Book Title: Yashstilak Champoo Uttara Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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(१८) ऐतिहासिक व पौराणिक दृष्टान्तमालाएं---इसके पूर्व खण्ड के तृतीय आश्वास (पृ. २८५-२८६ ) में उक्त विषय का उल्लेख है। इसी प्रकार चतुर्थ आश्वास के पृ० ८८ के गद्य में इसका विवेचन है।
अनोखी बजोड़ काव्यकाला- इस विषय में तो यह प्रसिद्ध ही है। क्योंकि साहित्यकार आचार्यों ने कहा है'-'निर्दोष (दुःषवत्व आदि दोषों से शून्य ), गुणसम्पन्न ( औदार्य-आदि १० काव्य-गुणों से युक्त ), तथा प्रायः सालंकार ( उपमा-आदि अलङ्कारों से युक्त ) शब्द व अर्थ को उत्तम काव्य कहते हैं ।
____ अथवा शृङ्गार-आदि रसों की आत्मावाले वाक्य (पद-समूह ) को काव्य कहते हैं । उक्त प्रकार के लक्षण प्रस्तुत यशस्तिलक में वर्तमान हैं। इसके सिवाय वन्यतेभिव्यज्यते चमत्कारालिङ्गितो भावोड स्मिन्निति ध्वनिः' अर्थात्-जह पर चमत्कारालिङ्गित पदाथं व्यञ्जना शक्ति द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है, उसे ध्वनि कहते हैं। शास्त्रकारों ने ध्वन्य काव्य को सर्वश्रेष्ठ कहा है । अतः प्रस्तुत यशस्तिलक के अनेक स्थलों पर (पूर्वखंड प्रथम आश्वास पृ. ४५ ( गद्य )-४७) ध्वन्य काव्य वर्तमान है, जो कि इसकी उत्तमतां का प्रतीक है। एवं इसके अनेक गद्यों व पद्यों में शृङ्गार, वीर, करुण व हास्यादि रस वर्तमान हैं, उदाहरणार्थ आश्वास दूसरे में ( श्लोक नं. २२० ) पद्य शृङ्गार रस प्रधान है। एवं आवास चार (पृ.२० श्लोक ४) संयुक्त शृङ्गार रस प्रधान है इत्यादि ।
ज्योतिष शास्त्र-आश्वास २ ( पूर्व खण्ड पृ. १८०-१८२ ) में ज्योतिा शास्त्र का उल्लेख है। इसके सिवाय चतुर्थ आश्वास में कहा है. अब यशोधर महाराज की गाना चन्द्रमति ने नास्तिक दर्शन का आश्रय लेकर उनके समक्ष इस जीब का पूर्वजन्म व भविष्य जन्म का अभाव सिञ्च किया तब यशोधर महाराज ज्योतिष शास्त्र के आधार से जीव का पूर्व जन्म और भविष्य जन्म सिद्ध करते हैं. कि हे माना! जब इस जीव का पूर्व जन्म है तभी निम्न प्रकार आर्याच्छन्द जन्म पत्रिका के आरंभ में लिखा जाना है-'इस जीव ने पूर्व जन्म में जो पुण्य व पाप कर्म उपाजित किये हैं, भविष्य जन्म में उस बम के उदार को यह ज्योतिष शास्त्र उम प्रकार प्रकट करता है जिस प्रकार दीपक, अन्धकार में वर्तमान घट-पटादि पदार्थों को प्रकाशित करता है। अर्थात्जब पूर्व जन्म का सद्भाव है तभी ज्योतिष शास्त्र उत्तर जन्म का स्वरूप प्रकट करता है, इससे जाना जाता है कि गर्भ से लेकर मरण पर्यन्त ही जीव नहीं है, अपितु गर्भ से पूर्व और मरण के बाद भी है इत्यादि।
अप्रयुक्त क्लिष्टतम-शब्दनिघण्टु-अर्थात्-प्रस्तुत ग्रंथ में कई हजार ऐसे संस्कृत शब्द हैं, जो कि वर्तमान कोश ग्रन्थों में नहीं हैं, अतः हमने इसके निघण्टु या कोश का अनुसंधान किया और उसे परिशिष्ट नं० २ में स्थान दिया है।
दर्शनशास्त्र-इसके पंचम आश्वास में सांस्य, जैमिनीय, वाममार्गी व चार्वाक दर्शन के पूर्व पक्ष हैं । यथा-घृष्यमाणो यथाङ्गार: शुक्लता नेति जातुचित् । विशुद्धयति कुतश्चित्तं निसर्गमलिनं तथा ॥
___ आ० ५ पृ० १५३ श्लोक ६४ न चापरमिषस्ताविषः समयोऽस्ति यदर्थोऽयं तपः प्रयास: सफलायासः स्यात् । आ. ५ पृ० १५३ १. तया च कान्यप्रकाशकार :-तबदोषौ शब्दायौं सगुणावनलती पुनः क्यापि । २. ताच विश्वनाथः कविराजः-बाक्यं रसात्मक काव्यम् - साहित्यदर्पण से संचलित-सम्पादक ३. तथा प विश्वनाथ : कविराज:--'वाच्यातिशायिनि व्यत्रये इवनिस्तत् काव्यमुत्तमम्' साहित्यवर्पण (४ परिच्छेद)
से संकलित४. यवुपचितमन्यजन्मनि पभाशुभ तस्य कर्मण:प्राप्तिम् । श्यापति पारस्वमेतत्तमसि व्याणि दीप ॥१॥
पा, ४ पृ०१२ लोक ४०