Book Title: Vargchulika
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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શ્રી તેમિ-વિજ્ઞાન-કસ્તૂરસૂરિ જ્ઞાતમંદિર - સુરત
पत्र - १०
પ્રથમ પત્ર
ॐ जिनाय नमः । भक्तिभर नमिरसुरनर सिरिसेंडर फिरणार इयसस्सिरियं नमिठं सिरि वीर पर्यं षुच्छं सुय हिल णुप्पति वीराठ बीसमे वरिसे सिरिसुइम्म सामिनिव्वाणंततो चुयालेसे सिद्धा जम्बू चरमनाणी तओ इक्कार सर्वरिसेंड प्यभव सुरिगओनियन्सय वणं तेवीसार सिज्जंभवो य ततो गओ सग्गं ३ जसभद्द गुरु ततो सीसो सिज्जंभवरससमयन्नु विहरतोय पत्तो सावसि कुद्ध गुज्जाणं ४ सिरिभद्द बाहु संभूइ विजयसीसा दु वाल सँग धरा वास द्विया य निच्वं कर्णति सुस्सु सणं गुरुणो अह भद्द बाबुसीसोमहिलाए अग्गिदत्तना मेणं लच्छि मे उज्जाणे पडिमा हिओ तवं चरइ ५ इत्तो दुवीसमुन गोदिला मज्जमंसपरवसमा काम लगाए रखा विचरंति सया तवज्जाणे ६ मासंतिल साहु मंद धीनिधिणा- अइ पावा अइतिक्खसत्यहत्या धावंति महाय समकालं ७ महिमाय
શ્રી તેમિ-વિજ્ઞાત-કસ્તૂરસૂરિ જ્ઞાતમંદિર - સુરત
पत्र - १०
અંતિમ પત્ર
गनवर अहि एहिं वरीसाइ संपइ नीवो जिणपडीमा रोहि ननो सोलसाएहिं नवनवर संजुए हिंवरी सेहिं ते दुठ्ठा वाणी यगा अवनइस्संति सुयमेयं तंमि समय अग्गिदत्तासंघसुय जम्मरासी नक्रखत्ते अड तीसइमो दुट्टो गलिं गिक्सर धूमके उ गहो तस्स दिइ तिन्नि सया जी तीसा एग रासीवरीसाणंनम्मिय संघस्स नुपस्स उदओ पच्छा एइय जसभद्गुरुणं वयणं सोच्या मुणी सुबेरग्गो पायाहीणं कुणतो पुणो २ बंदर पाए आमुच्छिउण सुरी सुगुरु तहय भद्द बाहुसंभु संलेहणं मवन्नो गओग्गिदत्तो पढमकम्पे इयसुयहील णुप्पाय फलीफलं जाणि उण जसभद्देजिणायणे दह चित्तो होट पइदीयहं । इति बंगचूलिया सुत्तम्॥ सूत्रमिदं
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