Book Title: Vairagya Path Sangraha
Author(s): Kundkund Digambar Jain Mumukshu Mandal Trust Tikamgadh
Publisher: Kundkund Digambar Jain Mumukshu Mandal Trust Tikamgadh

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Page 80
________________ 78 सहायक । लायक ॥ है धैर्य ही अवलम्बन और धर्म संयोग तो कोई नहीं विश्वास के खुद ही विचारो सत्-असत् का ज्ञान तुम करो । है सर्व समाधान कर्ता ज्ञान ही अहो ॥ भवरोग की औषधि अरे विवेक मात्र है। रे आत्मज्ञानी ही सहज मुक्ति का पात्र है ॥ जितेन्द्रियता का मार्ग ही मुक्तिका मार्ग है । स्वाधीनता...॥७॥ पहले गये शिव जो उन्हें आदर्श निश्चिंतता के नाम पर परिग्रह न ध्रुवफण्ड नहिं ध्रुवदृष्टि ही आदेय तुम निर्वाछकता सम्यक्त्वी साधक का सुगुण वैराग्य पाठ संग्रह बनाना । Jain Education International जुटाना ॥ जीवराज का श्रद्धान- ज्ञान- आचरण करना । इस मार्ग से ही एक दिन भवसिन्धु हो तरना ।। रत्नत्रय मार्ग ही अहो परमार्थ मार्ग है । स्वाधीनता...॥८॥ For Private & Personal Use Only जानो । मानो ॥ सहोगे । करके विराधन संयम का अति दुःख संयम का साधन करके ही आनन्द लहोगे ॥ आनन्द का अवसर मिला है चूक मत जाना । रे स्वप्न में भी भोगों का कुछ भाव नहीं लाना ।। औदयिक भाव आ जावें तो प्रायश्चित करना । डरना नहीं पुरुषार्थ से आगे सदा बढ़ना || निःशंकता से शोभित ध्रुव कल्याणमार्ग है | स्वाधीनता... ॥ ९ ॥ कोई सहारा है नहीं यों सोच मत लाना । चत्तारि शरणं पाठ पढ़ निज की शरण आना ।। निजभावना भाते हुए वैराग्य बढ़ाओ । सर्वत्र सुन्दर एक की ही भावना भाओ ॥ www.jainelibrary.org

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