Book Title: Vipak Sutra Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 7
________________ - [6] भवभ्रमण आदि सभी उपाधियाँ पैदा होती हैं। कर्मों का संयोग (बन्ध) यानी संसार एवं कर्मों का वियोग अर्थात् मोक्ष। प्रश्न होता है कर्मों का संयोग जीव के साथ कब से है? वैसे तो आठों ही कर्मों का संसारी जीव के साथ सम्बन्ध अनादि से है। पूर्व काल में ऐसा कोई समय नहीं रहा कि जिस समय किसी एक जीव के आठों कर्मों में से एक भी कर्म की सत्ता न रही हो। किन्तु किसी अपेक्षा से कर्मों की सादि भी है, क्योंकि किसी विवक्षित समय का बंध हुआ कर्म अपनी स्थिति पूर्ण होने पर अपना फल (विपाक) देकर आत्म प्रदेशों से अलग हो जाते हैं, पर नये कर्मों का बंध चालू रहने के कारण कर्मों का प्रवाह चालू रहता है। इस प्रकार कर्मों के बंध और निर्जरा का क्रम जीव के साथ अनादि काल से चालू है, कर्मों का बंध तब ही शनैः-शनैः रूकता है जब जीव आत्म-विकास की ओर अग्रसर होता है, गुणस्थानों का उत्तरोत्तर आरोहण करता है। ___कभी यह भी प्रश्न उत्पन्न होता है कि आत्मा तो अरूपी है जबकि कर्म रूपी है, फिर . रूपी अरूपी आत्मा पर कैसे चिपक जाते हैं? जैनागम एकान्त अरूपी तो मुक्त आत्माओं को मानता है, संसारी जीवों को कथंचित् रूपी मानता है। इसीलिए ठाणं सूत्र में आत्मा के लिए “सरुवि चेव अरुवि चेव" शब्दों का प्रयोग हुआ है। जहाँ सशरीरता है वहा सरूपता है। शरीर से कर्मों का और कर्मों से शरीर के बन्ध की परम्परा अनादि से चली आ रही है। आठ कर्मों में आयुष्य कर्म एक ऐसा कर्म है जो आत्मा और शरीर को परस्पर जकड़ रखता है। यद्यपि आयुष्य कर्म न सुख देता है और न ही दुःख, किन्तु सुख दुःख वेदने के लिए जीव को शरीर में ठहराए रखना उसका काम है। पहले की बंधी हुई आयुष्य के क्षीण होने से पूर्व ही अगले भव की आयु बांध लेता है। जंजीर (श्रृंखलाबन्ध) की तरह जीव एक शरीर को त्याग कर नवीन शरीर को धारण करता रहता है। आयुष्य कर्म का मूल मोहनीय कर्म है। अर्थात् आयुष्य कर्म मोहनीय कर्म के निमित्त से बंधता, आयुष्य बंध के साथ जितने कर्मों का बन्ध होता है वह बन्ध प्रायः निकाचित बंध होता है। अतएव कर्म बन्ध. जीव कथंचित् सरूपी है। एकान्त अरूपी नहीं। जो एकान्त अरूपी है, अमूर्त है, वह कदापि पौद्गलिक वस्तु के बंधन में नहीं पड़ सकता है। वे तो सिद्ध ही हैं। जो सशरीर है वे सब बद्ध है। इस प्रकार आत्मा और कर्म का सम्बन्ध मूर्त का मूर्त के साथ होने वाला सम्बन्ध हैं। जिस प्रकार मूर्त मादक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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