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जान्युआरी - २०२०
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सम्पादन काम करनारे म.गू.कोश (जयंत कोठारी) सामे राखवो जोईए. पाठशद्धिमां एनाथी मोटी मदद मळशे. भ्रान्त पाठो खडा थवानो भय नहि रहे. भारे परिश्रमपूर्वक तैयार थयेल आवो शब्दकोश होवा छतां, सम्पादकोए अर्थ नवेसरथी करवानो श्रम उठाववो पडे अने विचित्र अर्थघटनो के भ्रान्त शब्दो प्रवेशे ए जोईने खेद थाय.
नन्दिषेण रासना शब्दकोशमां 'ओलग्यो' (ढा.४, क.३)नो अर्थ 'ओलख्यो' एवो आप्यो छे. 'ओलगq'नो अर्थ छे - सेवा करवी, चाकरी करवी. म.गू.कोशमां जोयुं होत तो अर्थ मळी रहेत. ढा.३, क. ७मां 'विरचो' शब्द छे, त्यां शब्द न समजायाथी सम्पादिकाए 'विचरो' एवो सुधारो कौंसमां दर्शाव्यो छे. विषयनो सन्दर्भ जोतां विचरवानी वात बेसती नथी. 'पहेलां प्रेम राखता हता, हवे प्रेम नथी करता'- एवी वात छे. म.गू.को.मां 'विरचइ'ना बे अर्थ आप्या छे : अटकवू / विरत थर्बु अने रचना करवी. विरत थर्बु अर्थ अहीं बेसे. वस्तुतः विरचवूनुं मूळ 'वि+रुच'माथी आ शब्द ऊतारी आव्यो छे. कच्छीमां विरचणुं, विरचायणुं धातु आ अर्थमां प्रचलित छे. 'पाली इतरा दिन इउं प्रीत जो, हवइं कि उं विरचो छो विण कारणि रे लो' - आ पंक्तिमां आ अर्थ स्पष्ट छे. ढा. ३, क. ७ : 'जावां उवारणी'. शब्दकोशमां आनो अर्थ कर्यो छे 'जतां वारवं.' खरो अर्थ छ : ओवारी जवू, वारी जवू- ढा. ३ क. ८ : 'कर घेलीओ'. अहीं वाचनभूलना कारणे विचित्र पाठ सर्जायो छे. घ अने थ ना वाचनमां भूल थती होय छे, लिपि अने भाषाने ध्यानमा राखीने कृतिने समजी लइ, पछी ज लिप्यन्तर करवानी पद्धति इष्ट छे. पंक्ति छ : 'करमई कर थें लीओ' - तमे हाथमां हाथ लीधो. ढा. १ कडी ८ पछी -
'गेहगाट'. शब्द न समजावाना कारणे बे शब्दो निरर्थक बनी आव्या. 'गेहगाट', 'गहगाट' शब्द छे, जेनो अर्थ छे : आनन्द, उल्लास. ढा. ९, क. १ : 'दडबड उदडी' वाचनभूल या लेखकनी भूल छे. 'क' प्रतिनो पाठ 'दउढीक' ठीक लागे छे. वात दहेलीनी छे. दोढी, डोढी शब्दो डहेलीना अर्थना छे ज. दउढी तेनुं जूनुं रूप छे. ढा. १०, क. ४ : 'कणिका जर'मां वाचनभूल छे. कणि अजर - एम वांचवें जोइए. अजर - विलम्ब. ए - ज कडीमा ‘पडखोजी' छे, त्यां 'पडखो जी' एम वांचवानुं छे. 'पडिखq'नो अर्थ