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श्री विजयानन्द सूरि साहित्य प्रकाशन फाऊंडेशन" द्वारा पुनः प्रकाशन।
(5) पावागढ़ तीर्थ जो खण्डहर मात्र रह गया था उस का पुनः उद्धार करवा कर उसे आराधना, साधना एवं शिक्षा का केन्द्र बनाया। भव्य और कलात्मक जिन-मन्दिर, धर्मशाला, भोजनशाला, चिकित्सालय, साहित्य प्रकाशनादि की प्रशंसनीय व्यवस्था ।
(6) बालिकाओं में धार्मिक संस्कार हेतु "पंजाबी साध्वी श्री देव श्री जैन कन्या छात्रालय" का निर्माण ।
(7) आप श्री ने पचासों शहरों और गांवों में जैन मन्दिरों के निर्माण के साथ-साथ धार्मिक पाठशालाएं आरम्भ करवाई ताकि बालकों को धार्मिक संस्कारों से अलंकृत किया जावे। आपकी यह दृढ़ धारणा है कि युवा पीढ़ी व बच्चों को सुसंस्कारित करने पर ही जैन धर्म टिक सकता
है ।
(8) बावन वीरों में 41वें श्री माणिभद्र जी पूज्य गुरुदेव के सहायक इष्टदेव वीर हैं। आप ने इन की आराधना, साधना करके मध्य रात्रि समय जिस रूप में श्री वीर को प्रत्यक्ष देखा, उसी रूप में इन की प्रतिमा निर्मित करवा कर पावागढ़ में प्रतिष्ठित करवाई। आजकल यह श्रद्धालुओं का केन्द्र बनी हुई है और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती है।
(9) परमाराध्य आचार्य श्री जी ने सन् 1995 तक अपने जीवन काल में 11 छरी पालित संघ, 8 उपधान तप, बीसों जिनालयों की अंजन-शलाका प्रतिष्ठाएं करवाईं। एक लाख किलोमीटर से अधिक भारत वर्ष के विभिन्न प्रांतों में भ्रमण कर जैन शासन के दुंदुभि बजाई। वर्तमान पट्टवर कोंकण देश दीपक, वर्तमान गच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज
जन्म स्थान
जन्म तिथि
जन्म जाति
सालपुरा
भादों सुदि 4, वि.सं. 2002
राजपूत क्षत्रिय
राम सिंह
श्री पूनम भाई
श्रीमति चंचल वहन
लफनी
मिगसर सुदि 6, 2021
जैनाचार्य श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरि जी म.सा.
बोडेली (गुजरात)
मुनि रत्नाकर विजय
पालीताणा, फाल्गुन सुदि दूज संवत् 2040
पूना, माघ सुदि 3, 2043
पालीताणा, वैशाख सुदि दूज संवत् 2048 मेड़ता रोड, फलवृद्धि पार्श्वनाथ
दिनांक 14.05.2000, रविवार वैशाख सुदि ग्यारस, संवत् 2057
तिथि
· किसी भी समाज का सर्वोत्तम मार्गदर्शन पूज्य सन्तवृन्द ही कर सकते हैं क्योंकि सन्त ही धर्म के वास्तविक रहस्यद्रष्टा एवं समाज के प्रति निःस्वार्थ भाव से अपना सर्वस्व अर्पित करने के लिए तत्पर रहते हैं, ऐसे ही महान् सन्तों में कोंकण देश दीपक श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरि जी म.सा. का जन्म गुजरात प्रान्त के बड़ौदा जिले के सालपुरा कस्बे में, भादों सुदि चौथ, सम्वत्सरी महापर्व के ऐतिहासिक दिन वि.सं. 2002 को क्षत्रिय राजपूत परिवार में पिता सुश्रावक श्री पूना भाई की अद्धांगिनी सुश्राविका श्रीमति चंचल बेन की पवित्र कुक्षी से हुआ, आप का नाम राम सिंह रखा गया। लफनी ग्राम आपकी पैतृक भूमि थी। आपके पूर्व जन्मों के शुभ संस्कार तथा पुण्य कर्मों के उदय का ही फल
जन्म नाम
पिता श्री
माता श्री
कर्म स्थान
दीक्षा तिथि
दीक्षा गुरु
दीक्षा स्थान
दीक्षा नाम
गणि पद
पन्यास पद
आचार्य पद
• गच्छाधिपति पद
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विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका
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