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श्री मद् विजय बल्लभ सूरि
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स्वर्णहर वर्ष
गुरु वल्लभ के उपकार अगणित थे। सभी धर्मों के लिए आदरभाव था, एकता देश प्रेम और संयम का पाठ पढ़ाया। मध्यम वर्ग के उत्थान के लिये जीवन पर्यन्त प्रयास किये।
“जितना नाम वल्लभ, उतना काम वल्लभ"
अगर आप सुखी बनना चाहते हो तो दूसरों को भी सुखी बनाओ। प्रथम अपने जीवन में वल्लभ बनो।
"वह कौन-सा फूल है, जिसमें तेरी सुवास न हो, वह कौन सा दीप है, जिसमें तेरा प्रकाश न हो।
ज़मीं का मानव गाता है तेरी गौरव गाथा,
वह कौन-सा पन्ना है, जिसमें तेरा इतिहास न हो।"
हमारे श्रीसंघ के बल्लभ, विश्व के वल्लभ वि.सं. 2011 आश्विन कृष्णा दशमी मंगलवार की रात को स्वर्गवास गुरु समुद्र सोचते ही रह गये कि कल तो कहते थे बिस्तर से उठा नहीं जाता और आज दुनिया से चले जाने की ताकत आ गई। आकाशवाणी से समाचार में यही प्रसारित किया गया कि
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"आज भारत देश ने जैन समाज का एक प्रमुख संत एवं प्रख्यात शिक्षा शास्त्री खो दिया है।" "गुरु वल्लभ एक ऐसी महान विभूति थे हीरे असंख्य होते रहें, कोहिनूर दुर्लभ एक है, आचार्य साधु अनेक पर युगवीर वल्लभ एक है। आज वर्तमान में रत्नाकर हमारे ताज है, जिस पर हमें नाज़ है।
युग युग तक आपका ही शासन चले, यह समस्त संघों की आवाज है।"
विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका
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