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करुणा सागर
विजय वल्लभ
मुनि ऋषभ चन्द्र विजय
पृथ्वी की गहराई में छुपे हुए बीज को देखकर कोई कैसे कहे कि भला कैसे छुपी रह सकती है ? सूर्य का तेज भला प्रकट हुए बिना कैसे रह यह सुविशाल वटवृक्ष की प्रारंभिक अवस्था है ? परन्तु वक्त बीतने के साथ सकता हैं ? पूज्यपाद के गुणों की सुगन्ध, ज्ञान दर्शन-चारित्र का तेज सर्व उचित पोषण मिलने से वही बीज घटादार वटवृक्ष बन जाता है। दिशाओं में प्रसारित हो गया। आजकल टू इन वन, थ्री इन वन की मशीनें
कई थके-हारे राहगीरों का विश्राम-स्थल/कई पंखीयों का आश्रय देखी हैं, परन्तु आँल इन वन देखना हो, तो एक यह महापुरुष थे। गुरु स्थल। बीज मिटकर बन गया अनेकों का छाँहदाता बरगद। करीब 134 कृपा के सहारे सफलता के शिखर पर चढ़ते गये और पंजाब केसरी, वर्ष पूर्व बड़ौदा की घड़ियाली पोल में दीपचंद भाई का आँगन, जब नये । युगदृष्टा आचार्यदेव श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. बनकर अनेक शिशु की किलकारियों से गूंज उठा, तब किसे पता था कि ये किलकारियाँ जीवों पर उपकारों की अभिवृष्टि की व हजारों-लाखों दिलों में बस गये। ही आगे चलकर हजारों-लाखों दिलों में वैराग्य की सुर-लहरियाँ बनकर गुरु के प्रति समर्पण भाव, गुरु के प्रति अनन्य निष्ठा, वफादारी गूंज उठेगी?उस वक्त किसी ने शायद ही कल्पना भी न की होगी कि माता और संयम की सुविशुद्धता ये तत्त्व चारित्र जीवन में प्रगति के लिए मील के इच्छा बाई की गोदी में हंसता-खेलता नन्हा सा राजदुलारा जैन शासन का पत्थर साबित होते हैं। 'गुरु' एक अत्यन्त महान हस्ती है और साधक के एक महान सितारा बनेगा। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि अपनी जीवन में गुरु के बिना कभी सफलता नहीं आती। गुरु के प्रति समर्पण मीठी-मीठी बातों से सबका मन लुभाने वाला छोटा सा बालक भविष्य में भाव हो, तो गुरु कृपा अवश्य मिलती है। साधक में जिस भी सद्गुण का अनेकों का तारक व उद्धारक बनेगा। किसी को स्वप्न में भी यह ख्याल न विकास हो, जो कुछ भी प्रशंसनीय हो, उसके पीछे मुख्य कारण है गुरु आया होगा कि यह 'छगन' आने वाले कल में कईयों के दिल में जबरदस्त कृपा। क्रान्ति लाने वाला महान संत बनेगा। घड़ियाली पोल में बाल क्रीड़ा करने
“जल से निर्मलता, चन्दन में शीतलता देखी है, वाला यह छगन भविष्य में ज्ञान की क्रान्ति से त्रिभूवन को प्रकाशित करने
सागर में गंभीरता, पर्वत में अटलता देखी है, वाला जगमगाता विजय वल्लभ जिनशासन का अनमोल कोहिनूर हीरा
हर एक में कोई न कोई खासियत होती है, बनेगा।
सारी विशेषतायें तो हमने, आप में देखी हैं।" हम कल्पना तो करें, कैसी होगी उनकी बुद्धि-प्रतिभा ? अपनी
सचमुच इतनी सारी विशेषतायें एक ही व्यक्ति में होना बुद्धि-प्रतिभा के बल पर पैसा तो क्या, उच्च से उच्च पद व प्रतिष्ठा भी वे आश्चर्यकारी ही कहा जाएगा। शायद कुदरत ने चुन-चुनकर सारे के सारे हासिल कर सकते थे। आम इन्सान की महत्त्वकांक्षा होती है अच्छे पैसे गुण पूज्यपाद गुरुदेव में ही भर दिये थे। ऐसे महान् व्यक्ति के साक्षात कमाऊँ, बंगले गाड़ी में ऐश करूं, सर्वत्र कीर्ति व यश पाऊँ। महापुरुषों की अस्तित्त्व का सामीप्य, साहित्य द्वारा जानने को मिला। क्या यह गौरव का महत्त्वकांक्षा कुछ और ही होती है।
विषय नहीं है ?महापुरुषों की कृपादृष्टि जिस पर पड़ जाये, उसका आम इन्सान की महत्त्वाकांक्षा, भोग केन्द्रित होती है, कल्याण तो निश्चित ही है। उनके जीवन को आबाद बना देते हैं। हीरा महापुरुषों की महत्त्वाकांक्षा, त्याग केन्द्रित होती है।
कभी नहीं कहता कि मेरी कीमत लाख की है या करोड़ की। उसकी चमक न्यायम्भोनिधि, पंजाब देशोद्धारक, परम पूज्य विजयानन्द सूरीश्वर ही उसकी कीमत बता देती है। गुलाब कभी नहीं कहता कि मेरे जैसी जी म.सा. के संपर्क में आते ही महत्त्वकांक्षी छगन को इससे भी ऊँचा व सुन्दरता व सुगन्ध आपको कहीं नहीं मिलेगी। गुलाब के पास जाते ही प्रतिष्ठित पद पाने की ललक जग पड़ी। अन्तर में वैराग्य का सागर हिलोरे उसकी सुन्दरता व सुगन्ध अपना आकर्षण पैदा किए बिना नहीं रहती। लेने लगा। फिर तो छोड़ दिया स्वजन-परिजन का मोह, प्रतिष्ठा का प्रेम.. महापुरुषों के आत्मिक गुणों की चमक, सुगन्ध व सुन्दरता जग जाहिर ...पैसों का प्यार..... | महापुरुषों के जीवन की हर बात निराली होती है। करने की बात नहीं होती, गुण तो स्वतः प्रकट हो ही जाते हैं। महापुरुष जोरदार ज्ञान साधना...तीव्र वैराग्य...उत्कृष्ट त्याग और सबसे बढ़कर दुनिया में रहते हैं, परन्तु उन्हें इससे कुछ लेना-देना नहीं। गुरुदेव के मंगलकारिणी गुरु निश्रा, फिर तो प्रगति में देरी कैसी ? कस्तूरी की सुगंध पवित्र चरित्र, गहन ज्ञान, परमात्म भक्ति, सामाजिक उत्थान के लिए
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विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका
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