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जान्युआरी - २०२०
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उ सब जाणपणुं तउ छाजइ, जु मुझ चिंत कु संसय भाजइ । तब तिभुवणकउ राजा बोलइ, तीन भुवन हरषि शर डोलइ ॥१४॥ मुझ तुझ गोयम ! संसय सूझइ, जीव नही........ ।
..........., एही पद जीवसत्ता दूझइ ॥१५॥
___ ढाल ॥ आसाउरी अधरस देसाख ॥ वीर मधुरी वाणि बोलइ इंद्रभूति सुणो, वेद पद विपरीत म भणो । समउ अरथ सुणउ । वेदपद 'ददद' दमो दानं दया अरथ घणो ॥१६॥
वीर मधु० ॥ विज्ञानघन ऊपजी आपइं पंच भूत थकी । पंचभूतविणासि विणसइ इसी वेद फकी ॥१७॥ वीर० ॥ एणि पदि संसय पड्यो तुं इंद्रभूति सुणे । आच्छि जीवो जाणि लख्यणिं चेतनादिगुणे ॥१८॥ वी० ॥ पुण्यपापह तणु भाजन जु री जीव नही । तु किस्यानई यागमुख शुभ क्रिया तिही कही ॥१९॥ वी० ॥ इति सुणी गोयम पबूधो पंचशत सार्थि । दीख दीधी सूरिपद दई वीरजिन हाथिई ॥२०॥ वी० ॥ . लोकपाल कुबेर दीनां धर्म उपगरणं ।। यतनस्यूं जउ यती न धारइ होसइ अधिकरणं ॥२१॥ वी० ॥ सुणी आयु अग्निभूती तिम ज गर्व धरी । वालस्यूं हूं निज सहोदर तर्कवाद करी ॥२२॥ वी० ॥ तिम ज वीरि बोलाइ लीनो, कर्मसंदेही । कर्म रूपी जीअ अरूपी बंधगति केही ॥२३॥ वी० ॥ वीर भासइ सुखदुक्खादिक जीव बहू भांती । कर्म विणुं ए केणि चितरिउ राखि मति जाती ॥२४॥ वी० ॥ परिवारस्यूं बूझवी दीख्यो, वायुभूति सुणी । 'सोइ तनु सो जीव' संसय भाजि त्रिजगधणी ॥२५॥ वी० ॥ नीरथी पंपोट परि सो देहथी ऊपजीइ । इस्यूं जे तुं चिंति जाणइ कुमति तिं इह भजी ॥२६॥ वी० ॥