Book Title: Vijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Author(s): Pushpadanta Jain, Others
Publisher: Akhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti

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Page 186
________________ भ्रमण, दौड़ आदि कराए जाते थे। इन सुरक्षित नहीं पहुंचे, वे वहीं रहे और बाद में हमारे गुरुदेव के प्रवेश पर गाजे-बाजे के सबके अतिरिक्त हमें वही संस्कार दिये जाते उनको व सभी को सुरक्षित पहुंचाया गया। साथ जाने दिया जावे वरना हम अपने प्राण थे, जिन से माता-पिता, गुरु समाज, धर्म कैसा विलक्षण था जैन श्वेताम्बर भाईयों की न्यौछावर करेंगे। इधर बीकानेर नरेश ने राष्ट्र की सेवा का भाव निरन्तर हृदय में रक्षा का उनका प्रण ! धन्य है। दोनों समुदायों के भाईयों का बुलाया, बना रहे। प्राचीन गुरुकुल पद्धति के बीकानेर की एक बहुत रोमांचक तपागच्छ वालों में मैं भी था। उन सब के अनुसार 'मातृदेवो भव-पितृ देवो घटना है, तब मैं बीकानेर में ही था, गुरुदेव सामने वे तार रखे और पूछा कि यह क्या भव-गुरुदेवो भव' आदि प्रमुख थे जिनका का चातुर्मास कराने की आज्ञा बीकानेर वाले मामला है ? खरतरगच्छ वालों ने श्री पूज्य निरन्तर पाठ होता था और वे संस्कार आज लेकर आये। उस वक्त बीकानेर में जी से पुराने पट्टे ले जाकर यह बताया कि भी गुरुकुल के पढ़े स्नातकों में विद्यमान हैं। खरतरगच्छ के भाई गवाड़ में अधिक रहते ऐसा निर्णय पहले से है औ गुरुकुल के श्री बाबू कीर्ति प्रसाद जी बिनौली थे और तपागच्छ वाले 14वीं गवाड़ में आवेगा, वह हमारी गवाड़ की भूमि में बिना वाले अधिष्ठाता थे, श्री बंसीधर जी निवास करते थे, ऐसे वहां गवाड़ों का गाजे-बाजे के ही निकलेगा। उन्होंने इतने प्रिन्सीपल एवं श्री आत्माराम जी गृहपति थे विभाजन था। खरतरगच्छ के श्रीपूज्य जी तार देखकर यह अनुमान लगा लिया था कि जो अपने कर्त्तव्य बखूबी निभाते थे। महाराज जो भारत के यति समुदाय के सभी कोई महान् आचार्य यहां आ रहे हैं और गुरुदेव में यह विशेषता और त्याग यति व श्री पूज्य अपना प्रमुख मानते थे। उनके प्रवेश पर अगर ऐसा होता है तो की भावना थी और जो प्रशंसा से बिल्कुल वहां के श्री पूज्य जी का उपाश्रय रोगड़ी शासन के लिए भी अपमान जनक है। दूर थे उन्होंने सभी संस्थाओं के आगे अपने चौंक में स्थित था। कई सौ वर्षों से पहले के उन्होंने तपागच्छ वालों से पूछा कि क्या गुरुदेव का नाम ही रखा। गुरुदेव श्री जैन श्री पूज्य जी का बहुत प्रभाव था और पहले से ऐसा हो रहा है, तो सबकी स्वीकृति श्वेताम्बर श्रीसंघों की सेवा के लिए सदा बीकानेर के तत्कालीन नरेश भी उनसे देखी। इन सब बातों के होने पर मैंने नरेश तत्पर रहते थे, यहां तक कि अपने प्राण भी प्रभावित थे और श्री पूज्य जी के कई से यह कहा कि श्रीमान् यह सैंकड़ों साल आवश्यकता पर न्यौछावर करने को तत्पर चमत्कारों से वे अभिभूत थे। तत्कालीन श्री पुरानी आज्ञाएं हैं और अब समय बहुत रहते थे। जब भारत का विभाजन 1947 में पूज्य जी महाराज ने उन से खरतरगच्छ का बदल गया है-आप इन भाईयों से यह पूछिए हुआ तो दूसरा देश पाकिस्तान के रूप में विशेष प्रभाव रखने के लिए यह आज्ञा व कि इनकी गवाड़ में मुसलमान गाजे-बाजे के प्रसिद्ध हुआ। उस वक्त भारत के पंजाब फरमान आदि प्राप्त कर लिया था कि 14 साथ और अन्य धर्म वाले भी ऐसी धूमधाम और इधर जो पाकिस्तान बना उनमें रहने गवाड़ वाले उनकी गवाड़ में प्रवेश करने व से आते हैं ? फिर 14 गवाड़ के लिए ही यह वाले हिन्दू, सिक्खों और पाकिस्तान में रहने जब तक पूरा क्षेत्र समाप्त नहीं होने तक रोक क्यों ? नरेश ने खरतरगच्छ वालों से वाले मुसलमानों के बीच भारी मारकाट मची गाजे-बाजे बन्द रखकर उन्हें जाना होगा पूछा कि ऐसा हो रहा है ? तो उन्होंने और एक दूसरे को मारने के लिए खून की और तद्नुसार ही चल रहा था। इधर जब स्वीकृति दी, तो उन्होंने यह फरमान जारी होली खेली जा रही थी। गुरुदेव उस समय इन महान् आचार्य श्री विजय वल्लभ कर दिया कि अब ऐसा नहीं होगा और गुजरांवाला में थे जो पाकिस्तान के भाग में सूरीश्वर जी का प्रवेश बीकानेर में हो और महान् आचार्य का प्रवेश सर्वत्र धूमधाम से था। वहां गुरुदेव ने यह प्रतिज्ञा की कि जब जुलूस चले तो किसी प्रकार यह हो जाये कि होगा। खरतरगच्छ वालों ने श्री पूज्य श्री तक गुजरांवाला और उसके आस-पास के कहीं वह रुकेगा नहीं। उधर पंजाबी भाई महाराज को सारे निर्णय से अवगत कराया। नगरों में जैन भाई-बहन हैं, जब तक वे यह जानकर इस गवाड़ों के निर्णय से बहुत वे आग बबूला हो उठे ऐसा नहीं होगा और सुरक्षित नहीं पहुंच जाये मैं यहां से हिलूंगा आश्चर्य चकित हुए और उन्होंने भी गुरुदेव यदि हुआ तो हमारा समुदाय जुलूस के आगे ही नहीं। भारत सरकार ने बहुत अनुनय के प्रवेश पर गाजे-बाजे बन्द रहने पर उस लेट जावेंगे। उन्होंने नरेश को भी अपने किया कि यहां आपकी जान को जबरदस्त प्रथा को तोड़ने का निश्चय किया और निश्चय से अवगत करा दिया। बीकानेर खतरा है, पर जब तक गुजरांवाला और उन्होंने तत्काली-बीकानेर नरेश श्री सादूला नरेश ने अपनी आज्ञा का पालन कराने को आस-पास नगरों के जैन श्वेताम्बर भाई सिंह जी को प्रत्येक घर से यह तार दिए कि अपने राज कुमार करवीर सिंह जी को कह 184 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 45 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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