Book Title: Vijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Author(s): Pushpadanta Jain, Others
Publisher: Akhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti

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Page 236
________________ जैन समाज में संक्रान्ति नाम को प्रकाश करने का । प्रारम्भिक इतिहास रघुवीर कुमार जैन ला. रघुवीर जी जालन्धर वाले उन विरले श्रावकों में से एक हैं, जिन्होंने गुरु वल्लभ से लेकर वर्तमान आचार्य भगवन्त गच्छाधिपति जी तक सभी गुरु भगवन्तों के मुखारविंद से लगातार संक्रान्ति नाम श्रवण किया है। सम्पादक महोदय की विनती पर संक्रान्ति नाम कैसे, क्यों और कब प्रारम्भ हुआ, श्री रघुवीर जी ने लेख के द्वारा पूर्ण जानकारी प्रस्तुत की है, जिसे उन्हीं के शब्दों में प्रकाशित किया जा रहा है। पंजाब केसरी, कलिकाल कल्पतरु, अज्ञान तिमिर तरणि जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज ने अपने दादा गुरु जैनाचार्य श्रीमद् विजयानन्द सूरीश्वर जी महाराज की भावनानुरूप आदेश को शिरोधार्य कर अपनी दिव्य दृष्टि से भांप कर कई समाजोद्धार एवं समाज उत्थान के लिये महत्वपूर्ण उपकार किये। उन उपकारों की श्रृंखला में संक्रान्ति प्रथा को आरम्भ कर, समाज के लिये एक बहुमुखी उपकार किया। संक्रांति प्रथा सन् 1940 में गुजरांवाला (पाकिस्तान) में ला. छोटे लाल जी मालिक फर्म ला. माणेक चन्द छोटे लाल जी की प्रार्थना पर आरम्भ हुई। उस संक्रान्ति दिवस पर ला. छोटे लाल जी (रघुवीर कुमार के पिता श्री जी) अकेले ही गुरुदेव से संक्रान्ति सुनने वाले थे। आज यह संक्रान्ति उत्सव, संक्रान्ति महोत्सव बन गया है, जिसका इंतजार हर महीने रहता है। उस दिन समाज के अधिकांश जन व्याख्यान सभा में न बैठकर संक्रान्ति के दिन (नये महीने के पहले दिन) पण्डितों के पास अपने महीने के भविष्य को जानने के लिये गये हुए थे। 1. पहला लाभ : पंजाब केसरी आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज ने देखा कि जैन समाज अपने धर्म को भूल कर मिथ्यात्व की तरफ मुड़ रही है, तो गुरुदेव ने समाज को समझाया कि आप पण्डितों के पास क्यों जाते हैं, मैं आपको हर महीने, संक्रान्ति के दिन अपने धार्मिक स्तोत्रों को सुनाकर संक्रान्ति सुनाया करूंगा, जिससे आपको आत्मिक शान्ति मिलेगी और धार्मिक स्तोत्र सुन के आपका सम्यकत्व भी परिपक्व होगा। तब से संक्रान्ति आरम्भ हई। सबसे पहला और बड़ा लाभ समाज को मिथ्यात्व की तरफ मुड़ने से रोका। 2. दूसरा लाभ : पंजाब में अपने समुदाय के श्रमण मण्डल का आगमन बहुत कम था। गुरुदेवों के दर्शन कर पाना, जिनवाणी का श्रवण कर पाना, भाग्य के जागने वाला रहस्य समझा जाता था। जब कोई श्रावक कभी तीर्थ यात्रा पर जाता, रास्ते में गुरु महाराज मिल जाते तो दर्शन कर लेता था। लेकिन इस संक्रान्ति प्रथा आरम्भ होने से, चाह रखने वाला श्रावक हर महीने पट्ट पर सुशोभित गच्छाधिपति जी के दर्शन भी कर सकता है और उनके मुखारविंद से जिनवाणी सुनकर आत्म-कल्याण भी कर सकता 3. तीसरा लाभ : दूसरे भिन्न-भिन्न प्रांतों से पधारने वाले संक्रान्ति भक्तों के साथ मेल मिलाप बढ़ता है, परिचय बढ़ता है, विचारों का आदान-प्रदान होता है और अगर संघों में फैल रही भ्रांतियां हों, तो एक-दूसरे के सुझावों से दूर करने का प्रयास किया जा सकता है, इसके अलावा एक ऐतिहासिक चित्र : प.पू. पंजाब केसरी गुरु वल्लभ की निश्रा में आयोजित भव्य समारोह, संक्रान्ति प्रणेता श्री छोटे लाल जी सबसे आगे बैठे दिखाई दे रहे हैं (फोटो सौजन्य: जैन कलर लैब) 234 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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