Book Title: Vijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Author(s): Pushpadanta Jain, Others
Publisher: Akhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti

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Page 235
________________ गुरुकुल-गुजरांवाला सरस्वती मंदिरों की स्थापना गुरुदेव के जीवन का परम लक्ष्य था जैन श्रमण परंपरा में शिक्षण संस्थाओं की स्थापना के प्रति इतना प्रबल और महान आग्रही संत दूसरा दिखाई नहीं देता। गुजरांवाला का गुरुकुल, विद्या के प्रति उनकी निष्ठा और आस्था का प्रमाण है। एक समय ऐसा था जब उसकी स्थापना के लिये सारा जैन समाज आंदोलित हो उठा था। गुरु भक्त अपने बच्चे गर्व से गुरुकुल में दाखिल कराने लगे। गुरुकुल के सुप्रबंध के लिये योग्य धर्मनिष्ठ गुरुभक्त और कर्त्तव्य पारायण लोगों की आवश्यकता थी। गुरुदेव चाहते थे कि सभी कार्यों के लिये जैन धर्मानुयायी ही गुरुकुल में नियुक्त किये जायें। हमारे पिता बाबू दीनानाथ जी के हृदय में गुरुकुल की सेवा करने की प्रबल भावना थी किन्तु उनके दिल में लोकाचार की एक ऐसी दुविधा थी जिसके वशीभूत वे अंतिम फैसला नहीं कर पा रहे थे। गुरु महाराज को उनकी प्रतिमा व कार्यकुशलता पर पूरा भरोसा था। वे उनके मन की दुविधा भी समझते थे जैसे सूर्य के निकलते ही सारा अंधकार दूर भाग जाता है, ठीक उसी प्रकार एक दिन बाबू दीनानाथ जी को गुरुदेव का पत्र मिला। गुरुदेव ने लिखा था 'सेवा की भावना हो तो फिर दुनिया के तानों मानों से क्या डरना' बाबू जी के मन के सब संशय दूर हो गये। उस समय वे दिल्ली में रहते थे फौरन गुजरांवाला पहुंच कर गुरुकुल का कार्यभार संभाल लिया। दिल से गुरुदेव के आदेश की अनुमोदना की। यहां तक कि अपने बड़े बेटे देवराज को गुरुकुल में दाखिल करवाया मेरी स्वयं की शिक्षा भी गुरुकुल में हुई। गुरुकुल की शिक्षा में दीक्षित होकर हमारे बड़े भाई लाला देवराज जी ने संघ और समाज की जो अभूतपूर्व सेवा की, दुनिया उसे जानती है। रूपनगर श्रीसंघ के वे प्राण थे। इतने दूरदर्शी थे कि उनकी बहुत सी बातें बरसों बाद सत्य प्रमाणित हुईं। आज देशभर में गुरुदेव की 50वीं स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी मनायी जा रही है। सन् 1954 में उनका देवलोक गमन हुआ था। आज इस घटना को बीते 50 वर्ष हो गये हैं वो हम सब को जगा कर सो गए। बीते 50 वर्ष वास्तव में हमारे जागरण के 50 वर्ष के समान हैं। महापुरुषों का जीवन जिस प्रकार प्रेरणादायी होता है उसी प्रकार उनका निर्वाण भी आत्मा को जागृत करने वाला होता है। अनंत कृपालु तीर्थकर परमात्मा महावीर के निर्वाण से ही उनके परम शिष्य गौतम को आत्म जागृति प्राप्त हुई थी अन्यथा वे प्रभु के मोहजाल में ही उलझे हुए थे। हमें आवश्यकता है चिन्तन करने की, स्वाध्याय करने की, स्मरण करने की। क्योंकि स्मरण से ही जागरण फलित होता है और बिना जागे मुक्ति संभव नहीं । धनराज जैन, रूप नगर, दिल्ली पूज्य गुरु वल्लभ की निश्रा में गुरुकुल गुजरांवाला का दृश्य (फोटो सौजन्य जैन कलर लैब) : विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका 233

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