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जनकल्याण के कार्यों पर विस्तृत रूप से जानकारी दी। गुरुभक्त श्री गौतम चन्द तारा चन्द जी ने भी गुरुवर का गुणगान किया। गणिवर्य श्री सूर्योदय विजय जी ने गुरुदेव की महानता तथा संघ के प्रति किए गए कार्यों को बताया ; उनका महान उपकार माना। गणिवर्य के मंगलपाठ के बाद सभा विसर्जित हुई। श्री छोटे पुखराज ने सभा का संचालन किया।
ईरोड में गुरुभक्ति के अद्भुत नज़ारे
दिनांक 14.03.2004 प्रातः 9 बजे विजय वल्लभ रथयात्रा का बैंड-बाज के साथ स्वगात किया गया, ईरोड के
विभिन्न बाज़ारों से गुज़रता हुआ रथ आगे बढ़ रहा था। पूज्य साध्वी सुमिता श्री जी आदि ठाणा-6 तथा पूरा श्रीसंघ रथ के साथ चल रहा था। श्रावक-श्राविकाएं झूमते-नाचते-गाते गुरु वल्लभ की रथयात्रा निकालते अपने को धन्य मान रहे थे।
“जगत आज सारा, गुण तेरे गाता गुरु प्यारे वल्लभ, गुरु प्यारे वल्लभ। दिशाओं में फैला गुरु यश तुम्हारा गुरु प्यारे वल्लभ, गुरु प्यारे वल्लभ।।
महिमा के सागर गुरु थे हमारे।
भक्तों के गुरुवर बड़े थे सहारे।
युगों तक रहोगे अमर विश्व में तुम गुरु प्यारे वल्लभ।" रथयात्रा के पश्चात् श्री चन्द्रप्रभु जिन मन्दिर के पास गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया। पूज्य साध्वी सुमिता श्री जी, जो पूज्या साध्वी सुमति श्री जी की सुशिष्या हैं, के मंगलाचरण उच्चारण के साथ गुणानुवाद सभा का शुभारम्भ हुआ। अध्यक्ष श्री सन्तोष जी खाटेर, सुश्रावक श्री रमेश चन्द जी बाफना ने गुरुदेव की यशोगाथा का गुणगान किया। श्री नवीन कुमार जी बोथरा ने मधुर भजन के द्वारा अपने भावों की अभिव्यक्ति की। श्री पद्म कुमार जी ने अर्द्धशताब्दी महोत्सव के कार्यक्रमों की जानकारी दी। पूज्या साध्वी श्री जी ने गुरु वल्लभ के जीवन पर प्रकाश डाला और अन्त में संक्रान्ति नाम का प्रकाश किया। मंगल पाठ, गुरुदेव के गगनभेदी जयकारों के साथ सभा विसर्जित हुई। गुरु प्रतिमा की वासक्षेप पूजा तथा माल्यार्पण बोली द्वारा करवाया गया।
"मैं न जैन हूँ न बौद्ध हूँ, न वैष्णव हूँ, न शैव; न हिन्दू हूँ, न मुसलमान। मैं तो वीतराग परमात्मा को खोजने के मार्ग पर चलने वाला मानव हूँ, यात्री हूँ।"
- विजय वल्लभ सूरि
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विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका
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