Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ [7] पदार्थों का असर अमूर्त ज्ञानादि पर होता है, वैसे ही विकारी (संसारी) अमूर्त आत्मा पर मूर्त कर्म पुद्गलों का प्रभाव होता है। प्रज्ञापना सूत्र के २३ वें पद में बतलाया गया है कि अकर्म के कर्म का बंधन नहीं होता। जो जीव पहले से ही कर्मों से बन्धा है वही जीव नये कर्मों को बांधता है। जीव के साथ कर्मों का सम्बन्ध अनादि से है। किन्तु कर्म किन कारणों से बंधते हैं? इसके लिए प्रज्ञापना सूत्र के तेवीसवें पद में बतलाया गया है कि ज्ञानावरणीय कर्म के तीव्र उदय से दर्शनावरणीय कर्म का तीव्र उदय होता है। दर्शनावरणीय कर्म के तीव्र उदय से दर्शनमोह का उदय होता है। दर्शनमोह के तीव्र उदय से मिथ्यात्व का उदय होता है और मिथ्यात्व के उदय से जीव आठ प्रकार के कर्मों को बांधता है। - स्थानांग एक समवायांग सूत्र में कर्म बंध के पांच कारण बतलाए हैं। १. मिथ्यात्व २. अविरति ३. प्रमाद ४. कषाय और ५. योग। मूल में कर्म बंध के दो ही कारण हैं कषाय और योग। इन दो में भी मुख्यता कषाय की है। क्योंकि कर्म बंध के जो भेद हैं-प्रकृति, स्थ अनुभाग और प्रदेश। इसमें प्रकृति और प्रदेश बंध योग के निमित्त से होता है एवं स्थिति और अनुभाग (रस) का बंध कषाय के निमित्त से होता है। कषाय के अभाव में साम्परायिक कर्म का बन्ध नहीं होता। दसवें गुणस्थान तक कषाय और योग दोनों रहते हैं। अतः वहाँ तक साम्परायिक बंध होता है। जिसके कारण कर्मों की स्थिति और रस दोनों बंध विशेष होता है। इसके बाद तो मात्र योग रहता है. जिसके निमित्त से गमनागमन आदि क्रियाओं से बंध होता है, वह ईर्यापथिक बंध कहलाता है। इसकी स्थिति उत्तराध्ययन एवं प्रज्ञापना सूत्र में मात्र दो समय की बतलाई है। जो कर्म आत्मा के बंध चुके हैं उनका यथासमय बाद उदय में आना होता ही है। वह प्रकार का होता है एक प्रदेशोदय और दूसरा विपाकोदय । प्रदेशोदय तो समस्त संसारी जीवों के प्रतिक्षण आठों कर्मों का चालू ही रहता है। ऐसा कोई संसारी जीव नहीं जिसके प्रदेशोदय चालू न हो। प्रदेशोदय से जीव को सुख - दुःख की अनुभूति नहीं होती है। जैसे गगन मण्डल में सूक्ष्म रजःकरण एवं जलकण फैले रहते हैं, हम पर उनका आघात भी होता है, लेकिन हमें उनका कोई अनुभव नहीं होता । विपाकोदय से ही सुख-दुःख की अनुभूति होती है। विपाक सूत्र का मूल विषय ही विपाकोदय से है । उदय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 362