Book Title: Vargchulika
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 32
________________ ༢མ་ ९६ १५० २३२३ શ્રી મોહતલાલજી જૈત જ્ઞાતભંડાર - સુરત पो.नं. ४०, प्रत नं. १८७, पत्र પ્રથમ પત્ર मया मुनुष्य किश्वरं दि ।। वर में सिम्पा ।। केवली झांनी ॥ यस " त [व] भक्तिनीस मुदेशने । देवता परंवर देवता के गरनी | सीताश्री बारापरक मत गर्दन हिरन मियस रवर सिरिसें हरकिरण रई यस स्सिरिंय' नमिउंसिरिवी रपयंत्र सु ही जनानीउ । श्रीशीरथ की नीवशायकी | श्री सुधर्मा स्वामीनि बलि तिवारखनी चालीस) श्री जंबुस्वामी बेहत् ही लुप्पतिश्‍वी राउंदी समेव रिसें सिरिदम्म सामिनिवांत ते चुयाली से सिद्दोजे बुावरीमनाएं तिवारी इम्पाव श्रीमुन मुरी स्वगिया मढा) बेवीस वर्षेची सिखन / सर्गने दियो अति होजागिर शत इक्कार सव रि से हैं। फन सुरीगड तिय सचवां तेवी साएसिंजन दोयतत्त्रो गर्न सगंज सन सुरीगुरु श्री सिखेन वसुरीना शिप के आगमन श्री सुरी विहार करता मा वस्तीन गरी श्री स्वाम जील चदिवे नानामाद्यनिम मी सरचा संतुतिविज रुतत्तो। सीसो सिंज्जैनवस्सस प्रयन्तु विहरतो पोसाक ६गुज्जालाम सिरिनदबा जसनुइ विज यतविनाशी दादांना ना | सदा कालपा से नार) निसी मुझ वा सेवा) बाऊ स्वामी मिलान गरी सीसाडुवाल सगंध वास द्वियायनि ऊ लतिस एगुर पहने बासी सोम हिलाइ ] मिथलानगरी नालक्ष्मी नमउद्यान प्रतिमा रह्यातिदा । एद वें समये बावीस रुप गो डिजाने गांध गिदी नांझेललं चिगेन ज्जाले सोपमिमा शचित क्वचराक्षसो दुवी सखु रिसागो हिला प्रज्जमंस न्यायका कामलताना मे गलि का ते |थ का विचरेंमदा का लतेउ द्यां सिहां मा कृति बाबी सरुष मद्दमासे क हनदिमेरक्त थया नेत्रवि॥9॥ 'माईरह्यानेदेानः थयाथ को पावन परदग्गा काम या एरज्ञाघियरंतिससयात ज्ना पातितं साधनिघणादपाव हम ब्यू खराद्वारा! नारे नाकारक नाशिष्म॥" अजितना आहार क स्वाथी पर શ્રી મોહતલાલજી જૈત જ્ઞાતભંડાર - સુરત पो.नं. ४०, प्रत नं. १८७, पत्रઅંતિમ પત્ર जिनवहिमा नराव 3 कर स्पें } अन्तर संघ नामै माहेश्रार्थका श्रुतहीस का किवारेचा स्पेएम करे सु नेपयोगे करीने प्रि शुकु ॥१॥ शौ देश | यपमालाकया है कि यही जावी का या दशनलाइजेसन दूसरीसुजेव गेला गिदता मु मोटा जाम्पूनामूलीसां श्रुतः । सनानी | श्री वीरपना निवाला सिकाएं | तेन पदरी | नीर लिए सुमहानाय् जहा न दाशमुरका चंदी २ सय दिय एग नवच्चाहिए हिंदरि साइंस इनिदो शिवार सोलसेनदा वर्षेनी ऽ♚ | वालीया अपमान | जिलप हि मागदर्य होही तो सोलस एहिन दर सा हिंदेश से हिंति द्वादायुगान (तेसमयें राशिनक्षत्री समौ ( 52 1 इसति रूयमेयां शतं मिसन गिदत्तासंघ सुय राशिनरीमती सइमोहोल मिस्स धुमके वे बीप, तेहनी, स्थिति जिल / तेत्रीय / एकराीिवार | संघी उदयथायें । हपस्य हि इतिनिस यातीशी साए गए शिव रिसालांत भिंयमी लप हो संघ स सुय सद ६ इम यज्ञौत्र, गुरु, क्वन सांगली वैराग्य । कलेमा । श्रदक्षता। देवनें] वारंवारं वंदन करें आचार्य ६ इयजसन द्दगुरु लं वयल सौच्चा मुली सुदेशम पाया हिल कुलतिलोर बंदए पाप्रा नेश्कीनें | संलेषनाक | प्रतिदत्त | प्रथमदेवलोके एभुतहीज सुशिंगुरुत हनहना जसनुयाल संदलपवन दिलोपटक यो इय सुय हील वाय 1 घने मुगुम्द बांड } जय गया G nha ४१० १८५० 2220

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