Book Title: Vairagya Path Sangraha
Author(s): Kundkund Digambar Jain Mumukshu Mandal Trust Tikamgadh
Publisher: Kundkund Digambar Jain Mumukshu Mandal Trust Tikamgadh

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Page 14
________________ 12 बस मुक्तिमार्ग है यही निज दृष्टि अनुभवन । निज में ही होवे लीनता शिव पद स्वयं लहा || ६ || आत्मन् कहूँ महिमा कहाँ तक आत्म भाव की। जिससे बने परमात्मा शुद्धात्म वह कहा ||७|| चेतो- चेतो आराधना में वैराग्य पाठ संग्रह देखो-देखो यह जीव की, विराधना का फल । चेतो - चेतो आराधना में, मत बनो निर्बल ॥टेक॥ पाषाण खण्ड कह रहे, कठोरता त्यागो । विनम्र हो उत्साह से, शिवमार्ग में लागो ॥ बहते हुए झरने कहें, धोओ मिथ्यात्व मल || देखो-देखो.. ॥ १ ॥ ईर्ष्या त्यागो जलती हुई, अग्नि है कह रही । मत चाह दाह में जलो, सुख अन्तर में सही ॥ वायु कहे भ्रमना वृथा, होओ निज में निश्चल || देखो-देखो..॥२॥ जड़ता छोड़ो प्रमाद को नाशो कहें तरुवर । शुद्धातमा ही सार है, उपदेश दें गुरुवर ॥ समझो - समझो निजात्मा, अवसर बीते पल-पल | देखो-देखो.. ॥ ३ ॥ मायाचारी संक्लेशता का, फल कहें तिर्यंच | जागो अब मोह नींद से, छोड़ो झूठे प्रपञ्च ॥ जिनधर्म पाया भाग्य से, दृष्टि करो निर्मल || || देखो-देखो.. ॥४॥ शृंगार अरु भोगों की रुचि का, फल कहती नारी । कंजूसी पूर्वक संचय का, फल कहते भिखारी ॥ बहु आरम्भ परिग्रह फल में, नारकी व्याकुल || देखो-देखो.. ॥५॥ असहाय शक्ति हीन, देखो दरिद्री रोगी । कोइ इष्ट वियोगी, कोई अनिष्ट संयोगी ॥ घिनावना तन रूप, अंगोपांग है शिथिल || देखो-देखो.. ॥६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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