Book Title: Vargchulika
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 28
________________ गुरुन 1 } तेमादेञदक्षणादेऽ | नारकरतेवेदनाक् |७ | गुरु वाणसुच्चा मुली देर गोयावादी एकांतोली २ बंद एपाए श्वाने | गुरूनविजय | संलेबलक | तेजगतीदनसाथ मदेक्लोरोग चिऊणस्तूरी। गुरुत हद्द बाऊन् । संहय्वन्तो । गड गिदीप कप्पे ८ जसोनड्ने चुनें | एम्फत लेना नोउ एभ्य् J | | जिनधर्मने इटां सदां दी लाप्पाटा फलं । फलाजालिकले जसन द्देजिराव्य्ो। दटक्ल ॥इतिगजीया जमय जिवीतील अमरदत्तगुमानी रंमा रेवासी । मान् [दृचितक | u | बाडाश्री जोधपुर चंदीराम जाने ||होइ१ इंदियदा (ए) फज faa नसमास ॥इतिदंग निमाष्पयनसमाप्तम्॥ सिं २०४३ सद ||श्रीजिनायनमः॥ लभो सत्यदेवयानं मोछरिताएं एमो सिक्षाएं रामो छाय स्यिाएं ||मोउद्शाया। रामोजी एससाएं। एसो पदमुक्ारो सादपणासणो मंगलाएंट्स बदनसीने पुनीवैरा उपमे सप्लाजा लीन અંતિમ પત્ર स्तजड सहित खाहि - श्री चिंतामणिपार्श्वनाथाय नमः ॥ સ્તબક આદિ भत्तिब्भरनमियसुरनर... अन्त ... जिणवयणे दढचित्तो होइ पइदियहं ९ ॥ इति वंगचूलिया अध्ययन समाप्तम् ॥ सं. १९४३ पोस वद ७ ॥ (खा प्रतिमां खानी पछी संगयूलिया સૂત્ર શરૂ થાય છે.) || जेना सन न ध- खोरयन्टल ईन्स्टीट्यूट जरोडा जेसीसी नं. 93430, पत्र- १० नहिनानस्सने ऐकरी मम मान्मुर देवनरम दुष्पनिलना शियर सिबरते कटनी कर (गालात्री कसौजनीक देदिप्यमान क्रांतियुक्तदेवतानामस्त धरि तापमा श्री जिनयनमः॥नतिज्ञ रन मिर सुरनर सिरिसेदर किरलर इस सस्सिरिये नमिजेंसि “दनी क्रांतिसिले सोसबै नमस्कार करी एहवा- १ वीरस्वामीथीविसमेवारिसे श्री सुधर्मस्वामिनो निजा तिलथी चरणदनेयुखं कही सुं. लगानी जल्प रिदीरययं बुच्चे सुरादीनं गुपति लिदोष वीरानंदीस में रिसे सिरिसुमस्सा मिनिद्वारांत तो स्वास्वामिश्री धवसे श्रीजं २ तिर्थी एवर से दस्वीमि देवले कपा तिथी २३ मे स्वानिमि चुयालेसे सिद्धजेनुंदरमनाली २ तद्वद्वारसरिसेदं एनवस्ट रिगनुतिय सद् मुस्सैसिजेनवस्वामिस्वपिता ३ तिलपीबैजसो नऽस्वामि सितंनवस्वामिना सिटम अभ्वा येने - नमध्ये णं तेविसाए सिन दोय ततोगउगा ३ जसनगुरुततो सीसो सिद्धी नवस्ससम विवरतायका प बिनगरी को तिलनादीय सिष्य श्री राजा संजुत विजय वरि यन्नु विहरतोययतो सावचिछगुन ४ सिरिनद्दवाऊँ संदई विजयसी साड वाशिष्य ना परवारसहित नित्य पास रहता सुक्रमा करता गुरनी ५ वनशिष्य महि ऊता वालसंगधा एसहियाय कुणं तिसुस्सुसगं गुरुलो ५ श्रनवासी सो म मिथिलानगरी लक्ष्मिनाम उद्यानवि सोए हमारा तक्रे ६ तिरामेवादास गोलले दिलाएार्गिदतनामेगं लचिगेउ जाणे सोयमाईद्वितवंचरई ६ इतोऽदिस नामै गर मित्ररमदी પ્રથમ પત્ર

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