Book Title: Vivek Vilas
Author(s): Shreekrushna
Publisher: Aaryavart  Sanskruti Samsthan

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Page 11
________________ जिनदत्त सूरि और विवेकविलास मध्यकालीन जैन महापुरुषों में आचार्य जिनदत्त सूरीश्वर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उनका 'विवेकविलास' सर्वविद्यानुशासन का दिग्दर्शक ग्रन्थ माना जाता है। हालांकि नाम साम्य अन्य जिनवल्लभसूरी के शिष्य आचार्य जिनदत्तजी भी प्रसिद्ध हुए हैं किन्तु विवेकविलासकार जिनदत्त सूरि का जीवन परिचय बहुत कम ही ज्ञात है। आगरा से 1919 ई. में निकले इस ग्रन्थ की संक्षिप्त भूमिका में यह जानकारी मिलती है कि अणहिलपुर पाटन के पास वायुदेवताधिष्ठित वायट' नामक एक महास्थान है। वहीं से 'वायट' अथवा 'वायड' गच्छ की उत्पत्ति हुई है। वायडगच्छ का मूलपुरुष कौन था, यह निश्चित तौर पर कहा नहीं जाता किन्तु वे श्रीजिनदेवसूरि हो ऐसा अनुमित किया जा सकता है क्योंकि उनके पूर्व का अपेक्षित इतिहास नहीं मिलता। जिनदत्त सूरि : जीवनक्रमार्थ बाह्य-अन्तःसाक्ष्य - यह प्रसिद्ध है कि श्रीराशिल्लसूरीन्द्र और जीवदेवसूरि सांसारिक अवस्था में इसी वायट में महीधर और महीपाल नामक श्रेष्ठिपुत्र थे। महीपाल ने खेल-क्रीड़ादि में समय बीता दिया, कोई उद्यम नहीं किया, इसलिए उसके पिता धर्मदेव ने उसको निकाल दिया। इसके बाद, राजगृह में दिगम्बर सन्त श्रुतकीर्ति गुरु से दीक्षा लेकर सुवर्णकीर्ति आचार्य हुआ और गुरु से 'परकाय प्रवेश और चक्रेश्वरी विद्या' को सीखा। महीधर भी उसके पिता के देहोत्सर्ग के बाद इसी वायटगच्छ के श्रीजिनदेवसूरि के सन्तान में श्रीराशिल्लसूरि हुए। राजगृह से आते हुए लोगों के मुँह से सुवर्णकीर्ति का वृत्तान्त सुनकर उसकी माता वहाँ गई और दोनों भाइयों को एक ही धर्ममार्ग के उद्देश्य से समझाकर 'वायट' में लाई जहाँ बाद रसवती प्रयोग से दोनों भाइयों की परीक्षा ली। माता के वचन को स्वीकार कर सुवर्णकीर्ति ने श्वेताम्बर दीक्षा ली और 500 शिष्यों वाला श्रीजीवदेवसूरि हुआ। उनके कुल में ग्रन्थकार श्रीजिनदत्तसूरि आचार्य वर्ग में प्रसिद्ध हुए। बाह्य साक्ष्यों से ज्ञात होता है उनके शिष्य महाकवि अमरचन्द्रसूरि हुए जिन्होंने वैदर्भी रीति में 18 पर्वो और 44 सर्गों में लगभग सात हजार पद्यों में 'बाल ix .

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