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चाहते थे। इनमें मुख्य थे- सादड़ी, घाणेराव, राणकपुर आदि स्थलों के श्रद्धालु।
परिणामतः कार्य कुछ ढीला हो गया और गुरुदेव चल दिये। उम्मेदपुर में बालाश्रम की स्थापना तो अवश्य हुई किन्तु गुरुदेव की इच्छा तो इसके अतिरिक्त कुछ और ही थी । प्रकृति और नियति दोनों ही प्रलय के रूप में गोड़वाड़ में बरस पड़ी, उम्मेदपुर का बालाश्रम भी स्तब्ध हो गया और आज वही बालाश्रम फालना की पुण्य भूमि पर हाई स्कूल और कॉलेज का रूप लेकर पूज्य गुरुदेव की यशोगाथा, गुणगान के लिये समृद्ध है।
गुरुदेव ने साधर्मिक वात्सल्य का यथार्थ अर्थ समझाते हुए कहा- मात्र एक दिन साधर्मिकों को मिष्ठान युक्त भरपेट भोजन करा देना ही
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सच्चा साधर्मिक वात्सल्य नहीं है। उनके लिए आजीवन आजीविका की व्यवस्था करा देना, उन्हें स्वावालम्भी, स्वाश्रयी बना देना ही वास्तविक साधर्मिक वात्सल्य है।
वे कहा करते थे कि यदि जैन धर्म के महल को सुदृढ़, स्थायी रखना है, जैन संस्कृति को जीवित रखना है, गगनचुम्बी मन्दिर, उपाश्रयों को अक्षुण रखना है तो इनकी नींव को मजबूत करो इनकी नींव है, हमारा साधर्मिक बन्धु साधर्मिक सक्षम, समर्थ होगा, तो महल टिका रहेगा। सालों क्षेत्रों को सम्भालना है, उनकी सुरक्षा करनी है, उनका सिंचन करना है, उन्हें सदा हरा-भरा रखना है, तो साधर्मिक बन्धु पोषण करो। साधर्मिक तो कुएं के तुल्य है, यदि उसमें सक्षमता रूपी जल नहीं होगा तो सातों
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क्षेत्रों का सिंचन कैसे होगा ? वे पुष्पित पल्लवित कैसे रह सकेंगे ?
विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका
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गुरुदेव ने साधर्मिक उत्थान हेतु रुग्णावस्था में भी कई बार अनेक कठोर अभिग्रह धारण किए। गुरु वल्लभ ने साधार्मिक उत्कर्ष और शिक्षण प्रसार के क्षेत्रों में जितना कार्य किया, उतना किसी अन्य ने नहीं। इसमें किसी की भी कोई अतिश्योक्ति नहीं है।
कई लोग कहते हैं कि गुरुवल्लभ ने मात्र शिक्षण संस्थाएं ही खुलवाई हैं। उन्होंने केवल साधर्मिक भक्ति का ही उपदेश दिया है किन्तु ऐसी बात नहीं है। वे लोग ही ऐसा कहते हैं जो उनके जीवन कार्य से अनभिज्ञ हैं यदि वे एक. बार भी गुरुदेव का जीवन पढ़ लें, तो उनकी यह गलत धारणा निर्मूल हो जाएगी।
गुरु भक्ति
वल्लभ गुरु के श्री चरणों में, हम सब वंदन करते हैं। गुरुसेवा, गुरुभक्ति द्वारा भव सागर से हम तरते हैं। टेक।। इच्छिया माता पिता दीप, शशि कंचन सम निर्मल काया | आत्म गुरु के पाट विराजे, जैन धर्म को चमकाया ।। 1 ।।
जैन समाज नहीं भूलेगा, वल्लभ के उपकारों को । सभी मानने लगे तुम्हारे, युग अनुकूल विचारों को ।। 2 ।। जैन एक हों, जैन सुखी हों, अंत समय तक गाते थे। शिक्षण संस्थाओं के द्वारा, जग अज्ञान मिटाते थे ।। 3 ।। जिस पंजाब देश का गुरु ने धर्म बगीचा सींचा है। जनता के हृदयों ने उनका हूबहू फोटो खींचा है। 4।। आप स्वर्ग में चले गये हो, भूले तो नहीं हो हमको ? हम तो अपनी कह देते हैं, नहीं भूलेंगे गुरु तुमको ।। 5 ।। चरण कमल की सेवा का रस, मानस भौंरा पीता है। सेवाव्रती तपस्वी, बनकर, संयम जीवन जीता है ।। 6 ।। अवगुण मेरे दूर हटाकर, नैया पार लगा देना । नित श्री संघ विनय करता है जीवन ज्योति जगा देना ।। 7 ।।
आचार्य श्रीमद् विजय प्रकाश सूरि जी
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