Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti
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शुद्ध हृदये वहन करी. पछी चारित्र लेवानी ईच्छा थई, जेवामां ते ज वखते फरी श्री ब्रह्मगुप्तसूरीश्वरजी त्यां पधार्या. तेओश्रीने वंदन करवा जतां राजाए अणगारपणानी गुरु पासे मागणी करी अने अणगार थया. सूरिमहाराजे कडं के दश कन्याओ परणीश तेमां तारो प्रेम थशे, त्यारे तने हं दीक्षा आपीश. राजा ते सांभळी विस्मय पामे छे, जेथी गुरुमहाराज चेतना सहित दश कन्याओचं वर्णन करे छे. जे स्वांतहृदय नामे नगर, रुचिर अध्यवसाय राजा तेनी घणी स्त्रीओ छे, जेमां शांति नामनी स्त्रीने क्षमा नामे पुत्री, रुचि नामनी स्त्रीने दया नामे पुत्री, विनयता नामे स्त्रीने मृदुता नामे कन्या, समता नामे स्त्रीने सत्यता नामे पुत्री, शुद्धता नामे स्त्रीने ऋजुता पुत्री, पापभिरुता स्त्रीने अवैरता कन्या, निरागता नामनी स्त्रीने ब्रह्मरति पुत्री, निर्लोभता स्त्रीने मुक्तता पुत्री, प्रज्ञा नामनी स्त्रीने विद्या नामे पुत्री अने दशमी विरति नामे स्त्रीने निरीहता नामे कन्या. ए दश कन्याओगें उपदेशमय कथन आचार्यमहाराजे कही राजाने कडं के आ कन्या, पाणी ग्रहण करी पछी दीक्षा ले. त्यारपछी ते दश कन्याओनी प्राप्तिना उपायो आचार्य महाराजे राजर्षिने वर्णवी बताव्या. पछी पांच समिति अने त्रण गुप्ति मळी आठ प्रवचन मातानी सेवा करवानो राजाने उपदेश आपतां ईर्यासमिति उपर वरदत्तनी कथा, बीजी भाषासमिति उपर संगत साधुनी कथा, त्रीजी एषणासमिति, वर्णन अने तेना उपर धनशर्मा अने धर्मरुचि मुनिनी कथा, चोथी आदान समिति उपर सोमीलाचार्यनी कथा अने पांचमी उत्सर्ग समिति उपर धर्मरुचि मुनिनी कथा तेमज मनगुप्ति उपर जिनदासनी कथा, वचनगुप्ति उपर गुणदत्त साधुनी कथा अने कायगुप्ति उपर मार्गे चालता एक साधुनी कथा, ए अष्ट प्रवचननी समज अने ते उपर कथा ते साथे बीजो केटलोक उपदेश पद्मसेन मुनिने आचार्य महाराज आपे छे जे माननीय, सुंदर अने ग्राह्य छे.
त्यारबाद पद्मसेन मुनिए सर्व सिद्धांतनुं अवलोकन कयुं अने पछी ते मुनिए पोताना पूर्वना दुष्कर्मोनो क्षय करवा तप करवा मांड्यु. बावीस परिषहो अने देवो तिर्यंच अने मनुष्योए करेला चार प्रकारना उपसर्गो पोताना हित माटे समताभावे सहन कर्या. पछी कोई वखते गुरुनी आज्ञा लई गणमांथी जुदा नीकळी साधुनी बार प्रतिमा वहन करी अने शुभ वासनाथी वासित थयेल ते वैराग्यवान मुनि पद्मसेने विधिपूर्वक वीस स्थानकनी आराधना करी. अहिं वीसस्थानकथी आराधना आ मुनिवर्ये केवी रीते करी तेनुं स्फूट अने जाणवा लायक वर्णन श्रीज्ञानसागरसूरि महाराजे बहु ज सुंदर शैलीथी आपेल छे. जेनुं

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