनु छ जे जोइए तेवा छन्द रचवा माटे शब्दो पूरा पाडे छे. कर्ता जीवविजयजी छे.
बीजी रचना परम्परागत चित्रकाव्य प्रकारनी छे. कर्ताए दरेक श्लोकना अन्ते बन्धनां नाम आप्यां छे, अने अन्तिम श्लोकमां बधा बन्धोनां नाम संगृहीत पण कर्यां छे. आना कर्ता गणि ऋद्धिविजयजी छे.
बन्नेना लिपिकार ग. ऋद्धिविजयजी छे. अमने मळेली हस्तप्रत जो के ए ऋद्धिविजयजी-लिखित जूनी प्रतिनी नकल छे. आ प्रतमां पडी गएला अक्षरोनो निर्देश रिक्तस्थानना चिह्न वडे करवामां आव्यो छे. जो ऋद्धिविजयजीना हस्ते लखाएल होय तो रिक्तस्थान रहेत नहीं.
जैन हस्तलिखित ज्ञानभण्डारो स्तोत्रसाहित्यनी खाण जेवा छे. जैन श्रमणोए संस्कृत भाषाने केटली समृद्ध करी छे, तेना प्रतीक जेवां आ बे स्तोत्र प्रस्तुत करतां आनन्द थाय छे.
१. ॥६॥ श्रीवरदायै नमः । श्री वीरजिनस्तुतिः ।
कामदुघाचित्रेण । पं. जीवविजयगणिभिर्विहिता । स्वःश्रीसुखाऽऽप्तिजननन्दमिताऽघदोषमीशं स्फुरदचिरकान्तिसमेतकायम् । सत्कीर्तिधामहितमात्मविशुद्धये तं श्रीज्ञातपुत्रजिनपं प्रणमाऽऽशु धीर ! ॥ १ ॥
वसन्ततिलकावृत्तं ।