Book Title: Vairagya Path Sangraha
Author(s): Kundkund Digambar Jain Mumukshu Mandal Trust Tikamgadh
Publisher: Kundkund Digambar Jain Mumukshu Mandal Trust Tikamgadh

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Page 121
________________ 119 वैराग्य पाठ संग्रह परभावशून्य चिद्भावपूर्ण में परमब्रह्म श्रद्धा जागे। विषय-कषायें दूर रहें, मन निजानंद में ही पागे। ये ही निश्चय ब्रह्मचर्य, आनंदमयी मुक्ति का द्वार । संकट त्राता आनन्द दाता, इससे ही होवे उद्धार ।। अतः आत्मन् उत्तम अवसर, बनो स्वयं भगवान-से। सती शिरोमणि अनन्तमती की गाथा जैन पुराण से।सती...॥१३॥ आचार्य श्री जिनसेन गाथा पूछ उठा अपनी माता से, इक बालक छह साल का। सरल स्वभावी परम चतुर था, जिसका रूप कमाल का।।टेक।। माँ इस घर में कल-सी, गाने की आवाज नहीं है। ध्वनि क्यों बदली है ? क्या गानेवाली बदल गयी है ? माँ बोली बेटा इस घर में, कल एक पुत्र जन्मा था। ढोलक पर थी बजी बधाई, जिसका बँधा समा था।। अरुण रूप जिसका विलोक, शरमाया रूप प्रवाल का।सरल...॥१॥ आज वही मर गया, इसी से सब घर के रोते हैं। मन में टूटी आशाओं का, व्यर्थ भार ढोते हैं। बालक बोला सहजभाव से, माँ क्यों पुत्र मरा है। कल जन्मा मर गया आज ही, ये तो खेल बुरा है। माँ बोली बेटा क्या अचरज, नहीं भरोसा काल का। सरल...॥२॥ बेटा सबको ही मरना है, जिसने जन्म लिया है। अनादि काल से इस प्राणी ने, जग में यही किया है। तो क्या माँ मुझको भी, मरना होगा कभी जहाँ से। माँ बोली चुप रह पगले, मत ऐसा बोल जुबाँ से। जग में बाँका बाल न हो, प्रभु कभी हमारे लाल का। सरल...॥३॥ माँ क्या कोई है उपाय, जिससे न जीव मर पावे। क्या दुनिया में ऐसा है, जो यह रहस्य बतलावे॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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