Book Title: Vijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Author(s): Pushpadanta Jain, Others
Publisher: Akhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti

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Page 183
________________ वसन्त राग, भैरवी, जयजयवन्ती, कलिंगड़ा एवं मालकोश आदि रागों में रचना की गई। जिन पूजा प्रतिस्पर्धा के अन्तर्गत गुरु वल्लभ द्वारा रचित विविध प्रकारी पूजा, जिसमें तीर्थंकर परमात्मा की पंच कल्याणक पूजा, तीर्थ वन्दना पूजा, ऋषि मण्डल पूजा, गणधर पूजा, चउदराजलोक पूजा, पंच ज्ञान पूजा, चारित्र पूजा आदि । चारित्र पूजा, जिसके विशेष अंक रखे गये थे जिसे पढ़कर विशेष पूजा नाम सार्थक हुआ। चारित्र पूजा में ब्रह्मचर्य को शारीरिक, मानसिक, अध्यात्मिक शक्तियों के विकास का साधन माना गया है। ब्रह्मचर्य एक ऐसी साधना है, जिससे शरीर और आत्मा दोनों शक्तिशाली बनते हैं। ब्रह्मचर्य बाह्य जगत में हमारे शरीर को ठीक रखता है, अन्तर्जगत में हमारे मन और विचारों को पवित्र रखता है। यदि शरीर का केन्द्र मजबूत रहेगा तो आत्मा भी अपनी साधना में दृढ़ता के साथ तत्पर रह सकेगी। ब्रह्मचर्य की साधना जितनी उच्च और पवित्र है, उतनी ही उसकी साधना में सावधानी की आवश्यकता है। इसलिए शास्त्रकारों ने ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए नौ वाढ़ (मर्यादाएं) बतलाई हैं। श्री वल्लभ सूरि महाराज जी ने चारित्र पूजा काव्य में बताया है कि ज्ञानवान यदि चारित्रहीन है तो लंगड़ा है। वह अपने इष्ट लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता। जिन बहन-भाईयों ने इस पूजा को दिल से सीखा, पढ़ा और सुना है वह तो इतने अचम्भित हुए काव्य संग्रह को अपनी-अपनी कला से लोगों कि प.पू. गुरुदेव विजय वल्लभ सूरि जी ने तक पहुंचाया गया, जिनकी धुनें अब प्रायः कर हमारे पर इतना बड़ा उपकार किया है, मन्दिरों में, प्रतिक्रमणों में यहां तक कि यदि कैसे-कैसे सरल भाषा में दुर्लभ ज्ञान भर दिया, अपने-अपने मण्डल में भी कुछ बोलने का अवसर मिला, तो गुरु वल्लभ के गुणगान ही पूजा का चिन्तन-मनन करते हुए प्रभु पथ के मिला। अर्द्धशताब्दी वर्ष मानो वल्लभमय बना सच्चे राही बनें। हुआ वर्ष मिला। यदि ऐसे ही हम अपने पूर्वज भाषण एवं निबन्ध प्रतिस्पर्धा : परमोपकारी गुरुओं के प्रति जनता को जागृत जिस गुरु ने काव्य रचना द्वारा विविध कराते रहेंगे, तो वह दिन दूर नहीं होगा, जिसे पूजाओं द्वारा अपने प्रवचनों द्वारा, अन्य गुरु वल्लभ ने जन मानस की भलाई के लिए साहित्य द्वारा आत्मा को परमात्मा बनाने का सुन्दर दोहा रचा था :मार्ग दिया है। जिह्वा से ऐसे महान् आचार्य ___“जो चाहो शुभ भाव से निज आत्म राष्ट्रसंत, क्रान्तिकारी, युग प्रधान, भारतीय कल्याण, संस्कृति के महान् ज्योतिर्धर मानवता की ___तीन सुधारें प्रेम से खान-पान-परिहान। साकार प्रतिमा, महान विभूति का गुणगान इस पावन वर्ष को मनाने के प्रेरक करना सूर्य को दीपक दिखाने तुल्य है। ऐसे ___ आचार्य भगवन् श्री रत्नाकर सूरीश्वर जी महान् गुरु का स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष महाराज जी का हार्दिक आभार मानती हूं, महोत्सव पर मैं श्रद्धा सुमन अर्पित करती हुई जिन्होंने हमें जागृत कर गुरुदेव से साक्षात् कोटिशः वन्दन करती हूं। मिलन करवाया। आज स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष को समापन समारोह के रूप में मनाने की तैयारी कर रहे हैं। इस वर्ष भर के समय में समाज को बहुत कुछ सीखने को मिला। जिसने भी प्रतियोगिताओं में भाग लिया। उन्होंने प.पू. गुरुदेव विजय वल्लभ सूरि जी महाराज के जीवन को बार-बार पढ़ा एवं समझा। प्रत्येक व्यक्ति ने सोचा कि मैं जो बोलूं वह ही सबको प्रिय लगे। इसके अतिरिक्त गुरुदेव द्वारा रचित जब तक सूरज चाँद रहेगा। वल्लभ तेरा नाम रहेगा। विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 181 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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