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अनुसन्धान-७९
धवल भणइ जे डैि (मि) इम चा(वा)हरूं, वहिची लेजे अर्द्ध ताहरु असिमर ऊडण वासी (मि) हाथ, बोलावू बाबर- नाथ ॥८८॥
॥ दूहा ॥ बाबरपति इण परि भणइ, रहि रे म मरि गमार जीव जतन करि बालूआ, पापी अम्ह हथीआर ||८९।।
अथ वा(पा)घडी छंद तुं रे ऊठिओ धुंबडे धसमसंति, मन मज्झि चतुर नवपद जंपंति करि क(का)ढीय कोपिइ य(अ)भंग खग्ग,
तब धूजणं कायर केवि लग्ग ॥१०॥ तु रे सुहड सनाह पहरीय जरद, रणकाहल वज्जीर तूर नाद तु रे पेसण परठीय बाबरह रौह, बलवंत योधह वावइ लोह ॥९१॥ दल चंपीय मोगरि करइ घाउ, फणि चंपीय कंपीय सेसराउ भड भागा दंति दयंति घास, जे मोडंति मुंछ खायंति ग्रास ॥९२॥ दल नासीय त्री(त्रा)सी जाय दूरि, महाकाल बंध्धउ रणि सीप-सूरि छलि छं छं छटि छोडीय सेठि पास, मन मझि धवल धन हुई आस ॥१३॥
[छंद] - षट्पदं ॥ धवल छोडावियउ जाम, ताम असिमर ऊभारइ । हणस्युं बब्बरराय, हाक्क धरि कुंअर बारइ । भल मांटी पण तुझ, झूझ कायर का हारइ । क्षत्रीनइ घरि खोडि जे भड बंधा मारइ । इम भणी बंध छोडि छयल, महाकाल मनि हरखीयउ । साहसीक को राय तन, मन बुद्धि इस्युं परखीयउ ॥१४॥
॥ चउपई ॥ सहस दस भड नासी गया, नादि संखतणइ आवीया
धवल भणइ अम्ह नथी काज, जई ओलगउ अनेरुं राज ॥९५।। ५१. तु मुझ ।
५२. वाही। ५३. धायु ।
५४. दुज्जण । ५५. लोह ॥