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चतुर्विध संघ को धर्म के मार्ग पर अग्रसर करते हैं। एक बार गौतम स्वामी ने परमात्मा से प्रश्न किया कि भगवान आपके निर्वाण पश्चात् संघ को कौन चलायेंगे, तब भगवान ने उत्तर दिया कि शासन की व्यवस्था चलाने के लिए प्रथम पट्टधर सुधर्मा स्वामी होंगे और अंतिम आचार्य दुष्पसह सूरि होंगे। सुधर्मा स्वामी से दुप्पसह सूरि तक 2004 आचार्य होंगे जो जिनशासन की व्यवस्था को चलायेंगे। इस प्रकार संघ का प्रतिनिधित्व आचार्य भगवंतों द्वारा होता रहेगा। ऐसे ही एक आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरि जी महाराज हुए हैं, जिनके सान्निध्य में सभी ने ठण्डी छाया प्राप्त की। उनकी स्मृतियां अभी भी तरोताज़ा हैं ऐसे सन्त विजय वल्लभ सूरि जी महाराज के श्री चरणों में अपनी भावांजलि अर्पित करती हूं। आज का युग चकाचौंध से भरा हुआ है। समाज भौतिकवाद में फंसता जा रहा है। इस भौतिकवादी चकाचौंध से बचकर जो आध्यात्मिकता का मार्ग पकड़े हुए हैं, ऐसे महापुरुषों में गुरु विजय वल्लभ सूरि जी महाराज का नाम आता है और वर्तमान में प.पू. विजय रत्नाकर सूरि जी महाराज विराजमान हैं। हवा के अनुकूल सभी चलते हैं, प्रतिकूल चलने वाला ही महान् होता है। ऐसे ही महान् आचार्यों के श्री चरणों में संघ फलता-फूलता रहे, इन्हीं कामनाओं के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूँ।"
श्री गुलशन जैन चण्डीगढ़ वालों ने गुरु वल्लभ पर भजन प्रस्तुत किया।
पुरस्कृत
श्री आनन्द कुमार जैन महामंत्री अम्बाला श्रीसंघ ने "गुरु वल्लभ हमारे तारणहार” विषय पर विशेष वक्तव्य देते हुए कहा कि गुरु वल्लभ संघ तथा हमारे ही प्रतियोगी नहीं बल्कि पूरे संसार के तारणहार है आनन्द जी ने गुरु वल्लभ की अलौकिक शक्ति को गुरु रत्नाकर सूरि जी में बताया। तत्पश्चात् श्री सुशील जैन जी मोही वालों द्वारा प्रस्तुत भजन के बोल “वल्लभ गुरु तेरी शान ओए, तेरी शान तो जग कुर्बान ओए" तथा श्री अनिल नाहर जी ने शिक्षा के प्रखर प्रणेता के रूप में गुरु जी का गुणानुवाद किया। श्री शंका जी सादड़ी हॉल मुम्बई वालों ने भजन प्रस्तुत किया।
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गच्छाधिपति जी का प्रवचन
भाग्यशालियो! 50 वर्ष निकल गये, गुरुवर ने कितने उपकार किये, यह समय मिला सोचने का, समझने का है। अपने जीवन के अन्दर झांक कर देखना हमने गुरुवर की कौन सी शिक्षा को जीवन में अपनाया ? गुरु वल्लभ का जीवन अद्वितीय है। गुरुवर ने अपने जीवन में सभी कार्य साधुता में रहकर किये। हमें उनके बताये संयम मार्ग को सुदृढ़ बनाना है। हमने संयम ग्रहण किया, संयम ग्रहण करने का लक्ष्य मोक्ष होना चाहिए। गुरुवर के जीवन में दृढ़ता माता श्री जी के द्वारा दिये गये संस्कारों से आये ईंट पक्की न हो तो मकान डांवाडोल होता है। गुरु वल्लभ का जीवन देखने से 'सुहगुरु जोगो' पहले गुरु, माता पिता को अपनी चमड़ी उतारकर जूता बनाकर पांव में पहना दो, घिस जाये तो भी माता-पिता का ऋण नहीं चुकाया जा सकता। साधु उपदेश देते हैं, आचरण ही साधु का उपदेश होता है। वल्लभ गुरु का जीवन संस्कार से बना यह संस्कार माता-पिता से मिले 100 शिक्षकों की जरूरत एक माता पूर्ण कर देती है। आर्य रक्षित सूरि माता के कहने से तोसली आचार्य के पास दृष्टिवाद पूर्व पढ़ने के लिये गये। इसके लिए उन्हें साधु बनना पडा, साधु बने तो ऐसे बने कि संयम मार्ग पर चलते-चलते आचार्य पदवी को प्राप्त कर लिया। ऐसी आचार्य पदवी जिसका व्याख्यान सुनने के लिए देवता भी आते थे। गुरु वल्लभ का वास्तविक गुणगान तभी पूर्ण होगा, जब हम अपनी सन्तानों को सम्यक् ज्ञान देंगे। पंजाब में भोग विलास ज्यादा है। धन को कमाने में और खर्च में, वितासता में समय व्यतीत करते अपना तो समय निकल गया पर अभी भी संभल सकते हैं अपने बच्चों को सम्यक् ज्ञान देकर मन्दिर जाओ तो परमात्मा का ज्ञान, गुरु के पास जाओ तो गुरु का ज्ञान। 25 वर्ष तक बचपन, 50 वर्ष तक गधा पच्ची,
पर धर्म में बताया जाता है कैसे जीवन जीना ? अगर ज्ञान नहीं तो क्या करोगे ? ज्ञान 5
विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका
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विभिन्न प्रतियोगिताओं में
पूज्य गुरुदेव एवं श्रमणवृंद
होगा तो 50 से ऊपर प्रभु पूजा करना, सामायिक प्रतिक्रमण करना, प्रभु का स्मरण करना यह सभी कार्य ज्ञान की जानकारी से होते हैं। मैंने पहले भी कहा था अब भी कहता हूं मैं आया हूं देने के लिए, अभी कुछ सुधार हुआ। संक्रान्ति पूर्व संध्या पर प्रतिक्रमण करने वालों की संख्या बढ़ी परन्तु बहुत कम है, हम संतुष्ट नहीं हैं। अम्बाला में गुरुकुल की स्थापना की। प्रत्येक बच्चा ज्ञान प्राप्त कर सके परंतु 'दीपक तले अंधेरा' । अम्बाला के विद्यार्थी गुरुकुल में नहीं हैं। आज के दिन संकल्प करें गुरुकुल में रखकर बच्चों को ज्ञान दिया जाये तो कितना लाभ हो । मत-मतान्तर के अन्दर समय व्यर्थ बर्बाद नहीं करना आज महावीर जैन विद्यालय की 10 शाखाएं हैं, जो ज्ञान दे रही हैं। आज सोचना है कि सम्यक ज्ञान कैसे
परिया
Fabr
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