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निर्भाग्यनी कथा कहे छे. ते निर्भाग्य दुःखथी कंटाळी पर्वत परथी पडी आपघात करतो हतो, जेवामां त्यां श्रीमानदेव केवळी भगवंतना दर्शननो लाभ तेना भाग्ययोगे थाय छे. अने केवळी भगवंत तेने उपदेश आपी (तेनो पूर्वभव कही) आपघात करतां अटकावे छे. धर्म पमाडे छे; ए उपदेशमां अवांतर श्री जिनेश्वर देवनी पूजा उपर देवपाळनी कथा देवतत्त्वनुं स्वरूप, गुरुतत्त्वनुं वर्णन साथै श्रेष्ठी पुत्र मुग्धनी कथा, साथे धर्मतत्त्वना विवेचन साथे अमरसिंह तथा पूर्णकळशनी कथा अने ते कथानो उपनय घटावी छेवटे पूर्णकळश राजाए दीक्षा ग्रहण करी, ज्ञान, दर्शन, चारित्रनुं आराधन करतां कषायजय, इन्द्रियजय, अष्टकर्मसूदन, सर्वांगसुंदर, पंचमहाभूषण वगरे नामना अनेक तपोनुं विधि सहित आराधन करी, सवार्थसिद्ध विमानमां जई, त्यांथी आयुष्य पूर्ण करी महाविदेह क्षेत्रमां उत्तम कुळमां जन्म लई, दीक्षा ग्रहण करी, उत्तम तपथी कर्मनो क्षय करी सिद्धिने पामशे. ए वगेरे अनेक उत्तम कथाओ आपी ग्रंथकर्ता श्री बीजो सर्ग पूर्ण करे छे. आ सर्गमां आवेल कथाओ अति प्रभावशाळी अने रसयुक्त छे, जेना वांचनथी आत्माने शांति प्राप्त थाय छे.
तृतीय सर्ग
भावाधिकार
पाना नंबर १४३ थी २१८
धर्मकल्पद्रुमनी चोथी शाखा भाव तेनो अधिकार श्रीमान् ब्रह्मगुप्तसूरि महाराज श्री पद्मसेन राजाने संभळावे छे. दान, शीयळ, तपथी मनुष्यने केवळज्ञान उत्पन्न थतुं नथी परंतु भाव नामनी शाखाथी ज मोक्ष मेळववानी महान शक्ति उत्पन्न थाय छे. परिणाम रहित मनुष्यने भावरूपी शाखाथी जेम धर्मनी पुष्टि थाय छे. जेम रसोई लवण नाखवाथी रसवाळी थाय छे, भोजन घी वड़े ताकात आपनारुं थाय छे, तेम सर्व गुणना निधानरूप धर्म भावनाथी ज संपूर्ण बने छे. दानादि वगेरे धर्ममां भावधर्म होय तो ज सोनुं अने सुगंध मन्या जेवुं थाय छे. दयादान करवुं ते सुख आपनारुं छे; परंतु कळीयुगमां घणुं दुष्कर छे, कारण के आ युगमां प्राणीओ आरंभ समारंभमां तत्पर होय छे. वळी धर्मोपष्टंभ दान करवा कहेल छे, परंतु काळ तथा पात्र वगेरेनो योग थवो दुर्लभ छे. शील तो मुक्तिरूपी लक्ष्मीनी लीलावाळं छे, परंतु तेनुं पालन करवुं घणुं मुश्केल छे. तप आ संसारमां संतापरूप तडकामां छायादार वृक्षना जेवुं छे, परंतु तेनी अंदर
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