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________________ १०२ अनुसन्धान-७९ एक श्रावके बहु मजेदार वात करेली : नव अंगे पूजा आ लोकोनी करवी ज जोईए, पण विधिपूर्वक ज कराय. ए माटे पहेलां भगवाननी जेम एमने न्हवडाववाना; प्रक्षाल दूध-पाणीनो थाय पछी वाळाकूची, अंगलूहणां वगेरे थाय; पछी केसर-चन्दन आदि तमाम अंगपूजा करवी जोईए. तोज शास्त्रोक्त विधाननो साचो ल्हावो मळे ! मजाकमां कहेवायेली आ वात पण केवी मार्मिक छे ! । छेल्ली वातः कोई जो पोतानी नव अंगे पूजा करवामां धर्म आराधना माने, अने ते विषे उल्लेख धरावती आ 'रंगरत्नाकररास' जेवी कृतिओने शास्त्र माने, अनी आवी वातोने शास्त्राज्ञा समजे, तो तेनो निषेध करवानो अधिकार कायदो कोईने आपतो नथी. ओवो अधिकार खपतो पण नथी. परन्तु आवी प्रवृत्तिने जो कोई 'धर्म' न मानता होय के तेने शास्त्राज्ञा न मानता होय तो, तेमने ते प्रवृत्तिनो विरोध करवानुं स्वातन्त्र्य पण कायदो आपे ज छे, ए वात पण भूलवी न जोईए. वळी, जे वर्गने आवी पूजामां रस छे ते तेम भले करेपोताना घरमां रहीने करे; पण तेमने बीजाना घरमां के स्थानमा आवीने ते कृत्य करवानो हक नथी मळी जतो; अने पोताना घरमां आवा कृत्य माटे तेमने आववानी कोई ना पाडे तो तेनुं ते - ना कहेवानु - कृत्य बिनकायदेसर अथवा गुन्हाहित कृत्य नथी बनी जतुं. ते वर्ग पोताना घरमां रहीने पोते माने ते रीते करवा जेम स्वतन्त्र छे, तेम तेमने तेवा कृत्य खातर पोताना घरमां आववा देवानी ना पाडवा माटे सामो वर्ग पण स्वतन्त्र छे. आमां कायदो के कोर्ट हस्तक्षेप करी शके नहि, के फरज पाडी शके नहि. नवाङ्गी गुरुपूजाना सन्दर्भ अंगे आटलुं प्रगट चिन्तन.
SR No.520581
Book TitleAnusandhan 2020 02 SrNo 79
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2020
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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