Book Title: Vargchulika
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 90
________________ ४९ वर्गोपनिषद् अथ उक्तवक्तव्यताया एव कालविशेषं प्रश्नयति मुनिप्रवर इत्याह अह अग्गिदत्त साहू, पुणो वि पुच्छइ गुरुकयपणामो । अज्जो ! कया होही सुयहीलणा अवि कया उदओ ? ॥१॥ अत्र प्रतिवचनम् भणइ जस्सभद्दसूरी वि सुओवओगेण अग्गिदत्तमुणिं । सुणसु महाभाय ! जहा सुयहीलणमह जहा उदओ ॥२॥ सुगमम्, नवरं महाभाग ! - अचिन्त्यचिन्तामणिसधर्मचारित्ररत्नावाप्त्या परमसौभाग्यशालिन् ! ॥२॥ पृष्टार्थमेवाभिदधाति मुखा(क्खा)ओ वीरपहुणो दुसएहि एगनवइअहिएहिं । वरिसेहिं संपइनिवो जिणपडिमाठावओ होही ॥३॥ वीरप्रभोः - श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य, मोक्षात् १. छ-०सयदि० । २. क-भराविओ । ग.च.छ-गवओ । ड-गरावओ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112