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वैराग्य पाठ संग्रह
विघ्नों के भय से मूढ ही निज लक्ष्य नहीं भजते।
विघ्नों के आने पर भी धीर मार्ग नहीं तजते॥ निश्चिंत निराकुल हुआ निज साध्य लहूँगा। नरभव.....॥१६॥
सब जीवों के प्रति मेरे सहज क्षमाभाव है।
करना क्षमा, मुझको, क्षमा आतम स्वभाव है। त्यागा है मोह, राग-आग में न जलूँगा। नरभव........॥१७॥
पाया है ऐसा मार्ग जिसके बाद मार्ग ना।
पाऊँगा ऐसा सुख जिसके बाद दुख ना॥ जिसका न हो अभाव वह प्रभुत्व लहूँगा। नरभव.......॥१८ ।।
पाया स्वरूप झूठे स्वांग अब मैं न धरूँगा।
चैतन्य महल मिला अब भव में न भ्रमूंगा॥ दारिद्र फिर जिसमें न हो वह वैभव लहूंगा। नरभव.......॥१९॥
संयोगों को मैंने वरण किया अनंत बार।
वियोग के दुख के जहाँ टूटे सदा पहाड़। निश्चय किया अतएव ध्रुवस्वभाव वरूँगा नरभव........॥२०॥
तज करके मोह देखो यह आनंदमय है मार्ग।
निशंक हो आओ सभी आनंदमय है मार्ग।। आनंदमय जिनमार्ग का प्रभाव करूँगा। नरभव.........॥२१॥
इस मार्ग से ही पाया है भगवंत ने भव अंत।
इस मार्ग में विचरें अभी भी ज्ञानी साधु संत ।। उनका ही अनुशरण कर निजानुभव करूँगा। नरभव......॥२२॥
चिंता नहीं विभावों की नसेंगे वे स्वयं।
निग्रंथ हो निज भाव में ही रमण हो स्वयं ।। होता हुआ शिव होगा, सहज ज्ञाता रहूँगा। नरभव....।।२३।।
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