Book Title: Vairagya Path Sangraha
Author(s): Kundkund Digambar Jain Mumukshu Mandal Trust Tikamgadh
Publisher: Kundkund Digambar Jain Mumukshu Mandal Trust Tikamgadh

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Page 65
________________ वैराग्य पाठ संग्रह जीवन का क्षण-क्षण सार्थक हो धर्माराधन में, सर्व समर्पण हो जावे जिनधर्म प्रभावन में।।९।। समझ न पाया व्यर्थहि चिर से पर में भरमाया, धन्य हुआ अपने में ही विश्राम सहज पाया। चाह नहीं कुछ शेष नाथ, निज में ही रम जाऊँ, कर्म जलाऊँ तप-अग्नि में मुक्त दशा पाऊँ॥१०॥ सहयोगी होऊँ समाधि में साधु साधकों की, रही नहीं परवाह प्रभो अब मुझे बाधकों की। अखण्ड ज्ञानमय सहज भावना रूप समाधि को, आनन्दपूर्वक धारण करके तनँ उपाधि को।।११।। ज्ञानी गुरुओं की सेवा में ही तत्पर निशि-दिन, उन-सम ही वैराग्य बढ़ाऊँ मैं अपना क्षण-क्षण। शुद्धातम की सेवा करते खेद नहीं पाऊँ, हर्ष सहित धारूँ रत्नत्रय भव से तिर जाऊँ॥१२॥ धर्म पिता अरहंत जिनेश्वर साँची भक्ति करूँ, झूठे विषय-कषाय त्याग कर क्षण-क्षण ध्यान धरूँ। स्वानूभूति ही निश्चय भक्ति द्वैत विकल्प नहीं, संकट-त्राता शिवसुख-दाता जाना सार यहीं।।१३।। अहो संघनायक आचारज विज्ञानी-ध्यानी, स्वयं आचरण करें-करायें सबको शिवदानी। उनकी चरण शरण से हो निर्दोष चरण सुखमय, बढ़ती जावे वीतरागता पाऊँ पद अक्षय ॥१४।। उपाध्याय गुरु पढ़ें-पढ़ावें संघ में जिनवाणी, अनेकान्तमय तत्त्व-प्रकाशें मोह-तिमिर हानी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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