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जिणवयणे दढचित्तो होह पइहियहं ९ श्रीवंग्गचूलियाए सूयहीलुप्पत्ति अज्झयणं सम्मत्तं ॥ सकलपंडितश्री ७ पं । रत्नसागरगणि तत्शिष्य पं । देवसागरगणिलपीकृतं संवत् १८५६ ना वर्षे शाके १७२१ प्रवर्त्तमाने भाद्रवपदकृष्णपक्षे दसमतिथौ भौमवासरे ॥ यादृसं पुस्तकं दृष्ट्वा तादृसं लिखीतं मया यदि सूद्धमसूव्वा मम दोषो न दियतेः ॥ १ ॥ इति श्री कल्याणमस्तुः मंगल्यंः ॥ श्री ॥ श्री ॥ श्री ॥ श्री ॥ श्री ॥ श्री ॥ श्री ॥ श्री ॥ श्री ॥ लखीतं श्री श्रेयांसप्रसादात् ॥ श्रीकार श्री ॥
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हा श्रीजिनान नोकरी
देवता मनुष्य
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લાલભાઈ દલપતભાઈ ભારતીય સંસ્કૃતિ વિધામંદિર महावा, नं. ८३२, पत्र - ८
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झिरमियसुरवर सिरिसेद किरलाई यस सिरियं नाम श्री वीरवयं बुद्धकयद्दीन पुण्यति श्री दीनानिलक श्री स्वाम सदर से
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निवसूरियसनं विसाएसिस जसद्द गुरुत श्रीनसेवीने मायुश्रीनगरीको श्री स्वामी विजय विकेविहार करता मोर माय समय न्तु चुदि दुरंतो तो साबिक सिरिन संचूई विजयसीसा वाल वेश्री बाह विद्या ला Dafaa दियायनि सेवन सी से महिलादिसामेल गेनुकाले सो
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ला.द.८३२ पंकबूलिया सातबकट
नीमून बेल