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प.पू. गुरुवर विजय वल्लभ सूरि जी महाराज की निर्वाण अर्द्धशताब्दी के उपलक्ष्य में वर्तमान गच्छाधिपति जी के गुरुकुल के सम्बन्ध में उनके
मुखारविंद से निकले कुछ शब्द :
आत्म गुरुवर के शिष्य श्री लक्ष्मी सूरीश्वर जी महाराज सा., शिष्य मुनि हर्ष विजय के परम विनयी शिष्य रत्न प.पू. जैनाचार्य पंजाब केसरी श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. ने मुम्बई नगर में कालधर्म प्राप्त किया, अब आगामी वर्ष काल में अर्द्धशताब्दी आ रही है। पचास साल पूर्ण होने की तैयारी हैं। अतः उन परमोपकारी गुरुदेव की निर्वाण अर्द्धशताब्दी मनाना है। उन महापुरुष के महान आदर्शों को लक्ष्य में रख कर सोचने का है। आत्म गुरु दादा गुरुवर की परम हितकारी शिक्षा शिरोधार्य करके जनहित कार्यों में लगें एवं अष्टान्हिका प्रवचन का माध्यम लेकर साधर्मी लक्ष्य में रखते हुए वल्लभ गुरुवर ने शिक्षा माध्यम मुख्य रखा। गुरुदेव दूरद्रष्टा थे। व्यावहारिक ज्ञान के साथ-साथ धार्मिक ज्ञान की महत्ता भी उन्होंने रखी। पंजाब, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र आदि स्थानों में ज्ञान की ज्वलन्त ज्योति जला कर आत्म गुरुवर के आदेश को साकार करते हुए गुरुकुल, स्कूल, कॉलेज, महावीर जैन विद्यालय आदि में व्यावहारिक एवं धार्मिक ज्ञान की व्यवस्था रखी गई। इन संस्थानों की व्यवस्था समितियां बदलती रहीं। उसमें उनकी सूझबूझ का प्रभाव पड़ता रहा। धार्मिक ज्ञान विहीन ट्रस्टीगण स्वयं खाली थे तो दूसरों को क्या देते?यही स्थिति चलते हुए कई संस्थाओं में सिर्फ व्यावहारिक ज्ञान ही रहा।
अब मेरी भावना है कि उन महापुरुष की भावना को देखते हुए आज की विषम परिस्थितियों में यदि हमारी संतानों को देव-गुरु और धर्म का ज्ञान । नहीं दिया जाएगा, तो आगामी समय कैसा आयेगा? आज के जैनों की परिस्थिति यह है कि नवकार मंत्र ही जानकर रह रहे हैं। धर्म ज्ञान की रूचि दिनों-दिन लुप्त होती जा रही है। आज भी पंजाब में गुजरांवाला गुरुकुल को याद करते वहां से शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों में कुछ धार्मिक ज्ञान की मात्रा दिखाई पड़ रही है। ऐसे तो हरेक गांव में धार्मिक पाठशाला चलाई जा रही है। अनपढ़ माता पिता को धार्मिक ज्ञान की इतनी उपयोगिता समझ में नहीं आती, इसलिए अपनी संतानों को धार्मिक ज्ञान नहीं दे पाते। इन परिस्थितियों में अब समय की मांग है-जागो-जागो ! इधर गुरुकुलों की स्थापना होनी चाहिए। मेरा समाज से अनुरोध है कि यदि अपनी संतानों का भविष्य अच्छा बनाना होवे तो गुरुकुलों की स्थापना करें। उसमें तन-मन-धन से सहयोग देवें।। विशेषकर समाज के उच्च वर्ग इस सुअवसर अर्द्धशताब्दी पर गुरुकुल की स्थापना भी कर देंगे। लेकिन उसमें पढ़ने वाले नहीं आयेंगे तो क्या होगा? समाज के जन-जन को मेरा अनुरोध है कि अपनी संतान को गुरुकुलों में रखकर व्यावहारिक ज्ञान के साथ-साथ धार्मिक ज्ञान देकर श्रावक बनाया जाये। यह मेरी आन्तरिक भावना है।
यह परमोपकारी गुरुदेव की अर्द्धशताब्दी तो बड़े प्रेम से मनायेंगे। भाषण, गीत-गायन से और भी अन्तरंग अनुष्ठानों से मनाएंगे, यह उपकारी गुरुवर के प्रति हमारी श्रद्धा होगी लेकिन उनके आदर्श कार्यों को तेजी मिले, ऐसी प्रवृत्ति मन में लाओगे तो सही है, अपनी संतानों को जैनत्व के संस्कारों से युक्त बनाओगे, तो स्वर्गीय गुरुओं को भी बड़ी प्रसन्नता होगी और वे आशीर्वाद देंगे। आओ, हम सभी मिलकर आदर्श गुरु के आदर्श कामों को करने के लिए कटिबद्ध होकर कार्य करें और कार्य को साकार रूप प्रदान करें।
मेरा पिछला चौमासा लुधियाना में था। उसी वक्त जैन धार्मिक पाठशाला का आयोजन धार्मिक शिक्षा के पदाधिकारियों की ओर से शिक्षा दाता माघीशाह द्वारा किया गया था। उसमें अपने व्याख्यान में संकेत दिया था कि आगामी समय में वल्लभ गुरुवर की अर्द्धशताब्दी आ रही है। प्रमुख उद्योगपति जवाहर लाल ओसवाल भी मौजूद थे। गुरुदेव की अर्द्धशताब्दी शिक्षा के अनुरूप मनानी, श्री आत्म वल्लभ श्रमणोपासक गुरुकुल की स्थापना और वल्लभ गुरु की झांकी आदि के निर्देश को स्वीकार करने के सहयोग रूप में सभी ने गुरुदेव की जय जयकार के साथ बधाई दी थी। यही देखते हुए आज अम्बाला नगर में अगस्त की संक्रान्ति पर वल्लभ गुरुदेव की अर्द्धशताब्दी 'क्षमापना-बड़ी संक्रान्ति' से साल भर के लिए शुभारम्भ हो जायेगा।
साथ-साथ में अम्बाला नगर में आत्म वल्लभ श्रमणोपासक गुरुकुल की स्थापना होगी। पांचवीं एवं छठी कक्षा से गुरुकुल में प्रवेश किया जायेगा। पांच साल के बच्चों को रहने का, पांच साल में उसको व्यावहारिक शिक्षा, सहश्रावक को उचित धार्मिक ज्ञान, पंच प्रतिक्रमण, जीव विचार, नवतत्त्व अंग पूजा, अग्र पूजा, द्रव्य पूजा, भाव पूजा आदि विविध प्रकार की पूजा सम्बन्धी जानकारी दी जायेगी। साथ ही चौमासी संवत्सरी प्रतिक्रमण, पर्युषण, व्याख्यान माला, यहां तक विद्यार्थी को योग्यता दिलाई जाएगी।
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विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका
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