Book Title: Vairagya Path Sangraha
Author(s): Kundkund Digambar Jain Mumukshu Mandal Trust Tikamgadh
Publisher: Kundkund Digambar Jain Mumukshu Mandal Trust Tikamgadh

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Page 67
________________ - वैराग्य पाठ संग्रह बाईस परीषह (चौपाई) विषयारम्भ परिग्रह त्यागी, ज्ञान-ध्यान में परिणति पागी। वे मुनिवर सबको सुखदाई, परिषहजय की करूँ बड़ाई। १. क्षुधा परीषह भूख लगे आहार न पाय, अनाहारी चिद्रूप लखाय । ज्ञानामृत भोजी मुनिराय, सहें परीषह शिवसुखदाय॥ २. तृषा परीषह तृषा सतावे कोपे पित्त, नहीं दीनता लावें चित्त। भेदज्ञान करते मुनिराय, समता रस से तृप्त रहाय॥ ३. शीत परीषह अस्पर्शी ज्ञायक भगवान, ध्यावें साधु परम सुखदान। शीत परीषह से नहीं डरें, निरावरण निर्भय नित रहें। ४. उष्ण परीषह रहते आत्म गुफा के माँहि, मोह ताप जिनके उर नाहिं। सहज शान्त समता के धनी, उष्ण परीषह जीतें मुनी॥ ५. डंसमश्क परीषह डंसमश्क जब तन में लगें, ज्ञानरूप में मुनिवर पगें। वहे ज्ञानधारा उर माँहिं, परीषह में उपयोग सु नाहिं।। ६. नग्न परीषह निर्विकार शोभे परिणाम, यथाजात तनरूप ललाम। ध्यावें अपने को अशरीर, नग्न परीषह जीतें वीर ।। ७. अरति परीषह पापोदय का कार्य विचार, वर्ते सहजहि जाननहार। अरति तसें संयम दृढ़ रहैं, ते मुनि कर्म कालिमा दहैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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