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अनुसन्धान-७९
ऊठि तलार मला इसिवार, धवल तणइ सिरि वाहुं धार कृपावंत बोलइ श्रीपाल, वछीआयत म मारिसि भूपाल ॥१७८॥ पायके धवल मुंकीयउ छोडि, सापुरिस अंगि न आवइ खोडि छत्रछाया जई करुं समान, राय जमाई कहा दियइ मान ॥१७९।। त्रिहुं मयणास्युं विलसइ वीर, तेडी धवल पहिराव्यउ चीर जिम जिम देखइ कुंअर प्रताप, तिम तिमं सेठ धरइ ऊताप ॥१८०॥ सीपा ऊपरि मांड्यउ द्रोह, दोरीयइ बांधी चंदनगोह माझिम राति नांखि चडइ, छुरी सहित तिहां पाछउ पडइ ॥१८१॥ अवसि.१ पडतां आवी छुरी, धवल पहुतउ यमनी पुरी दीठउ लोके ऊगमतइ भाणि(ण), पापतणुं फल ए निर्वाण ॥१८२॥ → सीपानइ मनि क्रोध न लोभ, तेडी तसु तन दीधा थोभ आपी रिद्धि धवलनी जापि, संप्रेड्या कोसंबी ठाणि ॥१८३।। - एक दिवस सीपउ मनरंगि, गयउ रयवाडी चडी तुरंगि वणजारउ तिहां आव्यउ एक, पूछइ कुंअर करी विवेक ॥१८४॥ कुण नगरी आव्या वछीयात, कहउ काई अपूरव वात कांतीनगरी आव्या देव, सांभलि वात कहुं ते हेव ॥१८५।। इहांथी जोयण सउनइ अंति, वारू कुंडलनयर वसंति भूपति मकरकेतुनुं नाम, कपूरतिलय पटराणी नाम ॥१८६॥ गुणसुंदरि बेटी तसु सार, विद्या रूप न लाभइ पार पभणइ परणुं हुं नर सोय, वाणी(वीणा)वादि मुझ जीपइ कोय ॥१८७॥ नरपति नंदन मिलीआ बहू, सीखइ वीणा बइठउ सहु इसी वात कही ते राउ, निसुणी सीपउ मंदिर गयउ ॥१८८॥ सीपानइ मनि लागी खंति, श्री नवकार जपइ एकंति नवपद भक्त अछइ ये यक्ष, ते विमलेश्वर हूयउ प्रतक्ष ॥१८९॥ तूठउ आपइ निर्मल हार, सुर पभणइ सुणि वच्छ विचार
पहिर्यउ कंठि करइ मोहन, तं तं करइ जं जाणइ मन ॥१९०॥ ८१. आवास ॥
८२. आंणी ॥
८३. नवसर ॥