Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 10
________________ [9] ........................................................... पडिगया। तए णं से कालोदाई अणगारे अण्णया कयाइ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी प्रश्न - अत्थि णं भंते! जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कति? उत्तर - हंता, अत्थि। प्रश्न - कहं णं भंते! जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कजंति? उत्तर - कालोदाई! से जहाणामए केइ पुरिसे मणुण्णं थालीपागसुद्धं अट्ठारसवंजणाउलं विससंमिस्सं भोयणं भुंजेजा, तस्स णं भोयणस्स आवाए भद्दए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणे परिणममाणे दुरूवत्ताए, दुगंधत्ताए जहा महासवए, जाव भुजो भुजो परिणमइ, एवामेव कालोदाई! जीवाणं पाणाइवाए जाव मिच्छादसणसल्ले, तस्स णं आवाए भद्दए भवइ, तओ पच्छा विपरिणममाणे विपरिणममाणे दुरूवत्ताए जाव भुजो भुजो परिणमइ, एवं खलु कालोदाई! जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कज्जति। - भावार्थ - किसी समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी राजगृह नगर के गुणशील उद्यान से निकल कर बाहर जनपद (देश) में विचरने लगे। उस काल उस समय में राजगृह नगर के बाहर गुणशील नामक चैत्य था। किसी समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पुनः वहाँ पधारे यावत् धर्मोपदेश सुनकर परिषद् लौट गई। कालोदायी अनगार किसी समय श्रमण भगवान् महावीर के पास आये और भगवान् महावीर स्वामी को वन्दन नमस्कार करके इस प्रकार पूछा - . ... प्रश्न - हे. भगवन्! क्या जीवों को पाप फल-विपाक सहित पाप कर्म लगते हैं? ... उत्तर - हाँ, कालोदायिन्! लगते हैं। . प्रश्न - हे भगवन्! पापफल-विपाक सहित पापकर्म कैसे होते हैं? .. उत्तर - हे कालोदायिन्! जैसे कोई पुरुष, सुन्दर भाण्ड में पकाने से शुद्ध पका हुआ, अठारह प्रकार के दाल-शाकादि व्यंजनों से युक्त विष-मिश्रित भोजन करता है, तो वह भोजन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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