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युगपुरुष तुम्हें शतकोटि नमन !
जब जब भू पर बढ़ी तमिस्त्रा,
जब जब हाहाकार मचा।
तब तब संत हृदय का समरस,
शुचिता में हुँकार उठा।
संतपुरुष के दिव्यघोष से स्वर्ग बना भू का आंगन ! ऐसे संत विजय वल्लभ का कोटि-कोटि उर-अभिनंदन !!
कोई लड़ता करबालों से,
संगीनों से मचल-मचल, सत्य-अहिंसा से लड़ने को, विरले का होता सुपहल।
महावीर के उपदेशों पर चलकर जो बनते कुंदन !
वही विजय वल्लभ बनता है, कोटि-कोटि उनको वंदन !!
जिसने दलितों को अपनाया,
दुखियों को जो दुलराया,
जिसने प्रेमसुधा लहराकरजन-जन मन को हुलसाया !
प्रेम पुरुष ! हे दिव्य प्राण ! समता के शुचि अभिव्यंजन !
तेरे पुण्यपंथ पर चलकर, गुरुवर ! तेरा अभिनंदन !! द्रोह - द्वेष का भेद मिटाया,
कटता - कल्मष विसराया;
माया, मोह, आसक्ति पाश से
जिसने दूरतम बगराया !
बन्धुभाव, समता सरसाकर, बने स्वयं भवभयभंजन ! वसुन्धरा के दिव्यपुरुष हे ! तुमको कोटि-कोटि वंदन !!
चलें आज हम सब हिलमिलकर,
धरणी के आरती थाल में,
अंबर के शत दीप सजाकर, भक्ति - ज्योति के मनः ज्वाल में
अंतर का तम-तोम मिटाकर, भक्ति-सुधा कर निर्मल तन मन ! 'मानव मानव सम' व्रत लेकर, सफल करें गुरु का अभिनंदन !! श्री गुरुचरणों के शुचितल में कोटि-कोटि जन का अभिनंदन !!
विजय वल्लभ
संस्मरण संकलन स्मारिका
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कला कुमार
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