Book Title: Vivek Chuamanakhya Prakaranam
Author(s): Gyan Ratnakar Yantra
Publisher: Gyan Ratnakar Yantra

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Page 8
________________ अहङ्कारादि देहान्तान् बन्धानज्ञानकल्पितान्। खखरूपावबोधेन मोतुमिच्छा मुमुक्षुता ॥ २८॥ . मन्दमध्यमरूपापि वैराग्येण शमादिना। प्रसादेन गुरोः सेयं प्रवा सूयते फलम् ॥२६॥ वैराग्यञ्च मुमुक्षुत्वं तीनं यस्य तु विद्यते। तस्मिन्नेवार्थवन्तःस्यु फलवन्तः शमादयः ॥३०॥ एतयोर्मन्दता यत्र बिर तत्व मुमुक्षयोः। मरौ सलिलवत्तत्र शमादेर्भानमावता ॥३॥ मोक्षकारणसामग्यो भक्तिरेष गरी, यसी। खखरूपानुसन्धानं भक्तिरित्यभिधीयते ॥ ३३॥ खात्मतत्त्वानुसन्धानं भक्तिरित्यपरे जगुः ।। उक्तसाधनसम्पन्नस्तत्त्वजिज्ञासुरात्मनः ॥३३॥ उपसीदेव गुरु' प्रानं यस्मात् बन्धविमोक्षणम् ॥ श्रो वियोनिनोऽकामहतो योव्रह्मवित्तमः ॥३४॥ ब्रह्मण्युपरतः शान्तो निरिन्धन वानलः । अहेतुक दयासिन्धुर्वन्धुरान मतां सताम् ॥३५॥ तमाराध्य गुरु भक्त्या प्रवप्रथय सेवनैः । प्रसन्नं तमनुप्राप्य पच्छेज् ज्ञातव्यमात्मनः ॥३६॥ खामिन्नमस्ते नतलोकबन्धो कारुण्यसिन्धोपतितं भवाब्धौ। मामुद्धरात्मीय

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