Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 11
________________ __ [10] प्रारंभ में अच्छा लगता है, परन्तु उसके बाद उसका परिणाम खराब रूपपने, दुर्गन्धपने यावत् छठे शतक के महाश्रव नामक तीसरे उद्देशक में कहे अनुसार अशुभ होता है। इसी प्रकार हे कालोदायिन्! जीव के लिये प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनशल्य तक अठारह पाप-स्थान का सेवन तो अच्छा लगता है, किन्तु उनके द्वारा बंधे हुए पापकर्म जब उदय में आते हैं, तब उनका परिणाम अशुभ होता है। इसी प्रकार हे कालोदायिन्! जीवों के लिए अशुभ फल-विपाक सहित पाप कर्म होते हैं। प्रश्न - अत्थि णं भंते! जीवाणं कल्लाणा कम्मा अल्लाणफलविवागसंजुत्ता कज्जंति? उत्तर - हंता, अत्थि। प्रश्न - कहं गं भंते! जीवाणं कल्लाणा कम्मा जाव कजंति? उत्तर - कालोदाई! से जहाणामए केई पुरिसे मणुण्णं थालीपागसुद्धं अट्ठारसवंजणाउलं ओसहमिस्सं भोयणं भुजेजा, तस्स णं भोयणस्स आवाए णो भद्दए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणे परिणममाणे सुरूवत्ताए, सुवण्णत्ताए, जाव सुहत्ताए, णो दुक्खत्ताए, भुज्जो भुजो परिणमइ, एवामेव कालोदाई! जीवाणं पाणाइवायवेरमणे जाव परिग्गहवेरमणे, कोहविवेगे जाव मिच्छादसणसल्लविवेगे, तस्स णं आवाए णो भद्दए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणे परिणममाणे सुरुवत्ताए जाव णो दुक्खत्ताए भुजो भुजो परिणमइ, एवं खलु कालोदाई! जीवाणं कल्लाणा कम्मा जाव कजंति। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्या जीवों के कल्याण फल-विपाक सहित कल्याण (शुभ) कर्म होते हैं? उत्तर - हाँ, कालोदायिन्! होते हैं। प्रश्न - हे भगवन्! जीवों के कल्याण फल-विपाक सहित कल्याण कर्म कैसे होते हैं? : उत्तर - हे कालोदायिन्! जैसे कोई एक पुरुष भाण्ड में रांधने से शुद्ध पका हुआ और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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