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अनुसन्धान-७९
श्रीफल दीपक सार आगलि कीजइजी, पंचसबद गुण-गान गहुली दीजइजी, पहुरमांहि परसीध महुरत लीधुंजी, नीज पदि थापी नाम विजइदेव दीधुंजी. वाचकपद ए दीध वीबुध सोलिजी, तीहां सुर रही आकास जइकार बोलइजी, वरत तणा उचार अनेक थाइजी, समकीत लीइ सार माल पिहिरायजी. वरतु जगि जइकार हरख न माइजी, श्रीमल साह आवास द्रव्य खरचाइजी, सामी सावटुं दीध सोहवि साडीजी.. संघ पिहिरावउ संचि वली व्रतधारीजी. जाचिक दीधां दांन कणयकभाइजी, वेढ मोलीआं लाल अतलस लाहिजी, द्रव्य तणउ तीहां वइवारू कीधउजी, श्रीमल साह सुजाण जगि जस लीधउजी.
. दूहा पद देइ पधारीआ, उपासरइ संघ साथि, लीला वि(?) विवहारीआ, खरचइ आपणी आथि. १८७ लाहण लाभ हवा घणा, तेहनु न लहु वार, कनक कहि सहु सांभलउ, प्रतिष्ठा अधिकार.
॥ राग-केदारगुडी ॥ वैसाख सुदि सातिम गुरुवार, लीधुं प्रतिष्ठा महुरत सार, वरतु जइ जइकार १८९ भवीका... कीका ठार मनि हरख न माइ, काला ठार लालजी मनि भाइ, . हीर जस गवाइ
१९० धर्मधुरंधर त्रणे भाइ, प्रतिष्ठानी करइ सजाइ, भाव भलउ चीति ध्यांइ १९१ भवीका...
पारगुडा ॥