Book Title: Vimalnath Prabhunu Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 18
________________ इंद्रियोनो जय करवो सुगम नथी, जेथी सुखथी सेवी शकाय एवी आ धर्मनी चोथी शाखा रूप भाव भव्यजीवोने धारण करवा जेवो छे, के जेनाथी चंद्रोदरने थोडा वखतमां सिद्धि प्राप्त थई. अहिं गुरु महाराज चंद्रोदरनी कथा कहे छे अने कथानो उपनय घटावे छे. साथे पंचपरमेष्ठि मंत्रनो महिमा जणावी तेनो विधि पण आ कथामां बतावे छे, जे ज्ञेय अने उपादेय छे. एक वखते ज्ञानथी युक्त एवा धर्मघोष नामना आचार्य घणा शिष्योना परिवार सहित उद्यानमां आवी चड्या. ते खबर सांभळी चंद्रोदर राजा गुरुने वंदन करवा आव्यो विधिपूर्वक वंदन करी आसन उपर बेठो. पछी आचार्यमहाराज भावधर्म माटे उपदेश आपतां जणावे छे के, दान चित्तने अनुसारे, शील बुद्धिने अनुसारे, शास्त्र तथा कायाने अनुसारे तप त्यांसुधी मनुष्य हर्षथी सुखदायक एवा धर्मकर्मने कपट विना करी शके छे. ज्यां बीजी शक्ति न होय तो केवळ भावना ज करवी. ते उपर शास्त्रमा अनेक दृष्टांतो बळदेव ऋषि अने रथकारनां मोजुद छे. जे वचननी वृत्तिथी अने लोकोनी स्तुतिथी जे भाव दर्शावे छे, ते प्रमाणे शक्ति छतां न करी शके तो ते भाव साचो कहेवातो नथी. ते उपरथी श्री धर्मघोषसूरिजी धन- अहिं दृष्टांत आपे छे अने तेनो पूर्वभव साथे जणावे छे. सूरिमहाराजनो उपदेश सांभळी राजा चंद्रोदर संसारनो त्याग करी भावना भाववा लाग्यो; ए प्रमाणे भावना भावतां राजाने केवळज्ञान प्राप्त थयु. पछी विहार करी धर्मनी प्रभावना करी छेवटे सिद्धिपदने पाम्या. आ प्रमाणे चंद्रोदरनी कथा भावधर्माधिकार मारे ग्रंथकार महात्माए जणावेली छे, जे आखी कथा मननीय होई पठनपाठन करनारने चित्तने शांति उत्पन्न करनारी छे. त्यारबाद श्री ब्रह्मगुप्तसूरिए पद्मसेन राजानी विनंतीथी आ संसारमा धर्मनी जे योग्यता छे ते उपदेश आपतां प्रथम श्रावकधर्म, पालन करवा अने पछी विद्वतावाळी दीक्षा ग्रहण करवा जणावतां राजाने देशविरतिनुं दान आप्यु; पछी आचार्य महाराज विहार करी गया. राजा पोताना नगरमां आव्यो. पछी गुरु उपदेशने पोताना आत्मामां उत्तम रीते निरंतर चितवन करतो, मोटां जिनमंदिरो कराव्यां. सुवर्णनी जिन प्रतिमाओ करावी, उत्तम सिद्धांतना पुस्तको लखाव्यां, निरपराधि त्रसजीवोने त्रास मटाडवानुं कार्य कर्यु, साधु, साध्वी महाराजनी अन्न, वस्त्र, पात्रो वगेरेथी भक्ति करी, श्रावकश्राविकाओनुं वात्सल्य राज्यभाग छोडी दई करवा मांड्यु, स्वदारा संतोष व्रत, बार प्रकारनां तपपूर्वक बार भावना भाववा लाग्यो अने त्रिकाळ पूजा करनारा ते राजाए श्रावकनी अगियार पडिमा viii

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