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श्री मद् विजय बल्लम सूरि ।
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भारत-पाक के विभाजन के समय आपका चातुर्मास गुजरांवाला में था। संपूर्ण देश में आतंक का वातावरण था, ऐसे विषम काल में गुजरात, राजस्थान, बम्बई पधारने के लिये समाचार आये, फिर भी युगवीर वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज ने उद्घोषणा की कि जब तक संपूर्ण जैन समाज पाकिस्तान से निकल कर सकुशल भारत नहीं पहुँचेगा तब तक में पाकिस्तान से भारत नहीं जाऊँगा। महान् आचार्य के पुण्य प्रभाव से कुर्बानी से संपूर्ण जैन-समाज भारत पहुँचा।
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स्वमरोहण व
भारत दिवाकर, युगदृष्टा, पंजाब केसरी श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज 1981 में लाहौर में आचार्य और पट्टविभूषक के रूप में घोषित हुए। आप अहिंसा-रत्नत्रयी के साधक थे। प्रवचन के माध्यम से आप आत्मलक्षी बने। बिना ज्ञान के क्रिया की कोई महत्ता नहीं है। षट्दर्शनों का अध्ययन किया। आपने राष्ट्र और समाज को नयी दृष्टि दी। इस नवीन दृष्टि से आधुनिक युग में नवचेतना का संचार हुआ। समस्त जैन समाज में संगठन हो। हम एकता के सूत्र में रहकर आगे बढ़ते रहे। आपने एक बार जनता को प्रेरणा दी थी और कहा था “मैं चाहता हूँ कि साम्प्रदायिकता दूर हो, समस्त जैन समाज भगवान महावीर के झंडे के नीचे एकत्रित हो, हमारे राष्ट्र का संगठन मजबूत हो भारत में स्वतंत्रता तभी स्थिर रह सकती है, जब कि जैन, बौद्ध, हिन्दु, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, पारसी आदि समस्त धर्मावलम्बी एक हों हम सभी एक है अतः हम सच्चे मानव बनकर सत्य अहिंसा के पुजारी बनें। आप अपने जीवन में स्वदेशी वस्त्र और खादी का उपयोग करते थे। आपकी ओजस्वी वाणी से प्रभावित होकर राष्ट्रीय नेता श्री मोती लाल नेहरू ने आजीवन सिगरेट का परित्याग किया था।
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'विष और अमृत, दोनों एक ही समंदर में हैं, शंकर और कंकर, दोनों एक ही कंदरे में हैं। चुनाव का ज़माना है, चुनाव कर लो जी, प्रभु और पशु दोनों तुम्हारे ही अंदर में है।"
आप एक महान् क्रान्तिकारी युगदृष्टा के रूप में जाने जाते हैं। आप श्री ने युगानुरूप संदेश दिया। इतिहास इस बात का साक्षी है कि विश्व के विभिन्न देशों में हिंसात्मक क्रान्तियाँ हुई लेकिन विश्वशांति तो अहिंसात्मक क्रान्ति से ही सम्भव है। युगवीर वल्लभ ने अपने विविध प्रवचनों और काव्य-विद्याओं के माध्यम से विश्वशांति का संदेश दिया। “सेवा मार्ग पर चलने के पहले अपने स्वार्थ का त्याग करो। समाज और राष्ट्र की सेवा प्रभु सेवा के समान है, अतः निःस्वार्थ भावना परिवेश पहनकर मंदिर में जाओ। स्व-जीवन सफल बनाओ।" विश्वशांति के अभिलाषी ने अपना जीवन एवं हर करुणा देश को अर्पण की नारी उत्थान का, आपने जो इतिहास रचा वह शाश्वत है। अनेक लोगों को जैन बनाकर शाश्वत सिद्धांत रखे। आपने विभाजन के समय अहिंसा का ध्वज फहराया। हमारे प्रति बच्चों में ज्ञान-प्रकाश की ज्योति जलाई। पंजाबियों के प्राणाधार थे। समाज को सत्य मार्ग दर्शन दिया। जैन धर्म को विश्वव्यापी बनाया।
वर्तमान वर्ष को हम अर्द्धशताब्दी वर्ष के रूप में मना रहे हैं। बाल छगन को वल्लभ से विश्व वल्लभ बनाया गया। तुम्हारी यादों का उजाला हमारे साथ है। दीन-हीन के प्रति दया की भावना उनकी एक महानता थी। पीड़ितों के लिये फंड इकठ्ठा करवाना, बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय के लिए सहायता देना, हरिजनों के लिये ग्राम विनीली मेरठ में कुआं बनवाना, जैसे अनगिनत कार्य उन्होंने किए, अनेक मंदिरों की प्रतिष्ठा की गुजरांवाला में आतंक, पंजाबियों के जीवन उद्धार के लिये, आपने कमाल दिखा दिया।
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विजय वल्लभ
संस्मरण-संकलन स्मारिका
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