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जान्युआरी - २०२०
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वलता श्रीगुरु बोलीआ, सुणी संघनी वाणि, जे तुम्ह मनमांहि वात छइ, ते चढसइ परमाणि. २४६
॥ ढाल ॥ राग-धन्यासी ॥ जे पंडितनि सबला परीचिं, जोतिकना सही जाणाजी, ते पंडितनइ अती बहुमानइ, तेडीनइ तीहां आणाजी. २४७ श्रीविजइसेनसुरिसर पासि, संघ सवे तीहां मलीउजी, सास्त्र तणा उपओगि जाणी, सुभ पहुर अटकलीउजी. संवत सोल सदा सुखकारी, अठावनु(१६५८) जाणउजी, महा सुदि पंचमीनि सोमवार, ए महुरत वखाणउजी. २४९ करी थापना महुरत केरी, श्रीफल सहुनइ दीघजी, पाटणमांहि हुइ वारता, वांदणा महुरत लीधजी. सहसवीर पारख कहइ सहु संघनइ, सुणउ वीनती मोरीजी वांदणा महुछव करवा आगन्या, हुं मागु कर जोरीजी.. संघि आज्ञा आदरसुं दीधी, सहसवीर पारखि कीधीजी. सजाइ सघली महउछव केरी, वाजइ घिर नफेरीजी. मंडप मोटा रूडी रचना, हेम रजतमइ राजइजी, गुखि गुखि गोरी गुण गाइ, पंचसबद सुभ भावइजी. उतर दख्यण पुरव पश्चिम, कंकोतरी पठावइजी, जेह संघ आडंबरि आवइ, ते मंडपि पधरावइजी. जमणवारनई काजि जाचां, पकवांन परचुर थाइजी, घेवर लाडुं मांडी मीठी, सेव सुंहाली बणाइजी. सालि दालि सालनां सजाइ, अति अपुरव कीधीजी, संघ सहुनई सुपरिं जमाडी, पिहिरावणी बहु दीधीजी. श्रीफलसुं रूपइउ सारउ, तंबोल आलइ हाथिजी, सहसवीर पारख्य आडंबरि आवइ, उपासरि संघ साथिजी. २५७ उपासरउ सणगारू सोहइ, जाणे देववीमानजी, नाटकना सुभ रचीआ संच, गुण-गंध्रव करि गानजी. २५८
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