Book Title: Vairagya Path Sangraha
Author(s): Kundkund Digambar Jain Mumukshu Mandal Trust Tikamgadh
Publisher: Kundkund Digambar Jain Mumukshu Mandal Trust Tikamgadh

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Page 85
________________ वैराग्य पाठ संग्रह अरु कार्य भी विकल्प से होता नहीं कभी ॥ परभावों की असारता प्रत्यक्ष दिखायी । आराधना...।।५।। जीवन का ठिकाना नहीं, संयोग हैं अशरण । परमार्थ से देखें तो मात्र आत्मा शरण ॥ आत्मा का विस्मरण ही है संसार का कारक । आत्मा का अनुभवन ही सर्वक्लेश निवारक ॥ जिनदेव की यह देशना आनन्द प्रदायी । आराधना...||६|| चिन्ता चिता से भी अधिक है घात का कारण । चिन्ता से कभी होता नहीं कष्ट निवारण | चिन्ता को छोड़ तत्त्व का चिन्तन सहज करूँ । अनुकूल अरु प्रतिकूल में समता सदा धरूँ ।। निरपेक्ष भावना हृदय में आज है आयी । आराधना...॥७॥ होती न अनहोनी कभी होनी नहीं टलती । सुख शान्ति तो आराधना से ही सदा मिलती ॥ शिवमार्ग के साधक कभी कुछ भार नहिं लेते। ज्ञाता स्वयं में तृप्त नित निर्भर ही रहते ॥ विमुक्त होने की यह युक्ती आज सुहायी | आराधना...॥८॥ भवितव्य को स्वीकार कर निश्चिंत रहूँगा । तजकर पराई आश अब निरपेक्ष रहूँगा || संयोगों की चिन्ता में दुख के बीज नहीं बोऊँ । फँसकर विकल्पों में नहीं यह शुभ समय खोऊँ ।। वस्तु स्वरूप जानकर दृढ़ता सहज आयी | आराधना...॥९॥ लौकिक जनों की चर्चायें अब मैं न सुनूँगा । मोही जनों के आँसुओं पर ध्यान नहीं दूँगा || मिथ्या भविष्य की भी चिन्ता अब न करूँगा । मानापमान में भी मैं तो सहज रहूँगा ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only 83 www.jainelibrary.org

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